अंगदान को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ दान कहा जाता है, माना जाता है कि इस महान दान से बढ़कर कोई धर्म-दान-पुण्य का काम नहीं होता। अलीगढ़ के संतोष ने भी अंगदान से 4 लोगों की जिंदगी संवारी है और उन परिवारों की झोली खुशियों से भर दी।
अपनों को रुला कर दूसरों को खुशियां देने वाले संतोष की कहानी सुनकर हर किसी की आंखें नम हो जाएंगी। संतोष के मासूम बच्चे सभी से पूछते हैं कि पापा कब आएंगे? तो वहीं संतोष की पत्नी बेबस, बेसहारा और बेसुध हालत में है…संतोष के बुजुर्ग पिता की आंखों में बेटे के जाने का गम है, उसके दोनों भाई लाचार हो चुके हैं।
उसकी 6 बहनें अपने लाडले भाई के इंतजार में बैठी हैं। लेकिन परिवार को जितना संतोष के जाने का गम है, उतना ही सुकून 4 लोगों को नई जिंदगी मिलने का भी है। परिवार का कहना है कि जिनके शरीर में संतोष के अंग प्रत्यारोपित हुए हैं, अगर वो लोग हमसे रिश्ता रखेंगे तो हम भी अपने जैसा प्यार देंगे।
संतोष की मौत के बाद जहां घर में मातम पसरा है, वहीं अंगदान का फैसला मिसाल बन चुका है…
जिस वक्त देश में हर साल 2 लाख लोगों को किडनी और आंखें, 50 हजार लोगों को हार्ट और लिवर की जरुरत है और अंगदान के लिए दस लाख में से एक इंसान भी मुश्किल ही आगे आता है…ऐसे समय में संतोष के ब्रेनडेड होने के बाद परिवार के एक फैसले से 4 लोगों की जिंदगी में सवेरा आया है ।
अलीगढ़ जिले में शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर छर्रा विधानसभा क्षेत्र में बरला थाना क्षेत्र है…जहां टूटी सड़कों से होते हुए अरनी गांव का रास्ता जाता है…इसी गांव में संकरी गलियों के बीच है संतोष का घर…जहां रिश्तेदारों का जमावड़ा था, रोते-बिलखते लोग संतोष के किस्से बता रहे थे, वहीं संतोष की मौत के बाद पत्नी ममता सहमी थी…आंखों में आंसू सूख गए थे लेकिन चेहरे पर दर्द साफ-साफ झलक रहा था। संतोष के दोनों बच्चे घर सभी लोगों से अपने पिता के बारे में बार-बार पूछ रहे थे।
कैसे हुई थी संतोष की मौत?
हर रोज की तरह 7 अक्टूबर तक 30 साल का संतोष अपने सपनों को पूरा करने में जी जान से जुटा था, सरकारी नौकरी की तैयारी के साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना और खेती को कमाई का जरिया बना रखा था, लेकिन 7 अक्टूबर को गांव के ही एक परिवार से मामूली विवाद के बाद झगड़ा हुआ, दूसरे पक्ष ने संतोष को घेरकर बुरी तरह जख्मी कर दिया, धारदार हथियारों से सिर पर ताबड़तोड़ प्रहार किए । कुछ वक्त तक अलीगढ़ के ही प्राइवेट अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर में इलाज चला और फिर बाद में संतोष को दिल्ली के एम्स रेफर कर दिया गया ।
14 अक्टूबर को संतोष को डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया । इस बीच एम्स में ORBO (ऑर्गन रिट्राइवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन) की टीम ने संतोष के परिवार से संपर्क साधा और अंगदान के फायदे बताकर उन्हें दूसरों को जिंदगी देने के लिए मनाया ।
अब आपके मन में सवाल होगा कि ये ब्रेन डेड क्या होता है?
दरअसल ब्रेन डेड के बाद दिल तो धड़कता है पर दिमाग पूरी तरह काम करना बंद कर देता है। उसके ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं होती। ऐसी कंडीशन में व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत माना जाता है। इसे ब्रेन डेड भी कहते हैं
यूं तो किसी की ब्रेन डेथ के बाद दिल, लिवर, किडनी, आंतें, पेनक्रियास, लंग्स डोनेट किए जा सकते हैं लेकिन संतोष के परिवार ने दिल, लिवर और दोनों किडनी दान की हैं । जिसमें हार्ट, लिवर और एक किडनी एम्स अस्पताल में ही दान की गई और दूसरी किडनी राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ।
अंगदान पर क्या बोला संतोष का परिवार ?
संतोष के पिता किशन लाल ने बताया कि बेटा तो चला गया लेकिन बाकी लोगों को जिंदगी मिल गई । उन्होंने आगे कहा कि, एम्स में एक महिला डॉक्टर ने संतोष की मौत के बाद उनसे संपर्क किया था और अंगदान के लिए अपील की थी । जिसके बाद हमने 4 अंग दान करने की रजामंदी दी ।
जब संतोष की पत्नी ममता से पूछा गया कि जिन लोगों के शरीर में उनके पति के अंग हैं उनसे रिश्ता रखेंगी या नहीं, इस पर उन्होंने कहा कि अगर वो लोग चाहेंगे तो जरूर बात की जाएगी।
संतोष के भाई करन सिंह ने कहा कि, एम्स में भाई की मौत के बाद मैडम ने अंगदान करने वालों के फोटो दिखाए थे और बताया था कि हमारे भाई का दिल दूसरे के अंदर जिंदा रहेगा । इसके बाद हम लोगों ने 15 मिनट के अंदर अंगदान करने का फैसला लिया। हालांकि जिन्हें अंग दान किए गए हैं उनके बारे में अभी जानकारी नहीं मिली है ।
एक व्यक्ति बचा सकता है 7 जिंदगियां
भारत में हर 6 मिनट में एक मौत ऑर्गन ट्रांसप्लांट न होने के कारण हो रही हैं। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में इसके पीछे अंगदान को लेकर अवेयरनेस यानी जागरूकता की कमी को बड़ी वजह माना जाता हैं।
यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 26 मार्च 2023 को 'मन की बात' के 99वें संस्करण में लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में अंगदान के लिए आगे आने की अपील की थी...और बताया था कि पिछले एक दशक में अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ी है, अंगदान करने वालों की संख्या में तीन गुना इजाफा हुआ है।
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