परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद : समाज सेवक सीताराम सोनवानी गरियाबंद जिले सहित पूरे छत्तीसगढ़ एवं भारत के कई राज्यों में विशेष पिछड़ी जनजाति कमार , भुंजिया एवं आदिवासी व अन्य कई दबे कुचले लोगों के अधिकार एवं न्याय के लिए संघर्ष करते आए हैं। और अब उनकी जवानी ढलकर वृद्धावस्था के कगार पर पहुंच चुकी है फिर भी वे आज भी उसी जोश और जज्बा से अपना कार्य करने तत्पर रहते हैं। बताते चलें कि सीताराम सोनवानी का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले के कन्हारपुरी ग्राम में हुआ था वह युवक ही था जब घर परिवार छोड़कर वे समाज सेवा के लिए घर से निकल पड़े थे। जब वह श्रमिक नेता शंकरगुहा नियोगी के बारे में सुना तब वह अपनी कर्मभूमि पीपरछेड़ी में काम करते थे वह योगी से जब मिले तथा उनके कार्यों से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में रहकर उन्होंने प्रमुख रूप से बीड़ी कामगारों को संगठित किया तथा उन्हें व्यसन मुक्त करने में सफल रहे ।
बाद में उन्हें 1984 में एकता परिषद में काम करने का अवसर मिला वे संस्था के प्रथम अध्यक्ष के रूप में छः माह तक अपनी सेवाएं दी तथा भूमिहीनों व आदिवासियों और वनवासियों के हित में चलाए गए प्रत्येक अभियान एवं आंदोलनों के कर्ण धार रहे । छत्तीसगढ़ अंचल के गरियाबंद जिले के कमार, भुंजिया एवं आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकार दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई ।आदिवासियों को उनके जीवन जीने के समुचित संसाधन उपलब्ध कराने हेतु भी आरंभ से ही क्रियाशील रहे। उनके जीवन क्रम में कुछ ऐसी घटनाएं भी आई जिन दिनों में खदानों में काम करने वाले श्रमिकों का कामगारों के साथ काम करते थे उन दिनों खदान के ठेकेदारों को उनकी कुछ गतिविधि नागावार गुजरी तो उन्हें जहर देकर हत्या का घिनौना प्रयास भी किया गया, हालांकि वे ईश्वर की कृपा से जीवित रह पाये। कोई बड़ी अनहोनी से बच गए और आगे भी भी इस दिशा में कार्य करते रहे। इस बीच में आदिवासी किसानों को गरजई पानी आरक्षित वन क्षेत्र में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने हेतु एक मुहिम चलाने का प्रयास किया । और मदनपुर और रामपुर के आदिवासी किसान आगे की सलाह के लिए सीताराम सोनवानी के पास गए, क्योंकि उन्होंने उन्हें जंगल पर उनके अधिकारों के बारे में जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक पर्यावरण विद के रूप में सोनवानी ने आदिवासी जीवन की उपेक्षा पर वनों की व्यवसायीकरण के हानिकारक प्रभाव के बारे में अपनी पिछली स्थिति को दोहराया। सोनवानी ने सागौन, यूकेलिप्टस और चीड़ के वृक्षारोपण पर अपनी स्थिति स्पष्ट की उन्होंने आजीविका के एक मात्र साधनके रूप में अपनी पैतृक भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए यहां तक कि आंदोलन का रास्ता अपनाने की सलाह दी। उसे समय के मुख्यमंत्री की घोषणा की पृष्ठभूमि में सलाह के साथ 15 आदिवासी किसानों का एक समूह गरजईपानी क्षेत्र में गया और वहां से एक साल पुराने सागौन के पौधों को साफ किया, दरअसल उन्होंने करीब 75 पौधों को सावधानीपूर्वक हटा दिया था और इन्हें बाद में जमीन की सीमा पर लगाने के इरादे से एक तरफ रख दिया था बताया कि गरियाबंद पुलिस थाने में रखे गए पौधे इस बात की गवाह है कि आदिवासी किसानों का पौधों को नष्ट करने का कोई इरादा नहीं था ।
यह वह समय था कि पी एन के तहत वन रेंजर के नेतृत्व में वन अधिकारी मौके पर पहुंचे उपाध्याय ने सभी को पकड़ लिया और कृषि उपकरण और 75 सागौन के पौधे भी जप्त कर लिए गए । आदिवासी किसान जिसमें पांच महिलाएं थीं जिन्हें एक गाड़ी जीप में डाल दिया गया और ग्राम परसुली के वन डिपो में ले जाया गया, यह घटना 1990-91 की है और घटना में समाज सेवी सीताराम सोनवानी को 45 दिन तक जेल में रखा गया जिसके लिए एकता परिषद एवं अन्य संगठन ने राजधानी रायपुर में आंदोलन भी किया और फिर जेल से रिहा हुए । हालांकि यह घटनाक्रम की एक लंबी कहानी है जिसे हम अगला अंक में बताने का प्रयास करेंगे, वहीं 2011 में उनके खास करीबी समझे जाने वाले छुरा के पत्रकार उमेश राजपूत की उनके निवास पर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई, बता दें की घटना के एक-दो दिन पहले ही दोनों एक साथ कार्य पर रहे तत्पश्चात पत्रकार उमेश राजपूत के न्याय के लिए भी उन्होंने उनके परिजनों का मदद करते हुए मामले को जनहित वकीलों के माध्यम से उच्च न्यायालय में सीबीआई जांच तक पहुंचाया और सूत्रों की मानें तो इस हत्याकांड में कुछ बड़े प्रभावशाली लोगों का नाम आया और मामला भी सीबीआई न्यायालय में लंबित है इस घटना में हालांकि अभी तक किसी को सजा नहीं हो पाई है।
वहीं 1975 में गरियाबंद में सिकासार डेम का निर्माण किया गया तो कुछ आदिवासी परिवारों के घरों को उजाड़ दिया गया जिसके बाद यह आदिवासी सरकार द्वारा पुनर्वास की चाह में निरंतर भटकते रहे सीताराम सोनवानी की पहल और हस्तक्षेप के बाद ही सरकार उनका पुनर्वास कर सकी, और इस प्रकार 15 वर्षों तक जंगल में भटकने के बाद 25 आदिवासी परिवारों को कुछ राहत मिल सका। गरियाबंद के आदर्श ग्राम महुआ भाटा को यूं ही आदर्श ग्राम के नाम से नहीं जाना जाता है सीताराम सोनवानी के एकमात्र प्रयास से गांव के लोग लगभग 80 से 100 क्विंटल धान से एक राम कोठी अनाज बैंक बनाई जिसे सुखे पड़ने व ग़रीबी के कारण लोगों के साथ साझा करते थे इसके प्रभारी रामभरोसे पटेल थे,और यह खुद आत्मनिर्भर बने। इन्हीं के कुशलमार्गदर्शन में छह प्राथमिक एवं एक माध्यमिक विद्यालय का संचालन ग्राम स्तरीय समितियों के माध्यम से किया गया एवं 65 गांव में साक्षरता अभियान चलाए, क्षेत्र में सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा दिया गया और खेती और मछली पालन को बढ़ावा दिया गया।
बचाओ मानव बचाओ आंदोलन की शुरुआत के लिए भी एवं चिपको जंगल आंदोलन का सुंदरलाल बहुगुणा का मारागांव की चिपको महिला ने ही 1989 में गरियाबंद तहसील में आंदोलन का नेतृत्व किया था। सोनवानी जय जगत 2020 यात्रा के संवाहक थे वह संगठन को सर्वोपरि मानते हैं और उनका कहना है कि संगठन मजबूत होगा तो वनवासी व अन्य वंचित लोग एकजुट होकर अहिंसक तरीके से मुकाबला कर सकते हैं। यह राष्ट्रीय स्तरीय के समाज सेवक राजगोपाल के संपर्क में आए उस दौरान पीपरछेड़ी के चंदा दाई की सेवा में अपनी आदर्श मानने वाले राजा जी के कहने पर कई साल चंदा दाई की सेवा में बिताए और उनका स्वर्गवास होने के बाद सब कुछ छोड़कर वे प्रयोग आश्रम तिल्दा चले गए। ऐसे कई अनगिनत उदाहरण है जिन मुद्दों व घटनाओं में उन्होंने बढ़-चढ़कर अपना रिश्ता निभाया। आज भी अपने 24 घंटे में 12 घंटे से अधिक का समय समाज सेवा के कार्यों में बिताते हैं यह राष्ट्रीय एकता परिषद के संस्थापक पीवी राजगोपाल जी के बहुत करीबी माने जाते हैं और वर्तमान में तिल्दा में संचालित प्रयोग आश्रम के अध्यक्ष हैं यह समाज सेवा में तब निकल पड़े थे जब उनके बच्चे छोटे थे और घर में पत्नी भी थी और वह सब कुछ त्याग कर समाज सेवा के लिए निकल पड़े, कभी भी उनके परिजनों को मिलना होता था तो वे पीपरछेड़ी पहुंचकर मिला करते थे और घर में कोई बड़ा कार्य होता तो एक दिन के लिए चले जाते और दूसरा दिन वापस लौट आते थे आज भी वे प्रयोग आश्रम तिल्दा से कर्मभूमि पीपरछेड़ी पहुंचते हैं तो लोगों की मुलाकात हेतु लाईन लग जाता है और आज भी इस क्षेत्र के लोगों की समस्या पर काम करने से पीछे नहीं हटते हैं जब हमारे द्वारा सवाल पूछा गया कि स्वामी जी क्या आप कभी राजनीति में आएंगे तो उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि हमारा पूरा जीवन समाज सेवा और दबे कुचले लोगों की सेवा में चला गया, अब हम राजनीति में आकर क्या करेंगे हम गांधीवादी विचारधारा के हैं उन्हीं के आदर्शों पर जीवन जीते आ रहे हैं और उसी राह में आगे भी चलते रहेंगे।सीताराम सोनवानी का कहना है कि खासकर मध्य प्रदेश की उन वनांचल वासियों की ओर शासन का ध्यान तुरंत जाना चाहिए जिनका वन भूमि पर 2005 के भी पूर्व कब्जा है और वह उसे जोत भी रहे हैं किंतु पट्टा स्वामित्व से वंचित है उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को हम जिनेवा तक ले जाएंगे क्योंकि भूमि का आभाव में ही गरीबी व असमानता बढ़ रही है।अभी वर्तमान में वे अपने संगठन के साथियों के साथ विश्व सामाजिक मंच काठमांडू नेपाल में आयोजित अधिवेशन में शामिल होने नेपाल के दौरे पर हैं।
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