कुछ चले गए है ,कुछ जा रहे हैं, और कुछ जाने वाले हैं, और कुछ यहीं रह जाएंगे, मतलब कुछ को जाना नहीं है,अब जिनको जाना नहीं है उनका आत्मविश्वास गजब का है और जो जा रहे उन्हें वर्तमान की चिंता है,भविष्य वो ठीक कर ही लेंगे यदि वर्तमान ठीक रहा। कुछ-कुछ का सब कुछ अब दिल्ली में ही दिख रहा है। कुछ -कुछ में कितना बट गया सब कुछ ,इस सब कुछ के पीछे की एक ही कहानी है। जिसका पता तो सबको है पर बड़ो की बड़ी बातें तो बड़े ही इस पर मुहर लगा सकते हैं ,आम जनता के मुहर की कीमत तो पांच साल में एक बार वाली ही हैं, जनमत के मुहर के उपर हाईकमान का मत है । ढाई आखर प्रेम की परिभाषा छत्तीसगढ़ में ढाई के चक्कर में ऐसी परिवर्तित हो जायेगी किसी ने नहीं सोचा था ।ठहरे हुए पानी में कंकड़ मार – मार जल तरंग देखने की इच्छा क्यों और काहे कुछ लोगों की थी, है और रहेगी ये भी एक बड़ा प्रश्न है ? जनसमस्याओं से राजनीतिक दलों का वास्ता ही नहीं रहा वो अपने ही समस्याओं में बाबस्ता हैं, सत्ता और सिर्फ सत्ता प्राप्ति की राजनीति हो रही,जनमत का अब कोई मोल रहा नहीं । समय की नजाकत को बिना भापे आप चलेंगे तो अरमानों का भाप बनकर उड़ना तय है । और छत्तीसगढ़ की राजनीति में यही हो रहा।
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की निर्णय लेने में देरी ने प्रदेश की राजनीति में संशय ही बढ़ाया है । माननीय विधायक प्रदेश छोड़ दिल्ली में डेरा डाले हैं, कह रहे विकास उनका उद्देश्य और इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए केन्द्रीय नेतृत्व को प्रदेश आने का न्योता देने आये है । पता नही कौन सा निमंत्रण जिसके मसौदे पर ही सहमति नहीं बन पा रही निमंत्रण देने वालोँ को समय ही नहीं मिल रहा अब लोकतंत्र के ये निर्वाचित प्रतिनिधि कितने अधिकार संपन्न है ये साबित हो रहा, ये निमंत्रण देने में इतना वक्त जाया कर रहे है तो इनके लिए बाकी विकास के कार्य कितने दुरूह होंगे ।स्वाभिमानी क्या अब राजनीति में रह पाएगा ।सारे माननीयों का एक ही राग है – व्यक्तिगत कामो से दिल्ली आए अद्भुत संयोग है ,बहुमत में ही बहू सास वाली झोल है ।झोली में आई सत्ता के लिए सबकी आंखें खुली हुई है। वक्त -वक्त की सीमा के नाम पर ही वक्त – वक्त में हिस्सेदारी सत्ता में मांगी जा रही है। एकता ,त्याग,समन्वय की बात करने वाले राजनीतिज्ञों की अपने लिए इन सिद्धांतों के प्रति कितनी कृपणता है देख लीजिए । जो सत्ता के लिए त्याग की बातें करते हैं क्या वों सही में त्याग क्या होता है समझते हैं ।
पंजाब की राजनीतिक हलचल का असर छत्तीसगढ़ पर भी पड़ना ही था, उड़ता पंजाब की तर्ज झगड़ता छत्तीसगढ़ सब रोज देख रहे हवाओं में भी सरसराहट आने – जाने की नित नई । शब्दभेदी बाण चल रहे, जय -वीरू अब कहां जय – वीरू रहे। किसान आंदोलन से सत्ता के करीब पहुंचे या यथार्थ से और दूर हो गए, अराजकता को आंदोलन बना कैसे लोकतंत्र का कर लोगे भला । उच्चतम न्यायालय ने भी बता दिया पर राजनीतिज्ञ दल ना इसकी मीमांसा कर रहे न परिणामों पर विचार । इतनी अदूरदर्शिता में कैसे सफलता मिलेगी । जन सरोकारों से दूर सरकारे एक दूसरे को सरकाती रहेगी तो फिर जनता का क्या होगा ? वरिष्ठता का ध्यान आजकल राजनीतिक दलों में मार्गदर्शक वाली भूमिका को प्रशस्त करता है । और यदि आप पर्यवेक्षक हो गए तो फिर हाईकमान का भरोसा है आप पर ।
उ.प्र.चुनाव के लिए प्रदेश के मुखिया वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाए गए हैं अब इस मनोनयन में ही नई राजनीतिक ईबारत दिख रही । तिवारी जी तो पहले से लगे थे अब मुख्य जी को भी जवाबदारी दे दी गई। राजनीति में मान तो बढ़ रहा है छत्तीसगढ़ का अब उ.प्र. कैसे जीता जाएगा ये छत्तीसगढ़ के विजेता बताएंगे । ये बात अलग है कि भारी जीत कई बार अपने लिए ही भारी हो जाती है, सात से (पिछली विधानसभा में कांग्रेस के 7 विधायक थे ) सत्ता की डगर है तो कठिन पर राजनीति में कुछ भी संभव है ।यदि इन परिस्थितियों में उ.प्र. जीत लिया तो सोना का जलकर कुंदन बनना तय है ।वैसे अभी तो सोना की कीमत ही नहीं ठहर पा रही ,भाव रोज ऊपर नीचे हो रहे,छत्तीसगढ़ में भी रोज ऊपर नीचे राजनीतिक दांव चल रहे ।मुख्यमंत्री आज से वरिष्ठ पर्यवेक्षक भी बन गए हैं उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए क्या यही स्थिति बनी रहेगी उत्तर प्रदेश चुनाव तक उपापोह की स्थिति है जिसका जवाब शायद मनोनीत करने वालों के पास भी नहीं है।
सार ये है —- छत्तीस के छत्तीसगढ़ी दांव यूपी में आजमाएंगे….
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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