इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद स्थल को कृष्ण जन्म भूमि के रूप में मान्यता देने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है। चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने पिछले महीने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी मामले पर हाईकोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया है।
साल 2020 में वकील महक माहेश्वरी ने याचिका दायर की गई थी। जिसमें दलील दी गई कि ये स्थल वास्तव में कृष्ण जन्मभूमि है। इसका प्रमाण विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज है। यहां तक कि मथुरा का इतिहास रामायण काल से भी पहले का है और इस्लाम सिर्फ 1500 साल पहले आया है।
याचिका में यह भी दलील दी गई कि इस्लामिक न्यायशास्त्र के अनुसार यह एक उचित मस्जिद नहीं है। अधिग्रहित जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। हिंदू न्यायशास्त्र के अनुसार, एक मंदिर है, भले ही वह खंडहर हो। इसलिए मंदिर की जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए और उस जमीन पर मंदिर बनाने के लिए कृष्ण जन्मभूमि जन्मस्थान के लिए एक उचित ट्रस्ट बनाया जाए।
कथित तौर पर कृष्ण जन्म स्थान पर बनी विवादित संरचना की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा अदालत की निगरानी में जीपीआरएस-आधारित खुदाई के लिए एक अतिरिक्त प्रार्थना की गई।
जनहित याचिका याचिका में कहा गया
जनहित याचिका में कहा गया कि भगवान कृष्ण का जन्म राजा कंस के करागर में हुआ था और उनका जन्म स्थान शाही ईदगाह ट्रस्ट द्वारा निर्मित वर्तमान संरचना के नीचे है।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि 1968 में सोसायटी श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन समिति के साथ एक समझौता किया, जिसमें देवता की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बाद में दे दिया गया।
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