मुखिया के मुखारी – हर हाल में छत्तीसगढ़िया को सबले बढ़िया बने रहना है…

मुखिया के मुखारी – हर हाल में छत्तीसगढ़िया को सबले बढ़िया बने रहना है…

छत्तीसगढ़ शांति और सौह्द्र की भूमि धान का कटोरा दक्षिण कोशल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का नौनिहाल आदि काल से लेकर आज तक हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है वर्तमान और भविष्य उज्जवल ही रहेगा, क्योंकि छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, सामाजिक ताना-बाना इतना मजबूत की कभी कोई समरसता टूटी या बिखरी कोई घटना दुर्घटना का वर्णन इतिहास में कहीं नहीं मिलता । छत्तीसगढ़ के गठन के बाद हमें एक प्रदेश के रूप में नई पहचान मिली गई ,हम विकास के पथ पर अग्रसर भी हैं। राजनैतिक पहचान के साथ राजनीति भी अपनी गति से चल रही है और अपने रंग भी दिखा रही। विगत विधानसभा चुनाव के परिणाम ने छत्तीसगढ़ की परंपराओं को और प्रतिष्ठित किया । न जाति, न धर्म, लोकप्रियता और जन समस्याओं के लिए कार्य करने वाले सारे उम्मीदवार ऐतिहासिक मतों से विजयी हुए ऐसी समरसता की सारे राजनीतिक समीकरण धराशयी हो गए।

अद्भुत संयोग पर धीरे-धीरे इस समरसता को ग्रहण लगना शुरू हो गया ,यदि इस पर चेतना जागृत नहीं हुई तो इस परिवेश को छिन्न-भिन्न होने में वक्त नहीं लगेगा। कवर्धा वो विधानसभा जहां से उम्मीदवार जीता सर्वाधिक मतों से ये जीत बताती है कि मतदाता ने सिर्फ और सिर्फ प्रतिभा देखी , न जात-पात ,न धर्म । पर आज छत्तीसगढ़ में विगत दो दिनों से कवर्धा मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है । कारण जो है वो बता रहा है कि कृपणता बढ़ रही है। धर्मांतरण का मुद्दा पूरे प्रदेश में है, पर इसकी तरफ ना सत्ता पक्ष का ध्यान है और न ही विपक्ष का, आरोप -प्रत्यारोप में उलझा कर वास्तविकता को छुपाने की भरपूर कोशिश हो रही है ।

यदि शहर -शहर ऐसी ही घटनाओं की पुनरावृति हो रही है, तो क्यों हो रही है? यदि सेवा ही ध्येय है तो सेवा के लिए धर्म परिवर्तन क्यों ? यदि जाति प्रथा हिंदुओं की बुराई है तो जाति विहीन धर्मों में रहकर कोई दलित कैसे ? जिन धर्मो में जाति व्यवस्था ना होने का ढिंढोरा पीटा जाता है, उसी धर्म में आप दलित खोज भी लेते हैं, राजनैतिक श्रेय भी पूरे लेते हैं ,क्या ये उस धर्म के साथ अन्याय नहीं है ? धर्मांतरण के मुद्दे पर सरकार की खामोशी के कारण सबको समझ में आते हैं पर विपक्ष की खामोशी समझ से परे है ,यदि धर्मांतरण हो रहा है तो कहीं ना कहीं हमारी सक्रियता और सजगता में कमी है । सक्रियता और सजगता से दूर विपक्ष कैसे सत्ता साध लेगा । भाईचारा और समरसता यदि कवर्धा में काम आ सकती है ,सारे जातिगत, धार्मिक समीकरणों के इतर परिणाम आ सकता है तो इस परिणाम को पूरे मन से स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है ।

बहुमत में आप मेरा अपना और दूसरा कैसे ढूंढ रहे हैं। क्या यही है सहिष्णुता ,  विधायकी पाने के लिए दिल बड़ा चाहिए तो आप भी पार्षदी देने के लिए अपना दिल बड़ा करिए..
संस्कारों की डोरी क्यों तोड़ी जा रही है। ऐसी कौन सी शक्ति है जिसने इतना प्रश्रय दिया कि आप संस्कार और संस्कृति के विरुद्ध चल रहे हैं ।क्या है ये संस्कृति समरसता और भाईचारा राजनितिक परिणामो के लिए कवर्धा में है वो अलग है, मौदहापारा के पार्षद बनने का मापदंड अलग ! क्या ये एकतरफा राजनितिक सोच को प्रदर्शित नहीं कर रहा !
हिंदुस्तान में आज भी संख्या आधारित लोकतंत्र है जहां जिस धर्म के लोग ज्यादा है वहीं वो हावी है !जम्मू कश्मीर का कोई हिन्दू आजतक मुख्यमंत्री नहीं बन पाया न श्रीनगर बारामूला का सांसद क्यों ? क्या ये मापदंड सही है !

कवर्धा के लाल भी चुप है ,कह कुछ नहीं रहे आश्चर्य है ऐसी चुप्पी क्या सामर्थयवान होकर भी नेतृत्व से दूर भागना राजनैतिक शक्ति के क्षीण होने का उदाहरण नहीं है ! कहां है विपक्ष?कहां है विपक्ष के नेता? कहां है हिन्दू हितो की बात कहने वाले ? क्या हम सिर्फ मतदाता है यदि हमारे मत पर अघात हो तो भी आप मौन रहेंगे तो हम किस काम के मतदाता आपके ?कहां है सारे मोर्चा सब मौन भविष्य की राजनीति के कर्ता – धर्ता भी मौन युवा मोर्चा वालो को तो मेरी काली – काली कार डार्लिंग से फुर्सत नहीं है बड़े नेताओ को सत्ता –विलाप में रूदाली बने रहना ही सुहा रहा है। छत्तीसगढ़ की शांत फिजा को बदलने की कोशिश जो की जा रही है क्या ये छत्तीसगढ़ के साथ अन्याय नहीं है ।हमें हर हाल में –छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया बने रहना…

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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