मुखिया के मुखारी – कूटनीति के साथ राजनीति कीजिए

मुखिया के मुखारी – कूटनीति के साथ राजनीति कीजिए

इतिहास से सीख लेनी चाहिए ताकि वर्तमान में गलतियां दोहराई ना जाए, भविष्य उज्जवल हो । पृथ्वीराज चौहान ऐतिहासिक वीर पुरुष थे जिनकी शौर्य गाथा आज भी कही सुनी जाती है, 17 बार गोरी को हराया,पीठ दिखा जंग के मैदान से भागते गोरी को कभी सजा नहीं दी, 18 वीं बार जंग हारे तो उसी गोरी ने उन्हें अंधा बना दिया भयावह प्रताड़ना दी उन्हें सुकून की मौत भी नसीब नहीं हुई । भला हो उनके राज कवि चंदबरदाई का ---------ता ऊपर है सुल्तान ,मत चूको चौहान वाली रचना और शब्द भेदी बाण चलाने की उनकी कला ने सुल्तान को अंजाम तक पहुंचा दिया। सुल्तान के कारिंदों ने चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान की वीभत्स हत्या कर दी ,पृथ्वीराज चौहान की समाधि (कब्र) अफगानिस्तान में है जहां उनके कब्र पर चप्पल मारने का रिवाज है, भला हो उस सज्जन का जिन्होंने उनकी कब्र खोदकर वहां से अस्थियों को भारत लाएं । वीभत्स मृत्यु संवेदनहीन अपमान, शताब्दियों तक।राजा शूरवीर हो, चतुर राजनीतिज्ञ हो पर कूटनीति नहीं अपनाता हो तों उसकी कीमत सिर्फ राजा नहीं परिवार,समाज और देश भी चुकाता है। राजपूत वीरगाथाओं ,मर्यादाओं की परिणीति जौहर और मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा मंदिर तोड़े जाने और धर्म परिवर्तन रहा हो तो फिर ये कूटनीति ही आवश्यक होती है । 17 जीत से नहीं पृथ्वीराज चौहान की एक हार ने देश का इतिहास और भूगोल बदल दिया ,पूजा पद्धति बदल गई तब भी सामाजिक समरसता की बात होती थी।

सूफी, संत थे पर पृथ्वीराज चौहान के साथ और राजस्थान के उस भू-भाग के साथ क्या हुआ था इतिहास गवाह है, उन सूफी संतों के भूमिकाओं का। वर्तमान में भी वही माहौल है ,एक हार खोंजी जा रही है हर हाल में, राजतंत्र की जगह लोकतंत्र है,जीत से विपक्षी परेशान है, इवीएम का षड्यंत्र बता रहे, मत और दान यानी मतदान को बंधुआ प्रथा में तब्दील करने पर आमादा है । सत्ता के लिए तब भी षड्यंत्र हुए विदेशी ताकतों से हाथ मिलाया गया उन्हें आमंत्रित किया गया ,भारत की अस्मिता को तार -तार करने, तब भी जयचंद हमारे थे, आज के भी हमारे ही हैं ।विदेशी ताकते आज भी प्रयास दोहराने में लगी है आधुनिक शासक वर्ग (प्रधानमंत्री) को समझना होगा कि उनकी जीत पर जीत से नहीं एक हार से देश का इतिहास भूगोल सब कुछ बदल सकता है । सतर्क रहना होगा कुतर्कों की काट ढूंढनी होगी, सिर्फ राजनीति नहीं कूटनीति करनी होगी। 1991 के धर्म उपासना स्थल कानून और 1995 के वक्फ बोर्ड कानून का समानांतर अध्ययन करिए 1991 वाला कानून कहता है कि 1947 के पहले तोड़े गए धार्मिक स्थलों( मंदिरों ) के स्वरूप को बदला नहीं जा सकता चाहे, मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें ही क्यों ना बनाई गई हों ,अपवादों को छोड़कर। आप अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को अपना नहीं बना पाएंगे ऐसी पूरी व्यवस्था तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कर दी क्योंकि ये हिंदू आस्था का विषय था।

1995 के वक्फ कानून में व्यवस्था की गई कि वक्फ बोर्ड जिस भी निजी या सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा पेश कर दे वों वक्फ का ,आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते वक्फ ट्रिब्यूनल में ही केस चलेगा ,साबित करने की जवाबदारी संपत्ति धारक की होगी ।चुनाचें वक्फ ने दावा कर दिया तो आपकी मिल्कियत विवादित हो गई ,वक्फ मुस्लिम मान्यताओं का मसला है तो ये असीमित अधिकार समदर्शी संविधान में ,दो अलग-अलग विधान दोहरे मापदंडों वाले। इसलिए तो चाहिए था 400 पार ये बात अलग है कि आप 400 पार की बातों का आर- पार नहीं समझा पाए ।राजनीति में कूटनीति का प्रभाव नहीं समझ पाए।फिर वही गलती जाति जनगणना करवाने का हो -हल्ला है, हल्ला करने वालों से आप ना पूछ पा रहे उनकी जाति ,ना देशवासियों को बता पा रहे।  कुछ नहीं तो उनके वंश वृक्ष का प्रकाशन करवा दीजिए, जनता खुद समझ जाएगी जाति का कालम तो लोकसभा उम्मीदवारी में भी भरना होता हैं। धर्म भी बताना होता है ,वहीं से निकालिए जाति और धर्म दोनों बता दीजिए आप किस बात का इंतजार कर रहे हैं। आरक्षण तो मिलना ही चाहिए और हर जगह मिलना चाहिए अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ो का ये हक हैं। जम्मू कश्मीर में जैसे दिलवाया है वैसे ही AMU,जामिया जैसे संस्थानों में भी दिलवा दीजिए। वर्तमान सुधर जायेगा लोग सुधर जायेंगे जो हजारों वर्ष का इतिहास नही मानते थे अपनी बारी आई तो 800 वर्ष का इतिहास बताने लगे    संवैधानिक व्यवस्थाओं का परिपालन करवाना सरकारों का दायित्व है।अपने दायित्वों का निर्वहन कीजिए ,उज्जवल भविष्य के लिए सिर्फ राजनीति ही नहीं-------- -----------------------कूटनीति के साथ राजनीति कीजिए।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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