नारायणपुर : कहते हैं कि गांव के विकास में अहम भूमिका गांव के सरपंच की होती है। गांव का सरपंच, गांव का सर्वेसर्वा होता है। गांव की मूलभूत सुविधाओं और सरकार की योजनाओं को गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का जिम्मा हो या फिर गांव की आपसी नोकझोक और गांव की सुरक्षा की जिम्मेदारी, गांव के मुखिया सरपंच की होती है। ऐसे में अगर गांव का सरपंच ही सुरक्षित ना हो तो क्या होगा ?
शहर में ही रह कर कर रहे सरपंची
दरअसल, नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के ऐसे 50 से अधिक गांव के सरपंच सुरक्षित नहीं हैं। माओवाद का दंश झेल रहे नारायणपुर की दशा यही है। यहां के नक्सल प्रभावित गांव में चुने गए 50 से अधिक सरपंच समेत अन्य लोग माओवादी दहशत के चलते शहर में ही रह कर अपनी सरपंची कर रहे हैं। क्योंकि इनके गाँवों में माओवादियों ने सरपंच के नाम मौत का फरमान जारी कर रखा है।
छोटेडोंगर से 6 लोगों को सुरक्षा के साए में रखा
यह आपबीती नारायणपुर जिले से 43 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत छोटेडोंगर की है। ये लोग जिस परिस्थितियों से गुजर रहे हैं वो अपनी जुबानी हमे बता रहे हैं। बीते 6 महीने से नारायणपुर डीपीआरसी भवन में ग्राम पंचायत छोटेडोंगर से 6 लोगों को सुरक्षा के साए में रखा गया है। गांव के सरपंच सहित 3 अलग—अलग समाज के प्रमुखों और इलाके के वैद्यराज जिन्हें सरकार ने हालही में पद्मश्री से सम्मानित किया है उन्हें सुरक्षा में रखा गया है।
लौह अयस्क खदान का लंबे समय से विरोध
दरअसल, माओवादियों द्वारा इन्हें मौत का फरमान सुनाया गया है। बीते कुछ महीने पूर्व छोटेडोंगर इलाके में माओवादियों ने मौत का फरमान सुनाते हुए, कई जनप्रतिनिधियों की हत्या कर दी थी। वहीं माओवादियों का आरोप है कि यहां संचालित माइंस में इनकी अहम भूमिका है। माओवादियों द्वारा यहां संचालित लौह अयस्क खदान का लंबे समय से विरोध किया जाता रहा है। बावजूद इसके सरकार सुरक्षा के साए में माइंस का संचालन करवा रही है।ताकि सरकार की आमदनी बढ़े, ऐसे में माइंस खुलने के बाद माओवादी इलाके में दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं ।
गांवों में परिवार की देख-रेख करने वाला कोई नहीं
नारायणपुर डीपीआरसी भवन में रह रहे जनप्रतिनिधियों का कहना है कि उन्हें तो सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है, लेकिन गांवों में उनके परिवार की देख रेख करने वाला कोई भी नहीं है। खेती किसानी कर वे अपने परिवार का पेट पालते हैं। ऐसे में उन्हें परिवार की देख रेख करने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इनकी मांग है कि उनके परिवारों को नक्सल पीड़ितों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ दिया जाए।
विभिन्न आरोप लगाकर मौत का फरमान सुनाया
वहीं माओवादी धमकी का शिकार हुए ऐसे दर्जनों गांव के सरपंच हैं जिन पर माओवादियों द्वारा विभिन्न आरोप लगा कर इसी तरह मौत का फरमान सुना दिया गया है। वहीं जिले में सैकड़ों नक्सल पीड़ितों के रहने की व्यवस्था सरकार द्वारा मुख्यालय के समीप शांति नगर बसा कर किया गया है। जहां पीड़ित परिवारों के साथ गांव के सरपंच रहते हैं और मुख्यालय से ही गांव चलाते हैं।
बस्तर में बीते चार दशकों से सरकार और नक्सलियों के बीच चल संघर्ष के चलते बहुत से सरपंच, जनप्रतिनिधियों और गांव में निवास कर रहे कई परिवार, माओवादी दहशत से अपना घर बार छोड़ कर शहर में आ कर रह रहे हैं। सवाल यही की लोकतांत्रिक देश के इस हिस्से से कब नक्सलवाद का खात्मा होगा? इस सवाल का जवाब आना बाकी है।
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