मुखिया के मुखारी – चुनाव न धर्म युद्ध होता है न वोट जिहाद

मुखिया के मुखारी – चुनाव न धर्म युद्ध होता है न वोट जिहाद

वोंट जिहाद इस शब्द की स्वीकारोक्ति विगत लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की एक आम सभा में इंडिया गठबंधन की महिला नेत्री नें किया था उस आमसभा में इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नेता उपस्थित थे,मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का मुस्लिमों से 90% मतदान अपने पक्ष में करने का वीडियो वायरल हुआ था ।  राहुल गाँधी का अपना वक्तव्य है की कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है, राष्ट्रीय जनता दल समाजवादी पार्टी का M. Y. (मुस्लिम यादव) समीकरण जीत का मंत्र रहा और आज भी उनकी राजनीति की धूरी है । ममता बंगाल में इसी समीकरण को साधने के लिए हर वों कृत्य करती है जिससे वों सत्तावरण कर ले । कई बार उच्चतम न्यायालय कलकत्ता ने उनके इन कृत्यो की भर्तसना की है कश्मीर के कई नेता खुल्लम खुल्ला बयान देते हैं कि जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री कोई हिंदू नहीं हो सकता क्योंकि कश्मीर एक मुस्लिम स्टेट है । दक्षिण की इंडिया गठबंधन की पार्टियों के बीच सनातन विरोधी बयान देने की होड़ मची हुई है डेंगू,मलेरिया, एड्स से भी हिंदू धर्म की तुलना की जा चुकी है अनवरत बयानों का ये सिलसिला आज भी जारी है ।

मस्जिदों से और मौलानवों के फतवे इंडिया गठबंधन को वोट देने के लिए जारी होते ही रहते हैं माहौल ऐसा बना कि अब वोट जिहाद की अपील खुलेआम होने लगी इस देश में निर्वाचन क्षेत्र की पहचान मुस्लिम और हिंदू बहुल क्षेत्र के रूप में है पर इस पहचान की एक विशेषता है कि हिंदू बहुल क्षेत्रों में जाति है पर मुस्लिम बहुल क्षेत्र विशुद्ध मुस्लिम है।  हिंदू समाज की जाति प्रथा को रोज रेखांकित करने वाले राजनीतिज्ञ कभी मुसलमानों की जातियों का जिक्र तक नहीं करते ये बात अलग है कि उन्ही की बनाई सच्चर कमिटी और जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग इन्हीं आधारों पर अपनी रिपोर्ट दी है जिस धर्म को ये जाति विहीन बताते हैं उसी मुस्लिम समाज को जातिगत आधार पर (अन्य पिछड़ा वर्ग बनाकर ) कर्नाटक,आंध्र और पश्चिम बंगाल में आरक्षण दे दिया गया है और कई राज्य इसी दिशा में बढ़ रहे हैं इंडिया गठबंधन शासित राज्यों ने अपना ट्रायल पूरा कर लिया सो अब मौलाना सीधे-सीधे 10% मुसलमान आरक्षण की बात महाराष्ट्र में कर रहे और कल ये इनकी राष्ट्रीय मांग भी बन सकती है संवैधानिक मर्यादाओं से ऊपर उठकर दी जाने वाली इन गैर संवैधानिक सुविधाओं से हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वोट जिहाद की बात होने लगी ।

मीडिया के धुरंधर सारे चुनावी विश्लेषण करते हैं ये बात अलग है कि औधे मुंह गिरते हैं एग्जिट पोल भी धराशाई हो रहे सत्यता से परे विश्लेषण सटीक हो ही नहीं सकते ये एक विश्लेषण कभी नहीं करते संसदीय और विधानसभा मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुसलमानों का मतदान करने का पैटर्न कैसा है और क्यों है?मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के एकतरफा मतदान को उनकी राजनीतिक, रणनीति और एकता का पर्याय मानकर उन्हें महिमा मंडित करने का दौर दशकों से चल रहा है ,तो ऐसी स्थिति में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास कैसे नहीं होगा और क्यों नहीं होना चाहिए? उदाहरण स्वरूप आप किसी भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में किए गए मतदान और उम्मीदवारों को मिले मतों का विश्लेषण कर लीजिए परिणाम हर जगह एक ही आएगा वोट जिहाद । आपको यदि लोकतंत्र में विश्वास है तो फिर मतदान क्या भीड़तंत्र की तरह करना और करवाना चाह रहे हैं?

राजनीतिक पार्टियों की विचारधाराओं से सहमति या असहमति व्यक्तिगत हो तो ये लोकतंत्र है पर ये यदि जाति धर्म और संप्रदाय के आधार पर हो रहा है तो मतदान भीड़ तंत्र का पोषक । मतदान तो गुप्त और व्यक्तिगत निर्णय है फिर उसके लिए सामाजिक, धार्मिक या जातिय फतवे या अपील क्यों? यदि ये गलती होती तो इसका सुधार हो सकता था पर ये तो जानबूझकर किया जाने वाला अपराधिकृत है ,जो दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है वोट की कीमत क्या होती है, इसकी महत्ता क्या होती है ,ये सिर्फ 5 सालों के लिए सरकार ही नहीं चुनती है बल्कि विश्व का मानचित्र बदल देती है। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा 1946 के चुनावों में डाले गए मतों का ही परिणाम था और पाकिस्तान बांग्लादेश के बंटवारे की नीव भी जुल्फीकार अली भुट्टो और शेख मुजीबुर रहमान को मिले वोटो की मर्यादा ना रख पाने का परिणाम था । मतदान को जिहाद की धार्मिक शक्ल देखकर भी पवित्रता नहीं पाई जा सकती जिन्होंने पाकिस्तान बनाने के लिए अंग्रेजों के उकसाने पर वोट दिया वों पाकिस्तान जाकर पाकिस्तानि नहीं मुजाहिर बन गए और वों पाकिस्तान धर्म एक होने के बाद भी पाकिस्तान और बांग्लादेश बन गया । बंटवारे की इस त्रासदी और भयावहता की शुरुआत मन भेद से मतभेद फिर देश में भेद कराकर ही रुका ।इतिहास से लगता है हमने सिख न लेने की कसम खा ली है  गंगा, जमुनी, तहजीब की दुहाई तो देते हैं पर मानते होते तो चुनाव न धर्म युद्ध होता है न वोट जिहाद

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