साल के आखिरी प्रदोष व्रत पर इन चीजों से करें भगवान शिव की पूजा

साल के आखिरी प्रदोष व्रत पर इन चीजों से करें भगवान शिव की पूजा

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व होता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव जी को समर्पित होता है. हर माह में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं, एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधि-विधान से आराधना की जाती है. आज मार्गशीर्ष मास की त्रयोदशी तिथि पर साल का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा. ऐसे में भोलेनाथ को प्रसन्न करने हेतु विधिपूर्वक पूजा अवश्य करनी चाहिए.

प्रदोष व्रत भगवान शिव की असीम कृपा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत में शाम के समय भोलेनाथ की विधिपूर्वक उपासना करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं और जीवन की परेशानियों से भी निजात मिलती है. मान्यताएं कहती हैं कि प्रदोष व्रत चंद्र ग्रह के दोषों को दूर करने के लिए भी बहुत फलदायी है.

प्रदोष व्रत 2023 शुभ मुहूर्त

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 24 दिसंबर सुबह 6 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और 25 दिसंबर सुबह 05 बजकर 54 मिनट तक रहेगी. पूजा का शुभ मुहूर्त 24 दिसंबर को शाम 5:30 से रात 8:14 बजे तक रहेगा.

प्रदोष व्रत पूजा सामग्री

सफेद चंदन, लाल गुलाल, अक्षत, धूपबत्ती, कपूर, बेल पत्र, धतूरा, गंगाजल, कलावा, फल, दीप, धूप, फूल, मिठाई, शमी के फूल, बेलपत्र आदि चीजें पूजा में अवश्य शामिल करें.

प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें. उसके बाद घर के मंदिर की साफ सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें. प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल (यानी संध्या के समय) में ही करें. भगवान शिव को जलाभिषेक करें और उनके समक्ष धूप दीप जलाकर रखें.

फिर भोलोनाथ को शमी के फूल, धतूरा, और बेलपत्र अर्पित करें. प्रदोष काल में भगवान शिव के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश का भी पूजन करना चाहिए. पूजन करने के बाद भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए. इसके बाद पूरे शिव परिवार की आरती करें और फिर शिव जी को मिठाई, फल और दही का भोग लगाएं. अंत में प्रसाद सभी में वितरित करें.

प्रदोष काल में क्यों की जाती है शिव जी की पूजा?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने त्रयोदशी तिथि के दिन ही समुद्र मंथन से निकले विष को पिया था और जिस समय महादेव विष ग्रहण कर रहे थे, उस समय भी प्रदोष काल था और सभी देवताओं ने महादेव की स्तुति की थी.तभी से त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में महादेव का पूजन करने की परंपरा चली आ रही है. पुराणों के मुताबिक, प्रदोष व्रत के पुण्य से कलयुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट दूर होंगे और भक्तों का कल्याण होगा. इस व्रत के प्रभाव से शिव भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

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