इस साल कब है उत्पन्ना एकादशी व्रत? जानें इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इस साल कब है उत्पन्ना एकादशी व्रत? जानें इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

उत्पन्ना एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इस दिन व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्यता, संतान प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत है. यह एकादशी मार्गशीर्ष महीने में मनाई जाती है, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में कार्तिक के महीने में लोग इस दिन व्रत करते हैं.

उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी व्रत कहा जाता है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप हैं. मान्यता है कि उन्होंने इस दिन प्रकट होकर राक्षस मूर का वध किया था, जिसके बाद से उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्वयं माता एकादशी के आकर आशीर्वाद देने की वजह से लोगों का कल्याण हुआ.

उत्पन्ना एकादशी का महत्व

कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने की वजह से मनुष्य के पूर्व जन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके पापों का नाश हो जाए और आपके जीवन में सुख ही सुख हो तो उत्पन्ना एकादशी का व्रत आपके लिए सबसे उत्तम है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी तीर्थों के दर्शन के बराबर फल मिलता है.

उत्पन्ना एकादशी शुभ मुहूर्त

इस साल उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष माह में 8 दिसंबर को मनाई जाएगी. एकादशी तिथि का प्रारंभ 8 दिसंबर सुबह 5 बजकर 6 मिनट से होगा और अगले दिन 9 दिसंबर सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण समय 9 दिसंबर दोपहर 1 बजकर 31 मिनट से लेकर 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इस व्रत में जप तप, तपस्या और जान करने से जीवन में हमेशा सुख शांति बनी रहती है.

उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि

  • उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को पहले दिन ही यानी दशमी का रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए.
  • एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प कर लेना चाहिए.
  • इसके बाद विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए और उन्हें पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत आदि चीजें चढ़ानी चाहिए.
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन केवल फलों का ही भोग भगवान को लगाना चागिए.
  • भोग लगाने के बाद भगवान विष्णु जी की आरती करनी चाहिए.
  • समय समय पर भगवान विष्णु का सुमिर करना चाहिए.
  • उत्पन्ना एकादशी पर रात्रि में जागरण करना जरूरी है.
  • अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण कना चाहिए.
  • इस दिन किसी जरूरतमंद व्यकित या ब्राह्मण को भोजन और दान दक्षिणा देनी चाहिए.
  • इसके बाद स्वयं को व्रत खोलने के लिए तैयार करना चाहिए और पारण के शुभ मुहूर्त में ही व्रत खोलना चाहिए.

उत्पन्ना एकादश के दिन घर में चावल नहीं बनाने चाहिए और न ही खाने चाहिए. एकादशी के एक दिन पहले से ही चावल खाने छोड़ देने चाहिए. कहा जाता है कि जो भी इस व्रत को करेगा उसके घर को लक्ष्मी जी कभी खाली नहीं होने देंगी और जीवन की सभी परेशानियों को दूर कर देंगी. इस व्रत में किया गया दान का फल कई जन्मों तक मिलता रहता है.








You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments