राजनांदगांव : शौर्य साहस और वीरता के अमर प्रतीक महाराणा प्रताप की जयंती परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारप्रज्ञ व्यक्तित्व डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशिष्ट आह्वान विमर्श में बताया कि महान मेवाड़ राजवंश के महाराणा सांगा और महाराणा कुंभा जैसे मातृभूमि के रक्षकों के कुल में जन्में पौत्र प्रताप अपने जन्मकाल से ही तन-मन-मस्तिष्क से वीर-धीर-साहसी और विशुद्ध राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत व्यक्तित्व रहें हैं। मातृभूमि मेवाड़ को मुगलों से मुक्त करने हेतु महाराणा प्रताप अरावली पर्वत श्रेणी के निरा बीहड़ में सपरिवार भूखे-प्यासे रहकर, तो कभी घास की रोटियाँ खाकर जीवन संघर्ष किया। किंतु दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर स्थानीय निवासियों, भीलोंं और पुराने सैनिक सरदारों को संगठित कर दानवीर भामाशाह की सहायता से ऐसी सेना तैयार की जिसने मुगल सेना से हर समय सामना होने पर उनके दांत खट्टे किए और भागने पर विवश किया।
बार-बार अपनी सेना को संगठित कर उन्होंने मुगलों के कब्जे वाले अपने बत्तीस किले वापस छीन लिए। केवल चित्तौडग़ढ़ और मांडवगढ़ किले जीतने के पहले महाराणा प्रताप देश-धरती की अमर विभूति बनकर स्वर्ग सिधार गए। आगे डॉ. द्विवेदी ने विशेष रूप से बताया - राष्ट्र प्रथम, मातृभूमि की रक्षा सर्वोपरि जैसे महाआदर्श वाक्यो की सर्वोत्तम प्रादर्श और उत्कृष्ठ अवधारणा से वास्तविक अनुयायी महाराणा प्रताप ही थे। जिनका वीर साहसी व्यक्तित्व, कृतित्व सर्वकाल युवा-किशोर और नेतृत्वकर्ता पीढ़ी को प्रेरणा देता है। उन्होंने अनेकानेक विपत्तियों, गहन संकट में भी धैर्य नहीं खोया। वन बीहड़ में भूख-प्यास से बिलखते बच्चों एवं साथियों के साथ गहन दुख-दारून झेला। किंतु मातृभूमि की रक्षा-सेवा भक्तिभाव से कभी भी डिगे नहीं। धन्य हैं महाराणा प्रताप की राष्ट्रभक्ति, शौर्य और उनका प्रतापी जीवन। वास्तविकता में महाराणा प्रताप स्वाभिमान एवं राष्ट्रीय गौरव के अनमोल अलंकरण हैं जिनके प्रति सदियों तक प्रत्येक राष्ट्रभक्त का शीश श्रद्धा से नमन करता रहेगा। आइये ऐसे महा प्रतापी महाराणा प्रताप को हमेशा राष्ट्र सेवा कार्य के समय स्मृत रखें। यहीं महाराणा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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