पंडित कृपा शंकर मिश्रा (उत्तर प्रदेश )द्वारा ग्राम चिल्हाटी में श्रीमद्भागवत कथा का वाचन

पंडित कृपा शंकर मिश्रा (उत्तर प्रदेश )द्वारा ग्राम चिल्हाटी में श्रीमद्भागवत कथा का वाचन

डौंडीलोहारा :  ग्राम चिल्हाटी कला में श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस  पंडित कृपा शंकर मिश्रा उपाध्यायपुर  उत्तरप्रदेश ने  भगवान बाँके बिहारी के  बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान दिव्य रूप से बाल लीला कर रहे है भगवान ने सर्वप्रथम पूतना का उद्धार किया जो भगवान को स्तन में विष धारण कर पिलाने आयी थी । भगवान बड़े ही कृपालु है उन्होंने पूतना को जो भगवान को मारने के उद्देश्य से आई थी उसे भी मातृगति प्रदान किया। इसी तरह भगवान ने अनेको दैत्य ,दानव सकटासुर, तृणावर्त अघासुर, बकासुर जैसे बलशाली को परमगति प्रदान करते हुए कालिया नाग को भय मुक्त कर उसका भी उद्धार किया ।

भगवान  ने गोवर्धन पर्वत के महत्व को बताया और मधुवन में दिव्य महारास की लीला की, फिर उन्हें  मथुरा लाने के लिए कंश ने  अक्रूर जी को श्रीधाम वृन्दावन भेजा अक्रूर जी के साथ भगवान मथुरा जाकर रजक धोबी का उद्धार किया। कुब्जा को दिव्य वरदान देते हुए उन्होंने चाणूर आदि राक्षसों को गति प्रदान की। कंस जैसे शक्तिशाली, अभिमानी को भी मोक्ष प्रदान किया। कथा व्यास पंडित कृपा शंकर ने कथा के दौरान भावुक होकर बताया कि भगवान बाँके बिहारी को मारने के लिए जरासंध नामक राजा जो अपने जमाई (दामाद) कंस के हत्या  से दुःखी था उसने मथुरा में 17 बार  आक्रमण किया परन्तु सभी बार भगवान ने उसको छोड़ उसके सभी सेना को गति प्रदान की ।बलराम ( दाऊ भैया ) ने भगवान से कहा कि कान्हा जब जब ये राजा मथुरा पर आक्रमण करता है तब तब तुम इसे छोड़ बाकी सभी को मार देते हो इसे भी गति प्रदान कर दो न, तो भगवान बोले भैय्या मैं इसे नहीं मार सकता इसकी मृत्यु मेरे हाथो में नही लिखी है । इसका मृत्यु जहाँ लिखा है वही होगा ।  पंडित श्री मिश्रा ने मानस के चौपाई के माध्यम से बताया कि जन्म विवाह मरण गति सोई , जहां जस लिखा तहां तस होई । जिसका जन्म विवाह और मृत्यु जहां जैसे लिखा है वहीं होगा आप कितना भी प्रयास करलो उस सत्य को आप नही नकार सकते फिर भगवान ने कालयवन को मुचकुन्द जी के द्वारा गति दी ।

भगवान ने मथुरा छोड़ अपनी एक नई राजधानी बनाई द्वारिका, और भगवान दिव्य द्वारिका नगरी में द्वारिकाधीश के रूप में विराजमान होकर राज कर रहें है जब भगवान की  दिव्य द्वारिका नगरी में राज दरबार लगा तो वहाँ एक ब्राह्मण द्वारा माता रूखमणी का विवाह के लिए पत्र  आया फिर भगवान ने पत्र पढ़कर कुण्डिनपुर जाकर  मैया रुख्मणी का हरण किये फिर भगवान का दिव्य परिणय विवाह हुआ।श्रीमद भागवत कथा महापुराण के दौरान मैया रूखमणी और भगवान कन्हैया का विवाह रचाया गया। जिसमें दर्शक दीर्घा दो दल में बंटकर घराती व बराती का भूमिका निभाते नजर आये। दोनों पक्षों ने विवाह का रस्म निभाते हुए तेल हल्दी चढ़ाकर नाचते गाते देश वासियों की अमन चैन के लिये भगवान से प्रार्थना किया गया। वहीं दूसरी ओर मैया रूखमणी और भगवान कन्हैया का पानी ग्रहण कराते हुए भागवत व्यास पंडित कृपा शंकर मिश्रा ने नेग जोग के विधान का वाचन करते हुए धर्ममय  जीवन जीने की सीख दे रहे थे। जनसमुदाय व  श्रद्धालु भक्तों ने मैया रूखमणी व भगवान कन्हैया के विवाह में टिकावन स्वरूप उपहार देने का सिलसिला चलते रहा। राजा परीक्षित की भूमिका में लुशन राम साहू व त्रिवेणी बाई साहू विराजमान थी। मैया रूखमणी के विवाहोपरांत छप्पन भोग लगाकर श्रद्धालु भक्तों में वितरण किया गया।

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