राजनांदगांव: आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी कठिनाईयों का सामना किया जा सकता है। ऐसी ही कहानी है शहर के रामनगर निवासी 30 वर्षीय दिनेश टांडेकर की। 14 वर्ष पहले ट्रेन दुर्घटना में दिनेश ने अपने दोनों पैर खो दिए। ट्रेन दुर्घटना में दोनों पैर खोने के बाद दिनेश की जिंदगी में अंधेरा छा गया। शरीर बैसाखी पर आ टिकी। आगे का रास्ता दिखना बंद हो गया। परिवार पहले से ही आर्थिक कमजोरी से जूझ रहा था। इसके बावजूद दिनेश ने हार नहीं मानी और मजबूत आत्मविश्वास के दम पर खुद के लिए नया रास्ता तैयार की। आज दिनेश बसंतपुर डोंगरगांव रोड में दो गुमटियों में जूते-चप्पल का व्यवसाय कर रहा है। जूता दुकान चलाकर अपने परिवार की परिवरिश करने के साथ दो लोगों को रोजगार भी दे रहा है। दिनेश कहता है कि दुर्घटना में दोनों पैर खोने का मलाल है। चाहकर भी नये-नये जूता-चप्पल नहीं पहन सकता, लेकिन जरुरतमंद दिव्यांगों के पैरों में जूता-चप्पल पहनाकर काफी सुकुन मिलता है। अब तक 90 से अधिक जरूरतमंद दिव्यांगों को जूता-चप्पल निश्शुल्क उपलब्ध कराने के साथ अन्य तरह की सहायता कर चुका है।
दिव्यांगों को स्व रोजगार करने कर रहा प्रेरित
शरीर से दिव्यांग दिनेश का आत्मविश्वास काफी मजबूत है। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण दिनेश ने कक्षा आठवीं तक पढ़ाई कर छोड़ दी। इसीबीच ट्रेन दुर्घटना में उनका दोनों पैर कट गया। दिनेश दिव्यांगों को आगे बढ़ने प्रेरित कर रहे हैं। दुकान में आने वाले दिव्यांगों को स्वयं का रोजगार स्थापित करने मार्गदर्शन करने के साथ सहायता भी कर रहे हैं। ट्रेन दुर्घटना में दोनों पैर खोने के बाद उन्होंने प्रण लिया था कि वे खुद तो कभी जूते नहीं पहन पाएंगे, लेकिन दूसरों के पैरों में जूते पहनाकर उनकी सेवा जरूर करेंगे। उन्होंने साबित कर दिया कि दिव्यांगता किसी को जीवन में सपने और लक्ष्य हासिल करने से नहीं रोक सकती।
माता-पिता ने बढ़ाया हौसला
बता दें कि दिनेश पहले स्टेशन में जूता-पालिश करता था। वर्ष 2010 में महाराष्ट्र के गोंदिया से राजनांदगांव आ रहा था। धनोली के पास दोनों पैर ट्रेन के पहिये के नीचे आ गए। दुर्घटना में दोनों पैर कट गए। कुछ वर्ष घर में आराम करने के बाद जूता-चप्पल व्यवसाय करने की इच्छा हुई। उसने लाकडाउन के दौरान एक गुमटी से इसकी शुरुआत की। आज उसके पास दो गुमटियां हैं, जहां अच्छा खासा कारोबार कर रहे हैं। गुमटी में जूता-चप्पल दुकान खोलने माता-पिता ने हौसला बढ़ाया। इसके बाद दिनेश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
तीन साल बाद भी नहीं लग पाया नकली पैर
ट्रेन दुर्घटना में पैर कटने के बाद दिनेश ने प्रशासन को नकली पैर लगाने के लिए आवेदन दिया। लेकिन तीन वर्ष बाद भी नकली पैर नहीं लग पाया। यहीं नहीं अन्य योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। कुछ वर्ष पहले बैटरी चलित ट्राइसिकल उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन बार-बार तकनीकी समस्या के चलते मेंटेनेंस में अधिक राशि लगने के कारण उसे भी छोड़नी पड़ी।
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