मुखिया के मुखारी –विवादों से नहीं वादों से नाता रखिए…

मुखिया के मुखारी –विवादों से नहीं वादों से नाता रखिए…

सलाह है कि सलाहकारों को इस कहानी से समझे, जंगल में भटकते पंडित जी को अपनी तरफ बब्बर शेर आता  दिखा सांसो पर नियंत्रण खो चुके पंडित जी को आश्चर्य हुआ कि शेर के साथ हंस  भी था, नजदीक आ शेर ने पंडित जी को प्रणाम किया कारण हंस की सलाह थी कि ये आपके कुल पुरोहित हैं,आश्रय के साथ उनको बिदाई में धन-धान्य भी मिला वर्षों उनका गुजारा चला धन के खत्म होने के बाद शेर के पुरोहित होने का अभिमान लिए पंडित जी फिर जंगल पहुंचे शेर से कहा पहचाना जंगलराज ने उत्तर दिया पहचाना तो मैं तब भी लिया था पर तब मेरा सलाहकार हंस था पंडित जी अभी मेरे सलाहकार मांस, भक्षण कर रहे गिद्द और सियार हैं वों पास आए आपको देखे और कोई सलाह दें जिसे मानना मेरी मजबूरी हो जाए उसके पहले आप यहां से निकल जाइए । ये होती है सलाहकारों की भूमिका और उनकी प्रवृत्ति । उनकी यही मनोवृति जन नेताओं में आसक्ति पैदा करती है सत्ता के प्रति और वों  जन नेता से राजनेता बन जाते हैं फिर सिर्फ राज और राज ।

पुरुष के सौभाग्य उदय कोई नहीं जानता ज्योतिष वैदिक शास्त्र गुरु वशिष्ठ त्रिकालदर्शी ज्योतिष थे पर उनके फलादेश की गणना में भी गलती हो गई थी उन्हें राजा दशरथ को कतरा मागने पर समुद्र दे दिया था उनसे भी गलती हो गई थी ।निसंतान दशरथ को चार पुत्रों की भविष्यवाणी उन्हीं की थी। पर राजतिलक के शुभ मुहूर्त में अवतारी  भगवान श्री राम को वन गमन करना पड़ गया था जातक का भाग्य बाचते वक्त  संगदोष की गणना में चुक हो जाती है। कैकई संगदोष से ग्रसित थी जिसका प्रभाव राजतिलक पर पड़ा ।

अब संगदोष का दुष्प्रभाव राजाराम पर पड़ा तो इस संगदोष से कलयुगी राजनेता कैसे बच पाएंगे ,पर सत्ता की मदांधता है,संग ये ऐसे सलाहकारों का रखते हैं जिनमें संगदोष का परिणाम मिलना जरूरी है । अब यही सब छत्तीसगढ़ की राजनीति में हो रहा है सलाहकार की भीड़ रहे और सरकार को घड़ो में बांट रहे । एक तरफ माननीय अपने ही  मुख्यमंत्री पर आरोप लगा रहे छिछालेदर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वहीं गिद्द सियार वाली प्रवृत्ति से कैसे  सुराज स्थापित होगा । सो हो वही रहा है, अपनी ही लोकप्रियता को घड़ो में बांट रहे, सरकार को जन से अपने खास की बना रहे,मारपीट  के बाद आमजन को न्याय मिले ना मिले सांसो को बचाने के लिए खेमेंबाजी को हथियार बनाया जा रहा है । जय वीरू बसंती के लिए नहीं लड़े यहां सभा के लिए लड़ाई हो रही है।

कैसी नियत है राजनीति की  जिस सत्ता प्राप्ति के लिए एका था वही एका सत्ता प्राप्ति के बाद टूट रहा है ।राजा को सलाह मानना जरूरी नहीं  पर सत्ता की आसक्ति और स्वार्थ में हंस और सियार की पंक्ति में अंतर  जानकर भी सलाहें मानी जाती है। लोकप्रियता की मिसाल वाली ऐतिहासिक बहुमत की सरकार आपसी रस्साकशी में उलझी हुई है ।कैसी राजनीतिक परिस्थिति बन गई है, व्यक्तित्व की सौभाग्यता भी काम नहीं आ रही है । जतन सारे हो ही रहे होंगे पर परिणाम अभी तक तो सिफर ही है। यदि गढ़नी है छवि सरकार की या अपने -अपने नेताओं की व्यक्तव्यों पे ध्यान दीजिए अपनी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाइए राजनीति है रेत से भी  तेजी से फिसलती है और बिना रेत के जीत की इमारत कैसे बनेगी ? ध्यान दीजिए विवादों की जगह उन वादों पर जो आज तक पूरे नहीं हुए। छत्तीसगढ़िया बने रहे सबसे बढ़िया उसके लिए ये सब बंद करिए । बढ़िया विवादों से नहीं कामों से ही बन पाएंगे अब मर्जी है आपकी यदि आपमें छत्तीसगढ़िया अस्मिता के प्रति लगाव है तो प्रशासन में कसाव जरूरी है। सलाहें मिलती रहेंगी पर छवि आपकी अपनी है अपनी छवि के अनुरूप चलिए विवादों से नहीं वादों से नाता रखिए।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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