कंकाली मंदिर का शस्त्रागार साल में केवल दशहरा की सुबह खुलता है शाम ढलते ही शस्त्रागार पूरे एक साल के लिए बंद हो जाता है? जानिए कहानी

कंकाली मंदिर का शस्त्रागार साल में केवल दशहरा की सुबह खुलता है शाम ढलते ही शस्त्रागार पूरे एक साल के लिए बंद हो जाता है? जानिए कहानी

रायपुर :  छत्तीसगढ़ के पुरानी बस्ती में स्थित कंकाली मंदिर को नागा साधुओं ने मां कंकाली के स्वप्न में दिए आदेश पर 750 साल पहले निर्माण करवाया था। मंदिर के ठीक सामने भव्य सरोवर बनाकर बीच में छोटा सा मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना की गई है।

इस मंदिर में शुरुआती दौर में नागा साधु और शिवभक्त पूजन-दर्शन करने आते थे। शहर की पुरानी बस्ती क्षेत्र में स्थित मां कंकाली मंदिर का इतिहास सबसे अलग और पुराना है। कंकाली मंदिर का शस्त्रागार साल में केवल एक ही दिन यानि दशहरा की सुबह खुलता है। फिर शाम ढलते ही शस्त्रागार पूरे एक साल के लिए बंद हो जाता है। इस दौरान दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगती है। लोग माता के सामने मत्था टेकते हैं और पुराने अस्त्र-शस्त्र के दर्शन करते हैं।

मान्यता है कि जब भगवान राम और रावण का युद्ध हो रहा था तब देवी युद्ध के मैदान में प्रकट हुई थीं और श्रीराम को अस्त्रों व शस्त्रों से सुसज्जित किया था। बस इसी मान्यता के चलते इनके शस्त्रागार का महत्व बढ़ जाता है और लोग इसके दर्शन मात्र के लिए दूर-दूर से आते हैं। ये शस्त्रागार केवल दशहरा के दिन खुलता है क्योंकि इसी दिन राम ने रावण का वध किया था।

वहीँ कंकाली तालाब की बात की जाए तो भीषण गर्मी के समय जब राजधानी के नदी व तालाब सूखने लगते हैं तब भी छत्तीसगढ़ का ये चमत्कारी कंकाली तालाब हमेशा की तरह लबालब भरा रहता है। इसी कारण आज तक कोई भी इस तालाब में डूबे मंदिर के दर्शन नहीं कर पाया है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि किसी के शरीर में खुजली हो या चर्म रोग के कारण कोई परेशान हो तो तालाब में डुबकी लगाने से चर्म रोग में राहत मिलती है। 

जानिए मंदिर का महत्व
बताया जाता है कि मां कंकाली मंदिर का निर्माण जहां हुआ वहां पर पहले शमशानघाट था। शमशानघाट में बड़ी संख्या में नागा साधु तांत्रिक साधना के लिए आते थे। मंदिर के आसपास नागा साधुओं की समाधि भी है। मंदिर के भीतर नागा साधुओं के कमंडल, वस्त्र, चिमटा, त्रिशूल, ढाल, कुल्हाड़ी आदि रखे हुए है। शस्त्रों का पूजन इसी दिन होता है। 

कहा जाता है कि महंत कृपालु गिरी महंत के सपने में देवी ने दर्शन दिए और तालाब खुदवाने के साथ मंदिर बनाने को कहा। इसके बाद कृपालु गिरी महंत ने मंदिर का निर्माण कराया और माता उस मंदिर में चली गई। लेकिन जाते समय ये विजयादशमी के दिन इस मठ में वापस आने का आश्वासन भी माता ने महंत को दिया और उसी दिन से एक दिन के लिए इस मठ में विराजमान करती है और इसी दिन श्रद्धालुओं  के लिए मंदिर के पट को खोला जाता है। साथ ही माता के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है, क्योंकि माता इस दिन अस्त्र-शस्त्रों के साथ विराजती हैं। माता के दर्शन करने हर साल यहां लोगों की जबरदस्त भीड़ लगती है। 









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