संविधान दिवस पर विशेष : विश्व के सबसे बड़े संविधान को जीवंत बनाए रखना हम सब की जवाबदारी

संविधान दिवस पर विशेष : विश्व के सबसे बड़े संविधान को जीवंत बनाए रखना हम सब की जवाबदारी

हर साल भारतीय संविधान के बारे में लोगों को जागरूक करने और संविधान के महत्व व आंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं को फैलाने के उद्देश्य से संविधान दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं पहली बार संविधान दिवस कब मनाया गया। इस दिन को मनाने की वजह क्या थी और भारतीय संविधान की क्या खूबियां हैं। किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए संविधान देश के नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को तय करता है। साथ ही सरकार के विभिन्न अंगों के अधिकार और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। संविधान किसी भी देश की शासन प्रणाली और राज्य को चलाने के लिए बनाया गया एक दस्तावेज होता है। 

संविधान की जरूरत को महसूस करते हुए आजादी के बाद भारत ने भी संविधान को अपनाया। संविधान निर्माण के लिए कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया और उनमें से अच्छे नियम कानूनों को निकालकर भारत का संविधान बनाया गया। 2015 में संविधान दिवस मनाने की शुरुआत होने की भी एक वजह थी। वर्ष 2015 में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती थी। आंबेडकर को श्रद्धांजली देने के लिए इसी वर्ष संविधान दिवस मनाने का फैसला गया। ये फैसला सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने लिया। इस  दिन को मनाने का मकसद संविधान के महत्व और डा. भीमराव आंबेडकर के विचारों को फैलाना है। भारत में हर साल संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है। इस दिन साल 1949 में भारत का संविधान अपनाया गया था। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद संविधान की आवश्यकता को महसूस किया गया। संविधान तैयार करने में दो वर्ष, 11 माह और 18 दिन का वक्त लगा। जिसके बाद भारत गणराज्य का संविधान 26 जनवरी 1949 को बनकर तैयार हो गया। हालांकि इसे आधिकारिक तौर पर  लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया।

इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है। 26 नवंबर को ही संविधान को अनाधिकृत तौर पर इसलिए लागू किया गया, क्योंकि इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ. सर हरिसिंह गौर का जन्मदिन होता है। हालांकि पहली बार संविधान दिवस साल 2015 से मनाया गया और तब से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। भारतीय संविधान के निर्माण का श्रेय डॉ. भीमराव आंबेडकर को दिया जाता है। बाबा साहेब संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। उन्हें भारतीय संविधान का जनक भी कहा जाता है। संविधान सभा में 299 सदस्य थे और डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे।भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इस में 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 25 भाग हैं। भारतीय संविधान संघात्मक और एकात्मक दोनों तरह का है। हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का भी जिक्र है।

संविधान का ड्राफ्ट बनाने के लिए प्रारूप समिति ने मई 1947 में संविधान सभा के सामने मसौदा पेश किया था। इस ड्राफ्ट में 7,500 से ज्यादा संशोधन सुझाए गए, जिनमें से लगभग 2,500 को स्वीकार किया गया। संविधान सभा का मसौदा तैयार करने के लिए 7 सदस्यों की ड्राफ्टिंग कमेटी बनाई गई थी। इस ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ आंबेडकर थे।केवल आंबेडकर पर आ गई सारी जिम्मेदारी जब संविधान का ड्राफ्ट बनाने की बात आई, तो 7 सदस्यों में से सिर्फ आंबेडकर ही मौजूद थे। इस घटना का जिक्र ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य टी.टी कृष्णामचारी ने संविधान सभा में किया। टीटी कृष्णामाचारी ने नवंबर 1948 में संविधान सभा में कहा कि 'मृत्यु, बीमारी और अन्य व्यस्तताओं' की वजह से कमेटी के ज्यादातर सदस्यों ने मसौदा बनाने में पर्याप्त योगदान नहीं दिया। इसके चलते संविधान तैयार करने का बोझ डॉ आंबेडकर पर आ पड़ा। अकेले आंबेडकर ने तैयार किया मसौदा। दरअसल, संविधान सभा की प्रारूप समिति में जिन सात लोगों को रखा गया उनमें से एक सदस्य बीमार हो गए, दो दिल्ली के बाहर थे, एक विदेश में थे, एक ने बीच में इस्तीफा दे दिया वहीं एक सदस्य ने जॉइन नहीं किया।

इस तरह से सात सदस्यों वाली कमेटी में केवल आंबेडकर के कंधों पर संविधान का ड्राफ्ट बनाने की सारी जिम्मेदारी आ गई। आकाश सिंह राठौर की किताब 'आंबेडकर्स प्रिएंबल: ए सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ द कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ़ इंडिया' में इसका उल्लेख है कि ड्राफ्टिंग कमेटी की बैठकों में सभी सदस्य मौजूद नहीं रहे। जबकि डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से पीड़ित होने के बाद भी आंबेडकर ने संविधान तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं आंबेडकर ने करीब 100 दिनों तक संविधान सभा में खड़े होकर संविधान के पूरे ड्राफ्ट को धैर्यपूर्वक समझाया और हर एक सुझाव पर विमर्श किया।







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