छत्तीसगढ़ में स्थानीय निकायों के कुछ शहरो में चुनाव संपन्न हुए माशाअल्लाह ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए एकतरफा रहे माशाअल्लाह विरोधियो को ऐसी पटखनी कांग्रेस ने पहली बार दी सारे बड़े नगर निगमों पे काग्रेस का कब्ज़ा बड़े-बड़े पूर्व मंत्री और दिग्गज भाजपा के चुनाव प्रभारी थे पर उन्हें चुनाव परिणामो ने सुबहानअल्लाह कहने का मौका ही नही दिया सब कुछ सुबहानअल्लाह कांग्रेस के लिए ही रहा बात ये अलग है की गृहमंत्री अपने घर गृहणियो {बहुओ} को रिसाली नगर निगम की कमान सौपना चाह रहे थे। द्वंद घर में शुरु हो गया तो अपने अंतर्मन को अपने समाज की सीमा में बांधा, पर भाग्य पुराना वाला ही परिणाम दोहरा गया मुखिया बनते- बनते गृहमंत्री बन गये बहु क्या समाज को भी महापौर की कुर्सी का प्रतिनिधित्व नही दिलवा पाए।
रिसाली में महापौर पद की संभावित प्रत्याशी को रोते, सिसकते सबने देखा पिछड़े वर्ग की राजनीति की दुहाई देने वालो के लिए इस राजनीति का आकलन शायद जरुरी ना हो पर क्या यही राजनीति है जिसमे प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वाधिक संख्याबल वाले इस समाज को उपेक्षा सहनी पड़ी, या फिर ये राजनीतिक समीकरण सिर्फ स्थानीय छत्तीसगढ़िया समाज को हासिए पर ढकेलने के लिए आजमाए जाते है, या फिर संख्याबल की दहशत की वजह से उस वर्ग में दूसरी पंक्ति का युवा नेता न पनपे इसकी कवायद जारी है?
यदि संख्याबल ही मायने रखती है तो फिर कैसे छत्तीसगढ़ में इतने नवा आगन्तुक बोनसाई छत्तीसगढ़िया राजनीतिक प्रतिनिधित्व पा लेते है पार्षद महापौर से विधायिकी और मंत्री बनने तक में ये सारे नियम धरे के धरे रह जाते है याद करिए छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री को कांग्रेसी खुद उनको आदिवासी नही मानते उनकी जाति हमेशा सवालों के घेरे में रही आरोप लगते रहे पर सत्ता रोहण उन्ही का हुआ ऐसा क्यों ? आदिवासी बहुल प्रदेश का गाना तो सब गाते है पर क्या किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला ?
यह प्रथा – छद्म राजनितिक प्रतिनिधित्व का आज भी निभाई जा रही है। रायपुर के कई वार्डो में आजतक सर्वसमाज और सर्वधर्म को प्रतिनिधित्व नही मिल पाया पर विशिष्ट मोहल्ले के पार्षद अपनी लोकप्रियता से पार्षदों का दिल जीत महापौर निर्वाचित हो गए । माशाअल्लाह कमाल का राजनितिक समीकरण ,समझ गजब की बता रहे -की कोविड में कफ़न -दफ़न के इंतजाम में दावते -इस्लामी संगठन ने गजब का काम किया, भेद भी खोला की नगर निगम ने उसके लिए हजारो का बजट भी रखा था पर इस संस्था ने हजारो लेने से इंकार किया अब किन संस्थानों को दिया हजारो कफ़न – दफ़न के लिए ये शोध का विषय है।
गजब दिख गया दूर से अजब भतीजे का ढंग नही दिख रहा घर से ,आस है विधायिकी की दक्षिण के दक्षिणा की ।दूरदर्शी है उनके पूर्ववर्ती डर गए थे इन्होंने भाप लिया डर के आगे जीत है। आशियाने बहुत से बसाए है शहर में थोड़े दबंग है माशाअल्लाह कमाल की शख्सियत है मोह लेंगे जनता का मन इसलिए मोहन से टकराने का जज्बा सच में माशाअल्लाह माशाअल्लाह है।
माशाअल्लाह माशाअल्लाह है सब कुछ माशाअल्लाह…
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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