मुखिया के मुखारी – हार से सरदार और सूबेदार दोनों परेशान हैं

मुखिया के मुखारी – हार से सरदार और सूबेदार दोनों परेशान हैं

समय का चक्र बदलता है पर सत्य नहीं बदलता ,कालचक्र का चक्र है चल रहा, संसद में कोहराम है,पक्ष और विपक्ष वो अपने सच की पहचान पर टिकेगा वही सत्य जो शाश्वत है। जिसे जनता से वास्ता है, लोकसभा चुनाव पर अतिउत्साहित इंडिया गठबंधन के गांठ खुलने लगे हैं बंधन कमजोर होने लगा है। अडानी के मसलों पर अड़ी कांग्रेस, संभल पर सपा को सम्हाल नहीं पाई, एम( मोदी ) विरोध के एकमेव लक्ष्य पर इकट्ठे हुए भानुमति के कुनबे के ईट और गारे बिखर गए क्योंकि एम (मुस्लिम) मतों के मोह नें सबको एक दूसरे से विमोहित करा दिया। देश के सबसे बड़े वोट बैंक अपना बना चाहत ने सबको हिंदू विरोधी तो बनाया ही था अबकी बारी सब एक दूसरे के विरोधी हो गए, इन्हीं मुस्लिम मतों की वजह से संविधान आरक्षण आंशिक सफलता पाने वाली इंडिया गठबंधन अखंड ना रही, खंड-खंड हो गई हरियाणा और महाराष्ट्र से चुनाव परिणाम से दो राज्यों का चुनाव क्या हारी कांग्रेस नेतृत्व पे उसके सवाल उठने लगे तथाकथित जननायक गठबंधन के भी नायक नहीं रहे।  सपा,तृणमूल में आंख दिखाई, ममता ने मातृत्व से इनकार किया एनसीपी, शिवसेना ने अपना सीना तान दिया, राहुल को अपना नेता मानने से इनकार किया । भाजपा भी खम ठोक रही है सोरोस से कांग्रेस का रिश्ता पूछ रही, रही सही कसर माता ने पूरी कर दी सह अध्यक्ष होकर सारे संबंधों की घोषणा कर दी ,अखंड नहीं खंड-खंड भारत की अपनी नियोजित मानसिकता प्रदर्शित कर दी। LOP राजनीति पे नहीं ,साक्ष्यों पे नहीं, मुद्दे पे नहीं ,मुखौटो के भरोसे है ,पचपन की उम्र में बचपन वाली हरकतें कर रहे हैं मेरा भाई, मेरा भाई की दुहाई बहना दे रही है इस उम्र में भी माता-पुत्र को जनता को सौंप रही सत्ता के शीर्ष परिवार की सत्ताहीन होकर ममत्व की दुहाई बहना की राजनीतिक श्रेष्ठता की हार पर हार सिकुड़ता जनाधार।

कहां है आपका आधार?  परिवार ना बचा पाया पारिवारिक प्रतिष्ठा, गठबंधन के नाम पर बनाया गया बेमेल समाज की लूटा रहा अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा, भाषा वही बोली जा रही है जो अब तक आप बोल रहे थे, अडानी के बराबर सोरेस को लोग तौल रहे।  देशी को देशी पसंद विदेशी को विदेशी व्यापार करने आई ईस्ट इंडिया ऐसे ही देश को गुलाम बनाई थी, वरना बहु तो मेनका भी है ,वही परिवार, वही त्याग वही समर्पण पर उपलब्धियां देशी और विदेशी वाली ऐसे ही नहीं दिखती प्रेम गोरियों वाली ,संबंध तो संबंध है उनमें ये कैसा बंधन है ,कैसा ये दोहरा मापदंड है ? दो बहूओं के बीच कैसा ये अंतर्द्वंद है?  एक घर से निकाल दी गई, दूसरी कांग्रेस की सरताज हो गई, गांधी -गांधी के बीच फर्क कैसा? बहू -बहू के बीच ये अंतर्द्वंद कैसा? जो भाषा बोली है उसका परिणाम भी झेलना होगा, आरोपों का अबकी बार जवाब देना होगा निन्यानवे के फेर में उलझे हैं, सत्ता से बहुत दूर आप खड़े हैं ,कालचक्र है न्याय तो होगा ही शिखर पुरुष का नेतृत्व सवालों पे है तो फिर छेत्रपों की छत्रपें क्षरित होगी । दिल्ली में सवाल राहुल जी से है तो रायपुर में बवाल पुराने मुखिया के नाम का है, कांग्रेसी नेता अंबिकापुर वाले महाराज के सारे कारिंदे कह रहे ,कोयला घोटाला तो हुआ छत्तीसगढ़ में, प्रताड़ित हुए सारे कांग्रेसी ,सौतेला व्यवहार हुआ कांग्रेसियों से अब कौन सी जांच बिठाई जाए जब अपने ही मान बैठे कि आप घोटाले बाज आप ही इन सब के सरताज हैं ।

बनिया क्या पूनिया का भी नाम है ,मुखिया के आका का भी आचरण समान है। घोटाले में सबने की बंदरबांट छत्तीसगढ़ की अस्मिता तार- तार है छत्तीसगढ़ियों ने दी थी बागडोर शासन की आपने सिर्फ कुशासन किया।  हिस्सा सारा रायपुर से लेकर दिल्ली तक बटा कसमें तो खाते थे कि एक भी घुसपैठियों नहीं है, अब के गृह मंत्री कह रहे 46 फूंडागांव जेल में बंद है, सैकड़ो वापस भेज दिए गए । अब क्या राजनीति से लेंगे आप सन्यास ? या फिर ये भी शराबबंदी वाली गंगाजलीय प्रतिज्ञा है जिसकी सिर्फ अवज्ञा ही अवज्ञा है ,या फिर राजनीतिक कर्तव्य निष्ठा है जिसकी नहीं कोई निष्ठा है,दिल्ली के खानदानी सरदार नहीं रहे असरदार तो फिर ऐसे में कैसे असर होगा आपका? रायपुर के सूबेदार वो तो खानदानी है दशकों पुरानी उनकी कहानी है।आप तो दशक भर भी ना रहे शासन में,ना खानदानी कोई आपकी निशानी है, हार सरदार को असरदार नहीं रहने देती बहन भी जनता का मन नहीं बहला सकती तो फिर बिन खानदानी पहचान के सूबेदारी कैसे चलेगी सरदार सूबेदार दोनों परेशान हैं, बिन कर्मों के कैसे मिलेगी जीत ---------------------हार से सरदार और सूबेदार दोनों परेशान हैं ।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल









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