भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने को लेकर क्या है मान्यता, जानें पौराणिक कथा

भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने को लेकर क्या है मान्यता, जानें पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म में हर सोमवार को भगवान शिव की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है और उन्हें धतूरा का भोग लगाया जाता है. भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने को लेकर कभी आपने सोचा है कि उन्हें धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है और इसके पीछे की क्या वजह है. अगर नहीं तो यहां पर आपको पूरी जानकारी दी जा रही है. पूजा करने से पहले जान लें कि भगवान शिव धतूरा चढ़ाने को लेकर क्या मान्यता है और हर सोमवार के दिन धतूरा चढ़ाने से कैसे भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में धतूरे को राहु का कारक माना गया है, इसलिए भगवान शिव को धतूरा अर्पित करने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प, पितृदोष दूर हो जाते हैं.

लोगों ने समुद्र मंथन की कहानी तो सुनी ही होगी. समुद्र मंथन में अन्य वस्तुओं के साथ साथ जहां एक ओर अमृत निकला था, तो वहीं विष (हलाहल) भी निकला था. अब समस्या यह थी कि उस विष पात्र को यदि धरती पर रखा जाता तो धरती उसके प्रभाव से विषैली हो सकती थी और इस पर रहने वाले समस्त प्राणियों के जीवन पर विपदा आ सकती थी.

ऐसे कठिन समय में जब कोई भी कुछ भी करने में सक्षम नहीं था तो भगवान शिव ने आगे आकर वह विष पात्र ले लिया और उसका सारा विष पी गए, लेकिन यह तो शिव की ही लीला है कि उन्होंने उस विष को अपने गले में रोक लिया और अपने शरीर के भीतर नहीं जाने दिया. तब से भगवान शिव का कंठ (गला) उस विष के प्रभाव से नीला हो गया. इसीलिये भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है.

जानें क्यों चढ़ाया जाता है धतूरा

विष पीने के बाद शिव भगवान व्याकुल होने लगे. वह विष भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ़ गया और भोलेनाथ बेहोश हो गए. देवताओं के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई. भगवान शिव को होश में लाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए. इस स्थिति में आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने देवताओं से जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने को कहा. देवताओं ने भगवान शिव के सिर से विष की गर्मी को दूर करने के लिए उनके सिर पर धतूरा और भांग रखा.

इसके बाद विष को शांत करने के लिए शंकर भगवान के माथे पर धतूरा और भांग रखकर उनका जलाभिषेक किया गया. ऐसा करने से शिव जी के सिर से विष निकल गया और भगवान होश में आ गए. पुराणों के अनुसार तब से ही शिव जी को धतूरा, भांग और जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई. भांग और धतूरे ने शिव जी की व्याकुलता दूर की. इसलिए यह दोनों शिव जी को बहुत प्रिय हैं. शिवलिंग पर भांग-धतूरा चढ़ाने से शिव जी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं.

इस स्थान पर ठहरे थे भगवान शिव

आपको बता दें कि ऋषिकेश से कुछ दूरी पर पर्वतों में स्थित नीलकंठ महादेव मन्दिर है. वहां के लोगों का कहना है कि विष पीने के बाद शिव जी अपने मन को एकाग्र करने के लिए यहीं आकर ठहरे थे. इस पहाड़ी क्षेत्र में भांग जंगलों में खूब उगती है. वैसे इस इलाके के वनों में बेल के वृक्ष भी खूब पाए जाते हैं. जब भी लोग ऋषिकेश जाते हैं तो नीलकंठ महादेव मन्दिर के दर्शनों के लिए जरूर जाते हैं. इसके अलावा आयुर्वेद में भी धतूरे का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है. इसमें पुराने से पुराने बुखार, जोड़ों के दर्द और विष प्रभाव को हरने की अद्भुत क्षमता होती है.

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