मुखिया के मुखारी – बरगद काटके बोनसाई उगाएंगे जीत हम ऐसे ही  पाएंगे

मुखिया के मुखारी – बरगद काटके बोनसाई उगाएंगे जीत हम ऐसे ही पाएंगे

बरगद काट के बोनसाई उगाएंगे जीत हम ऐसे ही पाएंगे विशाल वट वृक्ष (बरगद) शीतलता और छाया प्रदान करने वाला अपनी विशालता और प्राकृतिक नैसर्गिक गुणों के साथ-साथ आश्रय प्रदाता भी है वटवृक्ष की विशालता अतुलनीय है जड़े गहराई तक समाई  हुई होती है। भारतीय राजनीति में यही स्थान दशकों पूर्व कांग्रेस को हासिल था । शनै :शनै: राजनीतिक परिदृश्य बदला और क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ भाजपा का अभ्युदय हुआ 1980 में स्थापित भारतीय जनता पार्टी ने दो लोकसभा सीटों के साथ भारतीय राजनीति में एक नन्हे पौधे के रूप में शुरुआत कर आज विशाल वट वृक्ष का स्वरूप का लिया । पिछले तीन आम चुनाव से सत्ता की बागडोर लगातार उसके हाथों में है मतलब वट वृक्ष की महत्ता कांग्रेस और भाजपा दोनों को अच्छे से मालूम है,राजनीतिक परिदृश्य बदला बूढ़े बरगद में क्षरण हुआ और सत्ता की छाया देश से सिकुड़ कर कुछ राज्यों तक ही रह गई पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ नये हरे 99 पत्ते उगे पर लगता है अब कांग्रेस 99 के फेर में पड़ गई है । गठबंधन के सहारे 99 सीटों की उपलब्धि से अति आत्मविश्वास लबरेज दिशाहीनता की शिकार दिखती है हरियाणा में तथाकथित जीत की जगह हार को वरण करती है।फिर भी गुट बाजी और गलत फैसले लेने से बाज नहीं आती है।यूपी में पी. डी .ए. का राग अलापने वाली सपा के लिए सुर तो मिल रही है पर कोई उम्मीदवार अपने उपचुनाव में नहीं उतारी है।अब जिन मतदाताओं ने दो विधायक और एक सांसद वाली कांग्रेस को इस लोकसभा में 6 सीटें जीतवाई वो तो विकल्प हीनता के शिकार हो गए।

पूरे देश में लगभग यही स्थिति है झारखंड और महाराष्ट्र में भी बरगद काट के बोनसाई लगा रहे वहां तो गठबंधन की मजबूरियां है तो कांग्रेस की मजबूरी भी समझी जा सकती है। पर छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस अभी-अभी सत्ता से बाहर हुई है पर मजबूत विपक्ष की संख्या बल है पर यहां रायपुर दक्षिण के उपचुनाव में भी बरगद काट के बोनसाई उगाने की कोशिशे की जा रही है।जिस सीट पर मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ बन जाने के बाद 35 वर्षों से जीत के लिए तरस रही है ,उस सीट पर उम्मीदवार प्रतिभा से ज्यादा जुगाड़ के भरोसे तय की है 35 वर्षों से बृजमोहन अग्रवाल (भाजपा) इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वों चाहते तो अपने परिवार के किसी व्यक्ति के लिए टिकट मांग सकते थे पर वों भाजपा के राजनेता हैं तो ऐसा होना थोड़ा कठिन था यदि कांग्रेस होती तो ऐसा ही होता और हुआ भी ऐसा ही है।छत्तीसगढ़ के नेता के राष्ट्रीय संगठन सचिव होने का लाभ जमाई बाबू को मिल गया तर्क यह दिया गया कि वों युवा है, सक्रिय है 14% ब्राह्मण समाज के मतदाताओं का ध्यान रखकर उन्हें टिकट दिया गया इतिहास गवाह है कि रायपुर दक्षिण की सीट पर कभी जातिवाद नहीं चला पिछला चुनाव ही महंत ,रामसुंदर दास, (कांग्रेस ) सबसे ज्यादा मतों के अंतर से पराजित हुए इसके बाद भी कांग्रेस को अपनी भूल का एहसास नहीं हुआ।

विगत दो दशकों में सीधे मतदाताओं ने कांग्रेस प्रत्याशियों को प्रत्यक्ष मतदान कर महापौर बनाया पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायपुर की तीन सीटें जीती थी 86% मतदाताओं की परवाह न किया जाना कांग्रेस को भारी पड़ने वाला है। कांग्रेस पिछला विधानसभा चुनाव सिर्फ गुटबाजी व्यक्तिगत पसंद में गलत उम्मीदवारों के चयन की वजह से हारी सरगुजा और बस्तर से कांग्रेस का सुफड़ा साफ हो गया रायपुर की चारों सीटें भाजपा ने जीत ली ,ये उपचुनाव कांग्रेस के लिए अपने जख्मों में मरहम लगाने का सुनहरा अवसर था फिर वही गलती दोहराई गई । अमेठी से तार का जुड़े की रायपुर दक्षिण के सारे बरगद जैसे दावेदार ताकते रह गए और बोनसाई कांग्रेसी को टिकट मिल गई अब ये पुराने बरगद रूपी कांग्रेसी बोनसाई कांग्रेस की उम्मीदवारी को स्वीकारेंगे
या भीतराघात करेंगे? कांग्रेस रायपुर दक्षिण में 35 सालों से भाजपा से चुनाव हारते आ रही है रायपुर दक्षिण का परंपरागत भाजपा का मतदाता क्या इस उपचुनाव में भाजपा की सरकार होते हुए भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेगा? क्या इतनी काबिलियत कांग्रेस के उम्मीदवार में है? कद्दावर भाजपा नेता वर्तमान सांसद एवं निवृत्तमान विधायक बृजमोहन अग्रवाल ऐसा होने देंगे? क्या भूतपूर्व सांसद एवं महापौर वर्तमान भाजपा प्रत्याशी का कद बोनसाई के ऊपर भारी नहीं पड़ेगा? 

आसन्न नगरी निकाय के चुनावों को देखते हुए निर्दलीय और दल बदलने के लिए तैयार बैठे हैं
पार्षदों की भूमिका क्या होगी रायपुर दक्षिण के उपचुनाव और उम्मीदवारी का चयन बता रहा है कि कांग्रेस ---------------------------------------------------------

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

 









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