आखिर मकर संक्रांति को क्यों कहा जाता है उत्तरायण? जानिए इसके पीछे की वजह

आखिर मकर संक्रांति को क्यों कहा जाता है उत्तरायण? जानिए इसके पीछे की वजह

 हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का त्योहार पौष माह में मनाया जाता है। जब सूर्य देव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब यह पर्व आस्था के साथ मनया जाता है। वैसो तो साल में 12 संक्रांतियां पड़ती है लेकिन मकर संक्रांति को हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है इसी के साथ जो लोग इस दिन स्नान-दान करते हैं उसका फल भी कई गुना अधिक मिलता है।

इस बार मकर संक्रांति पौष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 15 जनवरी 2024 दिन सोमवार को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न राज्यों में कई नामों से जाना जात है। लेकिन इसे उत्तरायण क्यों कहा जाता है आज हम आपको इसके पीछे का कारण बताने जा रहे हैं।

मकर संक्रांति के दिन को उत्तरायण कहने का कारण

हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य भगवान दो दिशाओं में भ्रमण करते हैं। 6 माह तक वह दक्षिण दिशा में भ्रमण करते हैं जिसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहा जाता है और 6 माह के लिए वह उत्तर दिशा की ओर भ्रमण करते हैं जिसे उत्तरायण कहा जाता है। सूर्य देव जब धनु राशि से निकल कर मकर राशि में आते हैं तो वह उत्तर दिशा की ओर भ्रमण करने लगते हैं। इस कारण मकर संक्रांति को उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है। सूर्य देव का उत्तर दिशी की ओर बढ़ना बहुत शुभ माना जाता है। 

कहा जाता है देवताओं का दिन

हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव जब उत्तरायण होते हैं तो उसे देवताओं का दिन कहा जाता है। वहीं दक्षिणायन वाले दिन को देवताओं की रात कहा जाता है। इसी के साथ उत्तरायण से दिन बड़ा होने लगता है और सूर्य देव की रश्मियां अधिक समय के लिए पृथ्वी पर प्रकाशित होने लगती हैं। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव अत्याधिक प्रकाशित हो जाते हैं इसलिए इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

श्री कृष्ण ने बताया उत्तारायण सूर्य का महत्व

गीता के 8वें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण उत्तरायण सूर्य की महिमा में कहते हैं कि जिन लोगों को ब्रह्म ज्ञान का बोध हो गया हो। वह सूर्य के उत्तारायण होने पर जब अपना शरीर त्यागते हैं। तो उनको तुरंत मोक्ष मिल जाता है और दोबारा उनको जन्म नहीं लेना पड़ता है।  

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