विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में दुनियाभर में हर दिन करीब 800 महिलाओं की मौत गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित वजहों से हो गई. यानी लगभग हर दो मिनट में एक मौत.
जहां तक भारत की बात है, महिलाओं और सुरक्षित मातृत्व के लिए सरकार की कई योजनाएं चल रही हैं. गर्भवती महिलाओं को कई तरह की खास सुविधाएं दी जा रही हैं. इसके बावजूद कहां-कहां, किस स्तर पर चूक हो जा रही है, ये देखना सबकी जिम्मेदारी हो जाती है. आए दिन देश के किसी न किसी इलाके से चिंता पैदा करने वाली खबरें आती रही हैं.
कैसे हुई राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की शुरुआत?
NSMD की बात साल 2000 के आस-पास जोर-शोर से उठाई जाने लगी. तब देश उच्च मातृ-मृत्यु अनुपात से जूझ रहा था. ऐसे में वाइट रिबन अलायंस इंडिया ने इस मुद्दे पर कई संगठनों को एकजुट किया. महिलाओं की सेहत की दिशा में काम करने वाले 1800 से ज्यादा संगठन एकसाथ आए. तब जाकर 2003 में राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की औपचारिक शुरुआत हो सकी. भारत सरकार ने 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित किया. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया. इससे दुनियाभर में एक बड़ा मैसेज गया.
11 अप्रैल की तारीख चुने जाने का भी एक खास मतलब है. इसी दिन कस्तूरबा गांधी की जयंती मनाई जाती है. कस्तूरबा गांधी भी सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक थीं.
आंकड़ों में हुआ सुधार
महिलाओं की सेहत और सुरक्षित मातृत्व को मातृ-मृत्यु अनुपात (Maternal Mortality Ratio) के पैमाने पर देखा जाता रहा है. हाल के बरसों में देश ने सुरक्षित मातृत्व की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. इसके बावजूद देश को मातृ-मृत्यु अनुपात (MMR) को और कम करने की जरूरत है.
नेशनल सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2014-16 की अवधि में मातृ-मृत्यु अनुपात (MMR) प्रति 100,000 जन्मों पर 130 थी. 2018-20 की अवधि तक इसमें 33 पॉइंट का सुधार आया और यह घटकर 97 रह गया.
वजहें कई हैं
पर्याप्त पौष्टिक आहार न मिलना भी एक बड़ी वजह है, जिससे माताओं और नवजात शिशुओं का जीवन प्रभावित होता है. गर्भावस्था, प्रसव के दौरान और बाद में अच्छी क्वालिटी का आहार लेना और स्वास्थ्य सुविधाओं तक आसान पहुंच प्रत्येक महिला का अधिकार है. गरीबी और शिक्षा की कमी से भी सेहत पर असर पड़ता है. वैसे तो बाल-विवाह पर पहले से ही रोक है, पर समाज के कई तबकों में इस बारे में और जागरुकता फैलाए जाने की जरूरत है.
क्या किया जाना चाहिए?
सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाने का सबसे अच्छा तरीका यही हो सकता है कि इस दिन न केवल चुनौतियों की बात की जाए, बल्कि उपायों पर भी विचार किया जाए. सबसे जरूरी बात है, पहले से चल रही स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं की जानकारी हर तबके तक पहुंचाया जाना. साथ ही सुविधाओं और शिकायतों से जुड़े हेल्पलाइन नंबर के सिस्टम को दुरुस्त किया जाए.
आज के दौर में सुरक्षित मातृत्व के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाया जाना जरूरी है. देश के दूर-दराज के इलाकों में गर्भवती महिलाओं की मदद के लिए टेलीमेडिसिन का सहारा लिया जा सकता है. इससे महिलाओं की नियमित जांच और उन तक उचित सलाह पहुंचाया जाना मुमकिन है.
मोबाइल ऐप, स्मार्टवॉच, फिटनेस ट्रैकर जैसे उपकरणों से ब्लड-प्रेशर और हार्ट बीट पर नजर रखी जा सकती है. इस दिशा में एक सीमा तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी सहारा लिया जा सकता है. इस क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं है.
कुल मिलाकर, सुरक्षित मातृत्व की खातिर, सरकारी हो या गैर-सरकारी, स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वाली हर इकाई को साथ मिलकर कोशिश करनी होगी.
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