आज नरक चतुर्दशी है। भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नाम के दैत्य का वध किया था। तब से हर साल इस दिन नरक चतुर्दशी मनाई जा रही है। नरकासुर का निवास श्रीमद भागवत पुराण में प्राग्ज्योतिषपुर माना गया है, जो आज का असम ही है। इसके नाम कामरूप और मायालोक भी हैं।
नरकासुर तो मारा जा चुका लेकिन सदियों बाद भी उसके नाम पर गुवाहाटी में एक पर्वत और एक रास्ता है। नरक चतुर्दशी के मौके पर दैनिक भास्कर इस पर्वत और रास्ते तक पहुंचा। नरकासुर को लेकर आज भी असम में क्या मान्यताएं हैं? क्या कहानियां हैं? ये पता किया। असम में लोककथा है कि ये नरकासुर पथ खुद नरकासुर ने कामाख्या देवी के लिए बनाया था। ये रास्ता आज भी कामाख्या मंदिर की ओर जाता है। उसे इस रास्ते को एक रात में पूरा करना था लेकिन वो इसे पूरा नहीं कर पाया। नतीजतन आज भी ये रास्ता अधूरा ही है। नरकासुर आततायी था और उसने 16,100 लड़कियों को कैद कर रखा था। उसके साथ युद्ध में भगवान कृष्ण बेहोश हो गए थे, फिर सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया।
नरक चतुर्दशी पर आज हम नरकासुर के उसी प्राग्ज्योतिषपुर (असम) से उस पहाड़ी, नरकासुर पथ और नरकासुर तीनों की ही कहानी लेकर आए हैं।
ये कथा, श्रीमद् भागवत पुराण में है और असम में भी लोककथा के रूप में सुनाई जाती है।
कामाख्या मंदिर जिस नीलांचल पर्वत पर स्थित है उसके दक्षिण में पाण्डु-गौहाटी मार्ग पर जो पहाड़ियां हैं, उन्हें नरकासुर पर्वत कहते है। नरकासुर, कामरूप का राजा था और कामाख्या का प्रमुख भक्त था। जिस रास्ते अधिसंख्य लोग मंदिर तक पहुंचते हैं उसे नरकासुर पथ भी कहते हैं।
नरकासुर ने ब्रह्मा की उपासना की। वरदान मांगा कि हे देव, मैं भूमि पुत्र हूं और मेरी मृत्यु यदि हो तो मेरी माता के हाथों ही हो। वर प्राप्ति के बाद नरकासुर ने पृथ्वी के सभी राजाओं को परास्त करने के पश्चात, देवलोक को जीतना चाहा। इंद्र के दरबार पर आक्रमण किया।
प्रतापी नरकासुर को देख इंद्र सिंहासन छोड़ भाग गए। नरकासुर ने अपने महल में 16100 सुंदरियों को बंधक बना रखा था। देवलोक से वापसी के क्रम में नरकासुर, देवी अदिति (ऋषि कश्यप की पत्नी, देवता जिनके पुत्र माने जाते हैं।) के सुंदर दमकते कर्णफूलों पर मोहित हो गया, जिसे उसने झपट लिया। रोती-बिलखती अदिति, सत्यभामा के पास पहुंचीं। सत्यभामा भगवान कृष्ण की 8 रानियों में से एक थीं।
सत्यभामा, अदिति को कृष्ण के पास ले गईं। कृष्ण ने सत्यभामा से कहा, चलो हमारे साथ। तुम्हारी सदैव यही इच्छा रहती है न कि तुम मेरे संग युद्ध भूमि में रहो… तो चलो। गरुड़ पर सवार कृष्ण और सत्यभागा नरकासुर की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर (असम) की ओर चले।
कृष्ण को देख, नरकासुर ने अपने सेनापति मुरा को युद्ध के लिए भेजा। कृष्ण के एक ही वार से मुरा समेत तमाम सैनिक मारे गए। क्रोधित, नरकासुर महल से निकला और उसने अपने त्रिशूल से कृष्ण पर प्रहार किया जो उनके सीने पर लगा।
कृष्ण अचेतावस्था में युद्ध के मैदान पर गिर गए। कृष्ण की हालत देख, विचलित सत्यभामा ने नरकासुर पर बाण से प्रहार किया। नरकासुर मारा गया। सत्यभामा, फिर कृष्ण की ओर मुड़ीं। उन्हें हिलाया-डुलाया तो कृष्ण मुस्कुराते हुए खड़े हो गए। यह उनकी लीला थी। सत्यभामा साक्षात पृथवी की ही अवतार थीं और नरकासुर को मां के ही हाथों मारे जाने का वरदान था, सो वह मारा गया।
इस युद्ध के पश्चात नरकासुर की कैद से 16,100 सुंदरियों को मुक्त कराया गया। देवी अदिति के कर्णफूल प्राप्त किए गए। जिस दिन मायालोक का राजा नरकासुर मारा गया, उस दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है। नरकासुर वघ के बाद कैद से मुक्त हुई कन्याओं ने श्रीकृष्ण को घेरा और उनसे कहा कि अब उन्हें कौन स्वीकार करेगा? आप ही हमें स्वीकार करें। भगवान कृष्ण ने कहा- मैं आप सब को अपनाऊंगा, आपको अपना नाम दूंगा और जीवन भर आप सब का पोषण भी करूंगा। भगवान कृष्ण ने इन सब से विवाह किया।
नरक चतुर्दशी क्यों है खास
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर मारा गया था। इसी दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी। मान्यता है कि नरकासुर की मृत्यु से उस दिन शुभ आत्माओं को मुक्ति मिली थी।
मायालोक है यहां का प्राचीन नाम
गंगा सागर से गंगोत्री और गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा के दोनों किनारे यात्रा करने वाले व गंगा पर शोधपरक पुस्तक लिखने वाले निलय उपाध्याय का लोक विभाजन के बारे में मत है कि नैमिषारण्य का इलाका ऋषियों की तपोभूमि थी। हरिद्वार तक यह क्षेत्र था। इसे ज्ञान लोक या देव लोक कहते हैं। वहां से नीचे बनारस तक का इलाका कर्मकांड प्रधान माना गया है। यही मृत्युलोक है और बलिया से मंदार पर्वत (समुद्र मंथन) और उसके आगे का क्षेत्र पाताल लोक है। इस लोक के सात खंड हैं, इसमें ही एक मायालोक है।
तंत्र सिद्धियों और काले जादू के लिए फेमस
ये इलाका प्राचीन काल से ही तंत्र सिद्धियों और काले जादू के लिए प्रसिद्ध रहा है। नरकासुर के अलावा इस इलाके से महाभारत के भीम के बेटे घटोत्कच की कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। इसी प्राग्ज्योतिषपुर यानी असम से घटोत्कच ने भी मायावी शक्तियां हासिल की थीं, इसके बाद ही वो महाभारत का युद्ध लड़ने गया था। आज भी यहां बड़ी संख्या में तांत्रिक दुनियाभर से आते हैं। हर साल 22 से 26 जून के बीच लगने वाले कामाख्या के अंबूवाची मेले में भी तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है। आज भी असम के कई गांवों में काले जादू और तंत्र सिद्धि का काम बड़े पैमाने पर होता है। इसमें सबसे प्रसिद्ध असम का मयोंग गांव है, जहां आज भी लगभग हर घर में काला जादू किया जाता है।
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