किसान नहीं रहे अब किसी की शान – इस देश ने बहुत से आंदोलन देखे हैं । दावा तो ये भी है, इस देश को आजादी अहिंसा के बल पर मिली आजादी के बाद इस देश में सबके लिए मौलिक अधिकार और कर्तव्य जिनमें समानता का अधिकार भी मिला । किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता की कहानी जो लिखी जा रही है वो अब इंसानी मौतों तक आ पहुंची है।
आंदोलन के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है उसे आंदोलन तो कहा नहीं जा सकता, अधिकारों के लिए कर्तव्यों की इतिश्री ।
ना कानून का सम्मान, ना जनमत का मान, मुट्ठी भर लोग क्षेत्रीय फायदे के लिए अपने अधूरे राजनीतिक ख्वाबों को दलाली के माध्यम से सत्ता की लाली अपने गालों पर लगाने इतने लालायित हो गए हैं कि खून से सने अपने चेहरों से भी उन्हें राजतिलक सा महसूस हो रहा ।
दिल्ली में अराजक माहौल बना गणतंत्र दिवस का माखौल उड़ा लाल किले की अस्मिता पर प्रहार कर भी इन्होंने नैतिक हार नहीं मानी थी। जब हार नहीं मानी तो यही होना था जिंदगीया हार गई इनकी जिद्द के आगे क्या एमएसपी जान से बड़ी है ? क्या किसान नागरिकों से बड़े हैं ? किन लोगों ने नौ नागरिकों की हत्या की या करवाई ।
सब मौन क्यों हैं ? उन नौ में से एक मीडियाकर्मी भी है, पर उसका जिक्र तक नहीं हो रहा समानता के अधिकार की बात करने वाले वो जो गरीब ड्राइवर पीट-पीटकर मार दिया गया क्या यही किसान आंदोलन है ? या उसका अपराध ये है कि वो दलित नहीं है।ब्राह्मण सम्मेलन और फिर ब्रह्म हत्या करने वालों का समर्थन, गजब है तुम्हारी राजनीतिक समझ गरीब स्वर्ण के पीटते दम तोड़ते वीडियो से ज्यादा झाड़ू मारती नेत्री के वीडियो दिखाए जा रहे ।
मर गई संवेदना मीडिया की किसानों के नाम पर किसानों के जमीन हड़पने के आरोपी के विशेष साक्षात्कार दिखाए जा रहे हैं।
सुरक्षा करती पुलिस इन नेताओं की तो, इन्होंने तो पुलिस को चौकीदार से भी कमतर समझ लिया। दिन हो या रात इन्हें बस राजनीति करनी है ,पर अफसोस इनकी राजनीति भैगेपन से ग्रसित है। तभी तो राजस्थान, पंजाब के किसान की समस्या इन्हें दिखती नहीं है बकल उतारने चले थे ट्रैक्टर चढ़ाते भी सबने देखा, अपनी प्रवृत्ति के अनुसार दुनिया को समझने की भूल कर बैठे ।
यूपी को दिल्ली समझ लिया ,आरोपों का लक्ष्य निर्धारित है, अजय मिश्रा के बहाने ब्राह्मण वोट लुभाने योगी को ब्राह्मण विरोधी बताने की होड़ है । मर गया जो गरीब का ड्राइवर बच्चा उसकी मां की आंसुओं की किसे कद्र है कोई कहे विदेशी, कोई कहे मनुवादी, कोई कहता शोषक है, ऐसे में ब्राह्मणों का होना यही हश्र है । आरोप लग जाए आप पर तो मंत्री होकर मिमयाते रहिए मर जाएं आप तो पहले से आपके लिए भावनाएं मरी हुई है। अभी कि क्या हम तो दशकों की नफरत झेल रहे ।
तिलक, तराजू और तलवार इनको जूते मारो चार के नारे को राजनीतिज्ञों ने ही राजनीति में प्रतिष्ठित किया ।जूते की जगह डंडे चल रहे, अपमान की पीड़ा से मृत्यु का वरण छोटा है ना राजा तब थे, ना अब है फिर भी सारे राजों का हम पर ही भार है । क्या इन नौ भारतीय नागरिको के जीवन से हाथ धोने की जवाबदारी सरकार ,न्यायलय , राजनीतिक दल और किसान नेता लेंगे या यू ही गाल बजाते रहेंगे। कहां है वों समानता, कल तक आदत थी पशुओं पर लट्ठ बरसाने की, आज इंसानों पर बरसा रहे ।
अर्धसत्य को गढ़ लो जितना सत्य नहीं बन पाएगा, रंग लो जितने रंग सियार तुम शेर नहीं बन पाओगे। ना हो तुम किसान ना कभी किसान बन पाओगे । अन्नदाता हो नहीं सकता मृत्युदाता।
लट्ठ बरसाते देख सबने समझ लिया, किसानों की शान पर डाका, डकैत ने मार लिया ।
ना तुम हो किसान – ना अब रहोगे किसी की शान…….
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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