पूरे देश में होली का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन के रूप में और दूसरे दिन रंगोत्सव के रूप में होली का त्योहार मनाया जाता है. इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को भारत भर बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है .उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में होली का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान कृष्ण से संबंधित माना जाता है. मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना की होली प्रसिद्ध है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रज में होली का उत्सव 40 दिनों तक मनाया जाता है. बता दें कि यहां राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना से होली की शुरुआत होती है और समाप्ति वृंदावन के रंगजी मंदिर में होती है.
आइए जानते हैं ब्रज की होली का पूरा शेड्यूल.
ये रहा मथुरा-वृंदावन की होली का पूरा शेड्यूल
17 मार्च 2024: बरसाना के राधा रानी मंदिर में फाग आमंत्रण महोत्सव एवं लड्डू होली.
18 मार्च 2024: बरसाना के राधा रानी मंदिर में लट्ठमार होली.
19 मार्च 2024: लट्ठमार होली नंदगांव.
20 मार्च 2024: फूलवाली होली बांके बिहारी वृंदावन.
20 मार्च 2024: कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में होली.
21 मार्च 2024: गोकुल में छड़ी मार होली.
23 मार्च 2024: राधा गोपीनाथ मंदिर वृन्दावन में विधवा महिलाओं द्वारा खेली जाने वाली होली.
24 मार्च 2024: होलिका दहन और बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली.
25 मार्च 2024: रंग वाली होली मथुरा-वृंदावन.
26 मार्च 2024: बलदेव में दाऊजी मंदिर पर हुरंगा होली.
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होली की कई पौराणिक कथाएं हैं.ये किंवदंती भगवान कृष्ण के बचपन के आसपास घूमती है. एक युवा लड़के के रूप में उन्होंने अपने और देवी राधा के बीच त्वचा के रंग में अंतर देखा. इसके जवाब में उनकी माता यशोदा ने राधा के रंग को जीवंत रंगों को लागू करने का एक चंचल समाधान सुझाया. ऐसे इस तरह ब्रज की होली की खुशी की परंपरा को जन्म दिया.
ऐसी ही एक और मनोरम कहानी प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप पर केंद्रित है. हिन्दू धर्म में सबसे लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और दानव होलिका के बारे में है. प्रह्लाद राक्षस हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु का बेटा था. हिरण्यकश्यप नहीं चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करे. एक दिन, उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे को मारने की योजना बनाई. होलिका के पास एक चुनरी थी जिसको धारण करने से आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. होलिका को यह चुनरी ब्रह्मा जी ने अग्नि से बचाने के लिए उपहार में दी थी. विष्णु जी के भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए एक योजना तैयार की और होलिका अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन उससे प्रह्लाद बच गए और होलिका का अंत हो गया. इस घटना के बाद से ही होलिका दहन मनाया जाने लगा.
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