मुखिया के मुखारी –  क्योंकि सरकारें समदर्शी नही हैं ? 

मुखिया के मुखारी –  क्योंकि सरकारें समदर्शी नही हैं ? 

फतवे से धर्म युद्ध तक आ गई राजनीति, महाराष्ट्र की वों धारा जहां पर शिवाजी ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए झारखंड भगवान बिरसा मुंडा की जन्म और कर्म स्थलीय भारत के वों भू - भाग जिसने अखंडता और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए वर्षों- वर्षों तक संघर्ष किया । वंहा सत्ता संघर्ष उस स्तर तक आ पहुंचा कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तथ्यों से परे त्याग को तिलांजलि देता स्वार्थ ,राष्ट्र से बड़ी होती सत्ता का संघर्ष ये समझने और समझाने के लिए पर्याप्त है कि एक तरफा प्रेम मंजिल को छिन्न-भिन्न कर देती है । गंगा, जमुनी,तहजीब की दुहाई देते -देते हमने ऐसी लड़ाई लड़ी की देश के भू-भाग की बटाई हो गई । राजतंत्र छोड़ हम लोकतंत्र पर आ गए पर हमने अपनी मनोदशाओं को नहीं बदला हां जरूर लोकतंत्र को भीड़ तंत्र में बदलने की अनवरत कोशिश जारी है।  चुनाव की जगह चुननें की मजबूरियां तानाशाही में बदल गई है ,मतदान के लिए पसंद व्यक्तिगत न रहकर धार्मिक हो गया है पार्टी विशेष को मतदान न करने पर हुक्का पानी बंद करने की धमकी दी जा रही है।  विगत कुछ चुनावों से भाजपा को मतदान करने वाले मुस्लिम मतदाताओं की हत्या सिर्फ इस वजह से कर दी गई कि उन्होंने धार्मिक इच्छित पार्टियों को वोट नहीं दिया, तब इन बातों का किसी ने प्रमाण इकट्ठा नहीं किया था इस बार मौलाना नोमानी ने अपने वक्तव्य से खुद प्रमाण दे दिया । मतदान की अपील की जा सकती है पर अपील बंधन और बाध्यकारी हो ये लोकतंत्र की कैसी परंपरा है?

ये 1 दिन में नहीं हुआ 1947 से पहले बातों का उल्लेख लेख को बड़ा कर देगा सो हम उसके बाद की ही बातों का उल्लेख कर रहे हैं जमाते, उलेमा ए हिन्द ये तथाकथित धार्मिक संगठन है जो मुसलमानों के कल्याण के लिए बना है पर ये संगठन लगभग 700 आतंक के आरोपियों की अलग-अलग अदालतों में अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से पैरवी कर रहा है । आतंकी कैसे किसी धर्म के पुरोधा हो सकते हैं ये कैसा मुस्लिम कल्याण है? जिसमें धर्म राष्ट्र से बड़ा हो गया है।  शाहबानों प्रकरण जिसनें संसद की गरिमा तार -तार की या फिर केरल के बम धमाको के लिए जवाब देह आतंकी संगठनों के बचाव में उतरी केरल विधानसभा हो या फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की गैर संवैधानिक गतिविधियां हों CAA के नाम पर शाहीन बाग का विरोध प्रदर्शन हो या फिर घुसपैठियों के लिए आजाद मैदान, मुंबई का प्रदर्शन हो इनमें से कौन सा संवैधानिक और राष्ट्रहित में है?

52 अलग-अलग फिर के  इस देश में एक दूसरे के खिलाफ फतवा देकर रहते हैं जाति विहीन धर्म आरक्षण के नाम पर न सिर्फ अपनी जाति बताती है बल्कि उन सुविधाओं का उपभोग भी करती है । इसके विपरीत न यहां बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए कोई उनके धार्मिक (सनातन) बोर्ड है न ही कभी विधानसभा या संसद ने हिंदू धार्मिक कारणों के लिए उच्चतम या उच्च न्यायालयों का फैसला बदला न हिंदू आतंकवादी है और न हीं उनके पास जमीयत जैसी कोई संस्था है ,जो उनके लिए केस लड़े उनको भगवान श्री राम अयोध्या में पैदा हुए साबित करना हैं, बल्कि जन्मभूमि का केस न्यायालय में लड़ना है। आराध्या ने अपना केस अदालत में लड़ा हो ऐसा ये विश्व का इकलौता मसला है । हजारों मंदिर तोड़ दिए गए इनमें श्री कृष्ण जन्म स्थलीय मथुरा और काशी, विश्वनाथ वाराणसी भी है, जिसके लिए हिंदू आज भी संघर्ष कर रहे हैं हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य गिरफ्तार भी किए गए जेल भी भेजे गए ।

एक तरफ संविधान के परिपालन की बाध्यता है दूसरी तरफ स्वेच्छाचारिता है किसी देश की बहुसंख्यक आबादी चारा बनकर भाईचारा निभाए ऐसा एक ही देश भारत है यदि संविधान सर्वोपरि है तो वों सबके लिए फिर ऐसा क्यों है कि एक धर्म को हर सुविधा और दूसरे धर्म को दोयम दर्जा ? मौलाना,मौलवी किसी राजनीतिक दल को मत देने पर किसी का हुक्का पानी कैसे बंद कर सकते हैं?लोकतंत्र कैसे बिना तंत्र के चल सकता है ?कैसे लोक में लकवा लग सकता है? या फिर सरकारें समदर्शी संविधान को अपने और अपने वोटो के खातिर तोड़ मरोड़ रही है या फिर लगता है कि सिर्फ और सिर्फ हर परिस्थिति में वोट की फसले काटनी है क्योंकि सरकारें समदर्शी नहीं है?

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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