मुखिया के मुखारी –  देश बड़ा या धर्म

मुखिया के मुखारी –  देश बड़ा या धर्म

महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के लिए एवं अन्य राज्यों के विधानसभा सीटों का उपचुनाव आज संपन्न हो गया। मतों के दान के साथ हुए इस मतदान का बेशर्म विश्लेषण एग्जिट पोल के रूप में टीवी चैनलों पर दिखने भी लगा ,सारे टीवी चैनल्स बिना जवाबदेही के इसे दिखा भी रहे और खुद उसकी विश्वसनीयता पर संदेह भी जाता रहे। राजनीतिज्ञ मतों के लिए कुछ भी कर रहे, टीवी चैनल (मीडिया) बाजार के लिए कुछ भी करने पर आमादा है कल अखबार भी यही एग्जिट पोल छापकर लोकतंत्र के उत्सव में अपनी पूर्णआहुति देंगे।न माप,न पैमाना सिर्फ हांकना,ऐसी है उनकी बुद्धजीविता यदि आपको अपने ही काम पर विश्वास नहीं है तो पत्रकारिता के नाम पर भ्रम फैलानें की क्या आवश्यकता? जब आप एक जगह भ्रम फैला रहे हैं तो ये अब आपका पेशा ही बन चुका होगा? औंधे मुँह  गिरते एग्जिट पोल ,एक उत्तर तो दूसरा दक्षिण बताता ,सर्वे पूरी तरह से अवैज्ञानिक ही है और उस पर विमर्श करते (बकवास) तथा कथित बुद्धजीवियों की परजीविता का प्रमाण ही है।ऐसा नहीं है कि सटीक विश्लेषण नहीं हो सकता या इसका कोई वैज्ञानिक ढंग नहीं है,पहले एग्जिट पोल एग्जैक्ट होते थे पर बाजारवाद ने इन्हें दूषित कर दिया। सो अपनी ढफली अपना राग का चलन चल निकला और पत्रकारिता की विश्वसनीयता कहीं और चली गई ।

अब इन चुनावों के मुद्दों पर आते हैं । बुद्धजीवियों का कहना है कि जो राजनीतिक दल नेरेंटिव गढ़ लेती हैं वों चुनाव जीत जाती है ,संविधान और आरक्षण का मुद्दा गढ़कर इंडिया गठबंधन ने भाजपा की बहुमत वाली सरकार को गठबंधन की सरकार बना दिया। मोदी का जादू उतरा, मोदी सरकार की जगह एनडीए की सरकार बन गई।  महाराष्ट्र में मुद्दे तो कई थे पर केंद्र में अल्पसंख्यकों से संबंधित मसले थे ,उलेमा काउंसिल ने 17 सूत्रीय मांग आघाडी को थमाई ,वोट जिहाद की सार्वजनिक मांग होने लगी ।10% मुस्लिम आरक्षण झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिये और उनके द्वारा आदिवासी महिलाओं से निकाह कर जमीन कब्जाना संथाल परगना सहित पूरे झारखंड की डेमोग्राफी का बदलाव मुद्दा बने ।यूपी के नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सर्वाधिक चर्चा बुर्के ने बटोरी ,उनकी पहचान के लिए बवाल मचाया गया । मुद्दा नहीं बन पाया तो करहल में दलित बेटी की हत्या का घूंघटवालियों का ध्यान रखने की जरूरत ही नहीं समझी गई थी सो बवालियों ने बवाल ही नहीं काटा, बल्कि दलित बेटी की सांसों की डोर ही काट डाली।

सबका साथ,सबका विश्वास से चालू हुआ राजनीतिक दर्शन बटोगे तो कटोगे एक रहोगे तो सेफ रहोगे तक यूं ही नहीं पहुंचा ,यदि इस देश में हिंदूवादी सरकार है तो फिर क्या कारण है कि मुद्दे चुनावी सारे मुसलमानों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहते हैं । हिंदुत्ववादी सरकार के दौर -------ए------- हुकूमत में ज्ञानवापी, कृष्णजन्मभूमि से लेकर कई मुद्दे पड़े हुए हैं, सरकार इनके प्रति उदासीन है । वक्फ बोर्ड पर सनातन बोर्ड का अता-पता नहीं ,मंदिरों से टैक्स सरकारें लेती है तनख्वाह मौलवियों की बढ़ाती है ऐसा क्यों? तमाम सरकारी सुविधा सबको मिल रही है बिना धर्म, संप्रदाय और जाति देखें फिर क्यों वोट जिहाद की अपील लोकतंत्र में सिर्फ मत देने की वजह से किसी का हुक्का पानी क्यों बंद करने की धमकी ? क्या ऐसी मांगों को करने के पीछे कोई राजनीतिक हित नहीं होगा? या फिर राजनीतिक दल समुदाय विशेष का समावेशी विकास से बाट और काट नहीं कर रही हैं।

जब सबका साथ, सबका विकास की बात हो रही थी तब मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भाजपा को वोट न देने की अपील की । एक तरफा वोट इंडिया गठबंधन की तरफ गिरे पर ऐसा हिंदुओं के साथ नहीं हुआ ,न हिंदुओं ने एक मुस्त वोट दिया प्रतिक्रिया होनी थी सो हुई बात कटेंगे तो बटेंगे तक पहुंचनी थी सो पहुंच गई। इन चुनावों में हिंदू एकीकरण की बात भी खुलकर हुई सारी सुविधाओं का उपभोग कर भी यदि आप सरकार से असंतुष्ट तो ये लोकतंत्र में आपका अधिकार है पर यदि असंतोष का आपका कारण सिर्फ धार्मिक है, तो फिर दूसरी तरफ से भी असंतोष धार्मिक ही उपजेगा फिर राजनीतिज्ञ और बुद्धजीवी गले फाड़ेंगे जनभावनाओं के विरुद्ध तुष्टीकरण को धर्मनिरपेक्षता का जामा पहनाएंगे कुतर्कों से भरे प्रवक्ता शब्द बाण चलाएंगे, क्या इसे सही गलत और गलत सही हो जाएगा ? इन चुनावों के परिणाम बतायेंगे की समावेशी राजनीति के नाम पर परोसी गई छद्म धर्म निरपेक्षता चलेगी या देश सही में धर्मनिरपेक्ष बनेगा।
इन चुनावों से फैसला ये होगा की ---------------------------------------------धर्म से बड़ा राष्ट्र हैं या राष्ट्र से बड़ा धर्म हैं
                                सार --------- देश बड़ा या धर्म

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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