बस्तर दशहरा 2023 : ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में निभाई गई बेल जात्रा रस्म, जानिए इसके पीछे की कहानी

बस्तर दशहरा 2023 : ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में निभाई गई बेल जात्रा रस्म, जानिए इसके पीछे की कहानी

जगदलपुर : ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का प्रमुख रस्म बेल जात्रा विधान विधि विधान के साथ पूरा किया गया। इस अवसर पर परंपरा अनुसार बस्तर राजपरिवार, राजगुरु व मांझी-चालकी सरगीपाल स्थित बेल वृक्ष में न्योता देने पहुंचे थे। गाजे-बाजे के साथ ग्राम सरगीपाल पहुंचकर पूजा-अर्चना किया गया। तदुपरांत देवी स्वरूपा जुड़वा बेल को सम्मानपूर्वक दंतेश्वरी मंदिर लाया गया।

परंपरानुसार बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव, पुजारी दंतेश्वरी मंदिर प्रेम पाढ़ी, राजगुरु अरुण ठाकुर, नवीन ठाकुर व मांझी-चालकी सरगीपाल पहुंचे। यहां स्थित बेल वृक्ष में पूजा-अर्चना उपरांत चिन्हांकित जुड़वा बेल में लाल वस्त्र बांधा गया तथा देवी को न्यौता दिया गया। इसके बाद गाजे-बाजे के साथ राजपरिवार व अन्य लोग सरगीपाल पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने नाच-गाकर उनका स्वागत किया और जमकर हल्दी भी खेली।

देवी को चढ़ाई गई बकरे की बलि

बेल वृक्ष के नीचे दंतेश्वरी पुजारी प्रेम पाढ़ी व अन्य लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित कर विधिविधानपूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद देवी को बकरे की बलि चढ़ाई गई। पूजा के बाद बेल जोड़े को ससम्मान वृक्ष से तोड़कर नए वस्त्र में लपेटा गया।

इस दौरान ग्रामीणों ने आपस में हल्दी खेली और गाजे-बाजे के साथ बेलदेवी को विदा किया गया। परंपरा अनुसार बेल जोड़े को दंतेश्वरी माई के मंदिर में रखा गया। इस दौरान राजपरिवार के सदस्य कमलचंद चंद भंजेदव, दशहरा कमेटी उपाध्यक्ष विजय भारत, मांझी, चालकी, तहसीलदार जयकुमार, अर्जुन श्रीवास्तव समेत सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल रहे।

मान्यता है कि रियासतकाल में युवती को देख मोहित हुए थे महाराजा

मंदिर समिति के उपाध्यक्ष विजय भारत ने बताया कि मान्यता है कि रियासतकाल में तत्कालीन नरेश इस इलाके में शिकार पर गए थे। बार-बार शिकार करने पर भी शिकार किया गया जीव अदृश्य हो जाता था। उसकी जगह जुड़वा बेल दिखता था। तब राजा को बेल वृक्ष के असाधरण होने का मान हुआ।

यह भी किवंदति है कि इसी वृक्ष के नीचे दो सुंदर युवतियां राजा को दिखाई पड़ीं, जिन पर वह मोहित हो गए। फिर उन युवतियों के देवी होने की बात ज्ञात हुई। कालांतर में इस वृक्ष व इसमें फले जुड़वा बेल को देवी स्वरूपा माना गया। दशहरा पर्व के दौरान बेलदेवी को राजपरिवार, दंतेश्वर मंदिर के प्रधान कृष्ण कुमार पाढी एवं राजगुरू के द्वारा विधिवत न्यौता दिया जाता है। वहीं गांव वाले बेल देवी को कन्या स्वरूप मानकर इसकी विदाई के रूप में हल्दी भी खेलते हैं।

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