भारतीय राजनीति की विवशता हो गई है संभल,संभल की आड़ में राजनैतिक रोटी सेकने की दौड़ -होड़ में बदल गई है । हर विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस और सपा अपने मुस्लिम तुष्टीकरण के इरादों को सम्हाल नहीं पा रही हैं। संभल पर उनका एकतरफा जज्बा सम्हल नहीं रहा है, संभल का घटनाक्रम बता रहा है कि, भारतीय राजनीति में मुस्लिम वोटो की क्या अहमियत है ,संभल वो शहर है जिसका दशकों से सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास रहा, 1947 से लेकर 1976- 1978 से अब तक ,कईयों बार संभल ने सांप्रदायिक हिंसा का विभत्स दौर देखा है। संभल शहर में 78% मुस्लिम और 22% हिंदू रहते हैं तथाकथित गंगामुनी,तहजीब का परिणाम हिंदुओं ने यहां खूब भोगा है ,संभल की जनसंख्या में मुसलमानों को एकमुश्त मतदाता बनाने की कवायद तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने हमेशा की ,कर रहे हैं ,और करते रहेंगे । संविधान रक्षा की कसम खाने वाले राजनीतिक नेता जो खुद संसद में बैठकर कानून बनाते हैं, वही कानून तोड़ने पर आमादा है । यदि निषेधाज्ञा ( पहले 144 और अब 163) का पालन सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ही नहीं करना चाह रहे तो फिर क्या ये सिर्फ आम नागरिकों के लिए बाध्यकारी है । संभल हिंसा में सांसद संभल, खुद नामजद आरोपी है , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) संरक्षित इमारतों में ना किसी धर्म विशेष का कब्जा हो सकता है ,ना ही ऐसे धार्मिक स्थलों पर धर्म उपासना स्थल कानून 1991 लागू होता है । संभल की मस्जिद ASI सरंक्षित ईमारत है और इसके सर्वे का आदेश न्यायालय ने दिया ,ये सारी चीजें संवैधानिक प्रावधान है।
इन संवैधानिक प्रावधानों को न मानने वाले कैसे संविधान के रक्षक? पत्थर ,नकाबपोश भीड़ सीसीटीवी को तोड़ती, वाहनों को आग के हवाले करती है ,पुलिस पर घातक हथियारों से हमले करती है, फिर भी वो सिर्फ बच्चे हैं ,और किसी-किसी के लिए तो शहीद भी हो गए हैं। शहादत क्या देश के कानून तोड़ने से मिलती है,उन्मादी धार्मिक भीड़ बनने से मिलती है ,ये शहीद शब्द का अपमान है। हिंदू आस्था के बड़े केंद्रों पर विध्वंस शाश्वत सत्य है, पानीपत,संभल,वाराणसी, अयोध्या,धार से लेकर अहमदाबाद और न जाने कितने धार्मिक स्थलों ने धार्मिक कट्टरता और हैवानियत झेला है । सोमनाथ के मंदिर को कईयों बार तोड़ा गया ,क्या ये हिंदुओं के धार्मिक और सांस्कृतिक आत्मविश्वास को तोड़ने का एकमेव लक्ष्य नहीं था, या हैं? क्यों उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूर्व से लेकर पश्चिम तक चारों दिशाओं में इन विध्वंसो के प्रमाण मिलते हैं, क्या यही प्रमाण सर्वे की राह में रोड़ा नहीं बन रहे । राम मंदिर की सुनवाई में सिर्फ कानून और साक्ष्य की बातें करने वाले मुस्लिम पक्ष को हिंदुओं का न्याय के लिए न्यायालय जाना भी अच्छा नहीं लग रहा ,क्या ऐसा बदल गया जो आपके भाव बदल गए।
न्यायालय और साक्ष्यों पर विश्वास नहीं रहा ,हजारों वर्ष के इतिहास को नकारने वाले ,अब 800 वर्षों का इतिहास बता रहे। बाबरनामा,आईने,अकबरी जैसे रचनाओं को ले-लेकर न्यायालय जाने वाले अब उन्ही सबूतों को न्यायालय में रखने से कतरा रहे ,घबरा रहे क्या है ऐसा इन सबूतो में? कितने फरमान और प्रमाण है इनमें मंदिर तोड़े जाने के ? जजिया वसूलनें के जबरन धर्मांतरण के ? कश्मीर में ब्राह्मण, राजस्थान में राजपूत, ग़ुज्जर, जाट अन्य पिछड़ी जातियों से लेकर दलितों का धर्मांतरण देश भर में हुआ ,जिसके प्रमाण आज भी मुस्लिम समाज में विद्यमान जातियां हैं । अशरफ ,पसमांदा का भेद है । न्याय मांगना क्या गलत है ?अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की कोशिश करने मात्र से धमकियों पर धमकियां, कानून के परिपालन और सामाजिक समरसता ,सद्भाव बनाएं रखना क्या एक ही धर्मावलंबियों का दायित्व है ?स्वार्थ का प्रेम, वोटो की फसल काटने की चाहत ने आज सपा और कांग्रेस का भंडाफोड़ कर दिया ,दोनों को एक दूसरे में दिखावा दिखने लगा । इंडिया गठबंधन अब संसद में भी नहीं रहा ,सिर्फ कागजों पर रह गया । जिस गाजीपुर बॉर्डर से राहुल गांधी वापस आए ,उस शब्द में समाहित गाजी उपाधि इसे कब क्यों और कैसे मिलती है? जरा इसी का विश्लेषण कर लीजिए। महर्षि अरविंद ने कहा था कि भारत और सनातन विश्व की आत्मा है ,भारत के पास आज विश्व का मात्र 2.4% भू -भाग है ,फिर भी गजवा ए चाईना,गजवा ए यूरोप, गजवा ए अमेरिका या अफ्रीका नहीं ,सिर्फ गजवा ए हिंद की चाहत क्यों? क्या है ऐसा हिंद में और क्यों ऐसी सोच है ?इसलिए ही हमें ------- गजवा ए हिंद की सोच को रोकना है।
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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