राजनांदगांव : जिले में सबसे तेजी से फलने फूलने वाला धंधा अगर है तो वह है प्राइवेट हॉस्पिटल का। यह व्यवसाय विश्व व्यापी कोरोना महामारी के समय से ज्यादा चल पड़ा है। मौजूदा समय में जिले में पैथोलॉजी और नर्सिंग होम मिलाकर 31 प्रायवेट हॉस्पिटल संचालित हो रहे हैं। पता चला है कि अब चार अस्पताल और पांच पैथोलॉजी के लिए स्वास्थ्य विभाग में और आवेदन लगा हुआ है।ज्ञात हो कि मरीजों के परिजनों की शिकायत के आधार शहर के निजी अस्पताल संजीवनी हास्पिटल में मामला बिगड़ने पर उस अस्पताल को बंद करने की मांग को लेकर नागरिक संगठनों का आंदोलन भी हुआ है। जिला स्तरीय जांच टीम ने उसके खिलाफ कुछ भी नहीं पाया तो प्रायवेट हॉस्पिटल के खिलाफ राज्य स्तरीय जांच टीम अगले हफ्ते जांच के लिए आने वाली है।
कहा जा रहा है कि प्राइवेट अस्पतालों को हमेशा सत्ता पक्ष का संरक्षण मिलता रहा है, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो। मतलब साफ है कि निजी अस्पतालों की कमाई इतनी ज्यादा है कि अस्पताल संचालक कांग्रेस-भाजपा जिसकी भी सत्ता हो, उनके लोगों को आसानी से मैनेज कर सकते हैं। आदमी एक बार बीमार पड़े और जान बचाने प्रायवेट अस्पताल की शरण में गए तो यह तय मान लीजिए कि उनका शरीर व जान गिरवी रख दी गई है। रोगी या उनके परिजनों को अस्पताल का बिल चुकाने भले ही जमीन जायदाद बेचने पड़ जाएं या फिर कर्ज से लदना पड़ जाए, लेकिन ये प्रायवेट हास्पिटल वाले मरीजों का खून निचोड़कर ही दम लेंगे। शिकायतकर्ता ने राज्य स्तरीय जांच टीम से जांच करने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि शासन द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य जांच के लिए शासकीय चिकित्सालयों की तरह निजी अस्पतालों, निजी प्रयोगशालाओं के लिए दरें निर्धारित नहीं होने के कारण मनमाने ढंग से फीस की वसूली की जा रही है। जितना बोले उतना देना पड़ रहा है। और तो और प्रायवेट अस्पतालों में स्मार्ट कार्ड के नाम पर भी बड़ा खेला चल रहा है। नकद भी वसूले जाते हैं। इस तरह प्रायवेट अस्पताल और प्रायवेट नर्सिंग होम संचालकों की भारी कमाई हो रही है। जानकारों की मानें तो एक-एक अस्पताल में 6 से 8 लाख रूपए तक की रोज काम की कमाई हो जाती है।
उल्लेखनीय है कि शहर में स्मार्ट कार्ड भी जमा करने और नकद भी लेने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं। रोगी के परिजन अक्सर यह सोचकर शिकायत नहीं करते कि उनके अपने भर्ती मरीज को अस्पताल की ओर से नुकसान न पहुंचाया जा सके।
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