मुखिया के मुखारी – चव्वनी को रुपया से बड़ा समझने की ये है भूल….

मुखिया के मुखारी – चव्वनी को रुपया से बड़ा समझने की ये है भूल….

राजनीति जन-अवधारणाओं की अनुगामी होती है, बिना इसके राजनितिक सफलता रूपी सत्ता सध ही नहीं सकती  | विपरीत परिस्थितियों, विरोध से भरी मिडिया सालो अफवाहो की रेकम पेल मचाती रही पर जन-अवधारणाएं इतनी बलवती होती गयी कि 26 लोकसभा संसदीय सीट वाले गुजरात का मुख्यमंत्री 80 सदस्यी राज्य उत्तर प्रदेश से सांसद ही नहीं देश का प्रधानमंत्री बन गया| ये थी  जनधारणाओं से उपजी -जन स्वीकारोक्ति साल दर साल तल्ख़ होती मिडिया के आगे उनकी साल दर साल कि राजनितिक सफलता आज तक अपराजेय है. फिर भी जन अवधारणाओं को न समझने की भुल नेताओं से हो रही है, वर्तमान राजनितिक परिदृश्य बताता है कि पुरुषार्थ के बिना पुरुष सत्ता के लिए छटपटाता है, और पुरुषार्थ से परिपूर्ण पुरुष सफलता के शिखर पर चढ़ जाता है |

जन-अवधारणाएं कई बार  मेहनत करके बनाई  या बदली जा सकती  है. उसका सबसे बड़ा उदाहरण अमेठी की वर्तमान सांसद और केन्द्रीय मंत्री है, जिन्होंने विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष की पारिवारिक सीट पर उन्हें पराजेय का दंश झेलने मजबूर कर दिया |यदि आपसे अपनी  जमींन नहीं बच पा रही तो आप केंद्र में सरकार बनाने का दिवास्वप्न देखकर  क्या हासिल कर लेंगे ? आज पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की शक्ति आपके पास बची है क्या ? इस देश ने लंगड़ी सरकारों का प्रभाव – दुष्प्रभाव ,अस्थिरता और भयावहता को बहुत अच्छी तरह देखा है, भाग्य भरोसे की राजनीति कब तक संसद तक पहुचने के रास्ते सड़क से जाते है. पर सड़क पर चलने के भी नियम है ,कायदे है ,कानून है ,इनके इतर चलेंगे तो दुर्घटना होगी | नियमो को तोड़कर ,मुद्दों को तोड़ मरोड़कर आप कैसे शिखर तक पहुचेंगे ,और कौन आपको पहुचायेगा | और क्यों ? कैसे ? कब कहाँ ? किसी का जवाब है आपके पास? इन सबको प्रभावित  करने वाले मुद्दे तथ्यहीन है आपके   बिना मुद्दों के अवधारणाएं कैसे बनेगी और कैसे आप इनको  जन-अवधारणाओं में तब्दील करेंगे कैसे सत्ता बदल देंगे  |

मुद्दे यदि लगातार गलत साबित होते रहे तो ये राजनीति अपरिपक्वता है, आखिल भारतीय राजनितिक दल से क्षेत्रीय प्रभाव तक सिमित हो जाना आपके परिश्रम पर पहले ही प्रश्न चिन्ह लगा चुका है | ऐसे में फिर वही गलती चाय वाली गलती के बाद पंजाब वाली गलती अफवाहों की तीव्रता अधिक होती है, उम्र नहीं और आप अफवाहों के भरोसे राजनीति करना चाह रहे है उम्र छोटी अफवाहों की आपको कैसे स्थायित्व दिला पाएंगे  | आप पाए नहीं पाए जब भाग्य भरोसे श्रम, कर्मठता कहाँ है | दुसरे की गलती पर अपने माथे मुकुट सजाने का खेल कैसे खेल लेंगे| लोकतंत्र में कोई राज्य सरकार प्रधानमंत्री को कैसे सामान्य समझने की भूल कैसे कर सकता  है चार चवन्नी मिलकर एक रुपया के बराबर होते है ,पर चवन्नी कभी  भी रुपया नहीं बन सकता| इतना सा मोल नहीं समझ रहे |

त्रासदी से भी  सीख नहीं ले रहे आतंक की शुरूवाती दिनों को याद करिए 84 की विभीषिका से तो कुछ सबक लीजिए| हार से हो विचलित देश को है पता पर जहाँ सत्ता में  है  वहां तो सत्ता फर्ज निभाइये कर्ज ऐसा  कौन सा है आपका  जो लोकतंत्र  की लाज उतार रहे| डूबकी पानी में लगाते भी आपको सबने देखा है | रंग सियार का उतरेगा जरुर, ये तो पक्का है, इतनी घृणा में संशय के कुहासे जो आप कर रहे बिखराने की कोशिश वो बताता है कि आप बिना आकलन के राजनीति कर रहे है| सफलता पाना और उस पर बने रहने का माद्दा जिनमे होता है,वे  विपरीत परिस्थितियों में भी जीत छीन ही लेते है | अब राजनितिक रस्साकशी में आप मर्यादाएं तार-तार कर रहे है | संविधानिक पदों का अपमान कर रहे है | यदि आप बैठे तो भी क्या यही आचरण आपको स्वीकार्य होगा किसानो के बहाने अपनी -आपनी शान बढ़ाने की ये ओछी राजनीति है | चव्वनी को रुपया से बड़ा समझने की ये है भूल….

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