राजनांदगांव :अखिल विश्व के परम आदर्श सनातन संस्कृति के अनुपम अनूठे सांस्कृतिक महापर्व दीपावली के परम शुभ मंगल परिप्रेक्ष्य में नगर के संस्कृति प्रज्ञ प्राध्यापक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशिष्ट चर्चा विमर्श में बताया कि दीपावली त्यौहार अनेकानेक धार्मिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक गौरवशाली गाथाओं, परंपराओं से जुड़ा महापर्व है। मुख्यत: स्वच्छता, पवित्रता, शुभ्रता, समृद्धि का मंगला उत्सवा पर्व है। विशेष रूप से मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम चंद्र जी के चौदह वर्षीय बनवास उपरांत सत्य विजय कर अयोध्या वापसी एवं रामराज्य के शुभारंभ स्वरूप स्वागत पर्व के रूप में, पूर्ण कलावतारी योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध से जन-जन में अपार हर्ष, प्रसन्नता के कारण उत्सव रूप में, बृजवासियों की संरक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत को धारण कर संरक्षा करने पर तथा वामन अवतार भगवान विष्णु ने राजा बलि के भूदान से प्रसन्न होकर भूलोक वासियों को दीपावली का पवित्र उत्सव मनाये जाने की घोषणा पर एवं जगतजननी महामाया के अत्यधिक क्रोधोउन्मत्त स्वरूप को देवादि देव महादेव शिव-शंकर द्वारा स्वयं लेटकर शांत करने एवं संसार को विकट संहार से बचाने पर दीपोत्सव पर्व मनाने की अतीव काल से शुभमंगल परंपरा चली आ रही है। साथ ही परमपुनीता भारतपुण्य भूमि भारत में जन्में महानपुरूषों की पुण्यार्थ स्मृति में उद्हरण आदि शंकराचार्य के पुन: प्राण संचारित होने के दिवस के रूप में, चौबीसवें तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामी जी के निर्वाण दिवस, स्वामी रामकृष्ण के जन्म एवं स्वर्ग सिधार तिथि तथा आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती के स्वर्णारोहण दिवस पर दीपोत्सव का त्यौहार वर्षो से मनाया जा रहा है। आगे प्राध्यापक डॉ. द्विवेदी ने विशेष रूप से बताया कि प्रकृतिवत ऋतु परिवर्तन स्वरूप शीत ऋतु के प्रारंभ एवं भारतीय कृषि परंपरा में खरीफ फसल की कटाई स्वरूप घर-घर में नवखाद्यान्न, फल-फूल एवं क्रय-विक्रय व्यापार से धनसंपदा प्राप्ति पर जन-जन का मन प्रसन्नचित्त होकर उत्सवा दीप त्यौहार मनाता है।
डॉ. द्विवेदी ने इस अवसर पर मुख्य रूप से युवा-किशोर-बाल पीढ़ी को सामयिक परिप्रेक्ष्य मे आह्वान्वित किया कि चतुर्दिक बढ़ते ध्वनि वायुप्रदूषण से समग्र जन-जन, जंतुओं के संरक्षण के लिए पटाखों का प्रयोग नगण्य रूप से करें अथवा ना ही करें। विद्युत ऊर्जा का अधिक प्रयोग न कर देशी माटी से बने दीपक ही जलायें। देश-धरती की सहज समृद्धि के लिए स्वदेशी उत्पादों का ही अधिकाधिक क्रय-विक्रय करें तथा परस्पर मेल-जोल, प्रेम-सदभाव बढ़ाकर देश-प्रदेश-प्रक्षेत्र में एकता-अखंडता को हर-हाल में कायम रखें। यही स्वच्छता, पवित्रता, शुभ्रता के सहज-सरल प्रतीक पर्व दीपावली का शुभ-सत्य-सार्थक संदेश है।
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