गुरु परंपरा अति प्राचीन है। गुरु पुजन में शिष्य द्वारा गुरुदेव को भगवान स्वरूप स्वीकार करते हुए गुरु चरणों का जल,दूध,घी,दही,शहद, पंचामृत से चरण अभिषेक पूजन करता है, वस्त्र अलंकारों से, पुष्प माला पहनाकर, श्रीफल, मिष्ठान भेंटकर समर्पण स्वरूप अपनी श्रद्धा भक्ति एवं शक्ति के अनुरूप मुद्रा राशि अर्पित करते हैं। इसके पश्चात अभिषेक पूजन का चरणामृत को ग्रहण करके अपने आप को धन्य मानते हैं। हम -आप सभी आषाढ़ शुक्ल पक्ष पुर्णिमा के दिन को गुरु पुजा के रूप में मनाते हैं। गुरु पुजन एवं पाद प्रक्षालन इसलिए करते हैं कि जिस प्रकार महाजल राशि सागर में मगर अनेक जीवों मछली,उ, आदि का भक्षण कर लेता है। ठीक उसी प्रकार इस भवसागर में गुरुदेव का चरण रुपी मगर, हम शिष्यों के द्वारा चरण स्पर्श करते ही वह समस्त पाप,ताप, संताप को भक्षण कर लेते हैं। तब शिष्य पाप मुक्त होकर भगवत (सत्य पुरुष ) साक्षात्कार का अधिकारी बन जाता है। गुरु चरण व सत्य पुरुष का चरण सदा पापों का ही भक्षण करते हैं। श्री गुरुदेव चरण रज से अपने मन रुपी मुकूट शीश को शुद्ध कर सकते हैं।
गुरु सदा अपने शिष्य का उत्कर्ष चाहता है। क्योंकि शिष्य गुरु की आत्मा ही होता है। गुरुदेव सतत् शिष्य के गुण दोषों का क्षमता पूर्वक निरिक्षण करते हैं और हृदय में प्यार दया की भावना रखते हुए उन दोषों का निराकरण करते हैं। त्रास एवं दंड प्रक्रिया को अपनाते हुए हमारी रक्षा करते हैं। जैसे कुम्हार घड़े के निर्माण में दया और प्रताड़ना दोनों का प्रयोग करता है। जीवन के हर चर्चा में गुरु होना चाहिए। जागने से सोने तक, जन्म से मृत्यु तक, बल्कि मरण के बाद भी गुरु का होना आवश्यक है। मरण में ही जीवन का अन्त ना मान लिया जाए, मरने के आगे भी कुछ है, वह है ना मरना। आवागमन के चक्कर से छुटना, परम गति सद्गति को पाना यह बिना गुरु के संभव नहीं है। उत्कृष्ट जिज्ञासु, तृष्णा शुन्य शिष्य को गुरु परम तत्व से जोड़ देते हैं। इसी श्रृंखला में गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मेरे परम पूज्य गुरुदेव श्री श्री १००८ श्री महंत उजागर दास जी केशला (बाजार अतरिया) का सपरिवार चरण वंदना कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कृपालु गुरुदेव आपकी कृपा से ही मेरा अज्ञानता दूर हो गया है। गुरुदेव को पाकर जीवन धन्य हो गया।



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