पंजाब : पंजाब पुलिस के अधिकारी की गाड़ी को रास्ता न देना कपूरथला के एक व्यक्ति को बहुत भारी पड़ा। पुलिस ने उसे एनडीपीएस एक्ट में गिरफ्तार कर सलाखों में बंद कर दिया। हालांकि फोरेंसिक रिपोर्ट में भी पुष्टि हो गई थी कि उसकी जेब में पैरासिटामोल थी, ना कि कोई नशे की गोली।
इसके बावजूद उसे अवैध हिरासत में रखा गया। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस को फटकार लगाई। कोर्ट ने इसे अत्याचार मानते हुए पंजाब सरकार को आदेश दिए कि वह पीड़ित को दो लाख मुआवजा दे।
साथ ही डिजिटल रिकॉर्ड में याची का नाम छिपाने का आदेश दिया है। कपूरथला निवासी याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर एनडीपीएस के मामले में नियमित जमानत देने की मांग की थी।
याची ने बताया कि उसे झूठा केस बनाकर फंसाया गया क्योंकि उसने पंजाब पुलिस के एक अधिकारी को साइड नहीं दी थी जो उसके पीछे कार से चल रहा था। यह मामला 24 जून, 2024 का है जबकि एफआईआर दो दिन बाद 26 जून को दर्ज की गई। पुलिस ने इस दौरान उसे अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया।
उसके परिवार के सदस्यों को भी इसकी सूचना नहीं दी। 13 सितंबर को पंजाब सरकार ने फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट हाईकोर्ट में सौंपी, जिसके अनुसार जब्त सामग्री एसिटामिनोफेन (पैरासिटामोल) थी।
याचिकाकर्ता को 2 महीने और 15 दिन की वास्तविक हिरासत में रखने के बाद हाईकोर्ट ने 13 सितंबर को नियमित जमानत दी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि एफएसएल रिपोर्ट 31 अगस्त को मिल गई थी। उसके बावजूद पीड़ित को 17 सितंबर को हाईकोर्ट के आदेश के बाद छोड़ा गया।
पंजाब के डीजीपी गौरव यादव ने बताया कि मामले में कैंसिलेशन रिपोर्ट दाखिल की है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच की जा रही है। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर अगर उसे अवैध हिरासत में रखा जाता है तो राज्य मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है।
तल्ख टिप्पणी: पुलिस की मनमानी से परेशान हैं
हाईकोर्ट ने कहा कि हम पुलिस अधिकारियों की मनमानी से बहुत परेशान हैं। ऐसे घोर उल्लंघन को देखना भयावह है, जहां कानून के शासन को बनाए रखने का कर्तव्य का पालन करने में विफल रहें। न्यायालय को यह आचरण अस्वीकार्य और अत्यंत चिंताजनक लगता है।
पीठ ने कहा कि दोषी अधिकारियों के आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि न्याय सुनिश्चित करने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए जवाबदेही उपाय आवश्यक हैं। न्यायालय ने आदेश दिया कि मुआवजे की 50% राशि दोषी अधिकारी सब इंस्पेक्टर-राजिंदर सिंह के वेतन से वसूल की जानी चाहिए। पुलिस ने न केवल याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है, बल्कि शक्ति के दुरुपयोग को भी उजागर किया है।
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