भारतीय शादियों में सहमति का मुद्दा अक्सर अनदेखा रह जाता है। शादी को आमतौर पर "संपूर्ण जीवन का साथ" माना जाता है, लेकिन क्या यह रिश्ता दोनों पक्षों की सहमति और बराबरी पर आधारित होता है? मैंने इस विषय पर कई महिलाओं से बात की, और उनकी राय इस लेख के माध्यम से साझा कर रही हूं।
भारतीय शादियों में सहमति: महिलाएं अपने साथी से क्या चाहती हैं?
सहमति सिर्फ यौन संबंधों तक सीमित नहीं
जब भी हम सहमति की बात करते हैं, तो अक्सर इसे यौन संबंधों तक सीमित कर दिया जाता है। हालांकि, कई महिलाओं का मानना है कि सहमति का दायरा बहुत व्यापक है।
एक महिला ने मुझसे कहा, "सहमति का मतलब है कि मैं अपने विचार और इच्छाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकूं। यह केवल 'ना' कहने तक सीमित नहीं है, बल्कि मेरी 'हां' को भी पूरी तरह से समझा जाए।"
भावनात्मक सहमति भी है जरूरी
कई महिलाओं ने बताया कि भावनात्मक सहमति को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। पति-पत्नी के रिश्ते में यह जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और उनका सम्मान करें।
एक महिला ने कहा, "अगर मैं किसी मुद्दे पर अपनी असहमति जताती हूं, तो मेरे पति को इसे व्यक्तिगत हमला नहीं मानना चाहिए। यह जरूरी है कि वह मेरी भावनाओं को समझें और मुझे स्पेस दें।"
शारीरिक सहमति का महत्व
शारीरिक सहमति पर बात करते हुए, कई महिलाओं ने कहा कि शादी के बाद भी, यौन संबंधों के लिए सहमति का होना अनिवार्य है।
एक महिला ने कहा, "शादी का मतलब यह नहीं है कि मैं हर समय शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार हूं। यह मेरे मूड, मेरी इच्छा और मेरी सहमति पर निर्भर करता है।"
"मेरी मर्जी" का सम्मान
भारतीय समाज में महिलाओं
को अक्सर "समर्पण" और "त्याग" का प्रतीक माना जाता है। लेकिन सहमति का मतलब है कि उनकी मर्जी और उनकी प्राथमिकताओं को भी महत्व दिया जाए।
एक महिला ने साझा किया, "अगर मैं करियर पर ध्यान देना चाहती हूं, तो मेरे साथी को मेरी मर्जी का सम्मान करना चाहिए। शादी में समझौते जरूरी हैं, लेकिन मेरी इच्छाएं और सपने भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।"
सहमति से खुशहाल रिश्ते की नींव
जिन महिलाओं से मैंने बात की, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सहमति केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह रिश्ते को मजबूत और स्वस्थ बनाती है।
एक महिला ने कहा, "जब मेरा पति मेरी राय को महत्व देता है और मेरी सहमति का सम्मान करता है, तो इससे हमारे रिश्ते में प्यार और भरोसा और गहरा हो जाता है।"
भारतीय शादियों में सहमति का विषय जितना सरल लगता है, उतना ही जटिल है। महिलाओं की राय यह दिखाती है कि सहमति केवल "ना" कहने का अधिकार नहीं है, बल्कि "हां" कहने की स्वतंत्रता भी है। यह भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक सभी स्तरों पर बराबरी और सम्मान की मांग करती है।
सवाल यह है: क्या हमारे समाज में सहमति को लेकर सही दृष्टिकोण है? और अगर नहीं, तो इसे बदलने की जिम्मेदारी किसकी है?
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