छत्तीसगढ़ में पारंम्परिक तीज त्यौहारों की श्रृखँला में भादो मास शुक्ल एकादशी को करमसेमी पर्व के रुप में मनाया जाता है इस दिन सभी गांवों में खेती किसानी के काम एक दिन के लिये रोका जाता है इस दिन खेतों की ओर जाना मनाही रहता है ,इस दिन सुबह से महिला पुरुष जिनको श्रद्धा हो उपवास रहते है एवं संध्याकाल से देर रात्रि तक एक पौधा जिसे कल्मी कहा जाता है उसका एक डाल को बडी श्रद्धा भाव के साथ ला कर एक सार्वजनिक स्थल में एक दिन के लिये स्थापित किया जाता है एवं उसकी पूजा अर्चना की जाती है।उस पौधा को धन की देवी लक्ष्मी का प्रतीक मानते हुये अपने घर परिवार के सुख सम्दृधि की कामना करते हुये उनसे जुडे कथा को पंडितो द्वारा सुनाया जाता है तथा करमा नृत्य के रूप में नाच गान कर लक्ष्मी देवी की सत्संग भजन किया जाता है। प्रातःकाल उसे नदी तालाब में गाते बजाते विसर्जन कर दिया जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन से खेतों में धान के पौधा करम सेमी की कथा सुनकर बाली निकला प्रारंभ करता है।इस परंम्परा को जीवित रखते हुये नगर टुण्डरा के टिकरापारा धरसापारा में भब्य आयोजन हर साल की भांति किया गया जिसमें महिलाएं बडी संख्या में शामिल हुई,उक्त कार्यक्रम में शामिल होने राजमहंत पी के घृतलहरे भी पहुंचे एवं महिलाओं को परम्परा को जीवित बनाये रखने के लिये अपनी शुभकामना दिये।मौके पर घनश्याम बारले,गोरेलाल खूटे,रामेश्वर रात्रे सहित फगनी खूंटे,रमौतीन बारले,मंजू बंजारे,हेम खुंटे,रीमा बारले,गनेशी बारले,प्रभा बंजारे,पिंकी टंडन,करीश्मा खूंटे,भानमति भाष्कर,लोकेश्वरी बंजारे,उर्मिला बारले शामिल रहीं।
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