मुखिया के मुखारी – कथ्य में तथ्य और सत्य दोनों चाहिए

मुखिया के मुखारी – कथ्य में तथ्य और सत्य दोनों चाहिए

संविधान के गौरवशाली 75 वर्ष पूरे हुए संसद में बहस, पक्ष- विपक्ष ने अपने विचार रखें l भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर अंबेडकर एवं संविधान सभा के  सदस्यों की कड़ी मेहनत ,लगनशीलता और राष्ट्र के लिए सर्वोत्तम उपयुक्त प्रावधानों एवं कानूनों को इसमें सम्मिलित किया गया l तब से यही संविधान भारतीय गणतंत्र की एकमात्र नियम पुस्तिका है , संविधान के हिसाब से ही इस देश की सरकारें चली है और चलनी भी चाहिए l भारतीय संविधान सर्वोच्च है जो विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका को अधिकार देती है तो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करने का हक भी प्रदान करती है l परस्पर समन्वय से संविधान सम्मत कार्य करना सरकारों का दायित्व है l संविधान में संशोधनों के अधिकार संविधान प्रदत्त है, जो इसी अपेक्षा से दिए गए थे कि संसद में समभाव रखने वाले ही सदस्य होंगे,राजनीति जब सत्ता के रंग में रंगती है,तो फिर नैतिकता ,बेरंगी नियत पक्षपाती और सत्ता का स्वार्थ सबसे ऊपर हो जाता है l

सत्ता की राजनीति जनसेवा की जगह स्वसेवा का रूप ले लेती है,परिवर्तन समय की मांग है तात्कालिक परिस्थितियों में बनाए गए कानूनों की वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप  समीक्षा और राजकाज में निरंतरता रहे, इसलिए संशोधन आवश्यक थे है और रहेंगे l  पर यदि सत्ता की निरंतरता के लिए सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए संशोधन किए जाएं, तो वों लोकतंत्र के लोक का अपमान और तंत्र के व्याभिचार का द्योतक है lसंसद में बहस की शुरुआत रक्षा मंत्री ने की उन्होंने कहा कि देश में कुछ लोगों को संविधान जेब में रखकर चलने की आदत है ,और वह पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा करते आ रहे हैं l इस कथ्य का तथ्य ये है कि इस देश में करीब एक सौ तीस बार अनुच्छेद 356 का उपयोग हुआ, चुनी हुई सरकारें सिर्फ इसलिए गिरा दी गई क्योंकि वों विरोधी दलों की सरकारें थी l केरल में ई एम एस नम्बुदरी पाद की सरकार 1959 में गिरा दी गई ,जब नेहरू जी प्रधानमंत्री थे l लगभग 10 बार नेहरु जी ने 52 बार इंदिरा गांधी ने और बाकी बची कांग्रेस सरकारों ने मिलकर लगभग 100 निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त कर राष्टपति शाषन लगाया l यह कृत्य सिर्फ अपनी राजनीतिक तानाशाही की प्रवृत्ति को पल्लवित एवं पोषित करने किया गया l कांग्रेस का ये इतिहास रहा है कि उसने जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को बेवजह बर्खास्त किया l

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ जजों की वरिष्ठता को दरकिनार कर ,कनिष्ठ जज को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया ,सुप्रीम कोर्ट के वकील को राज्यसभा सदस्य और न्यायाधीश बनाया l कई अफसरों को लोकसभा ,राज्यसभा की सदस्यता या फिर राज्यपाल का कार्यभार इसलिए मिला, कि वों सरकार के अनुचित फैसलों का मनमानें ढंग से परिपालन करवाये l रोमेश भंडारी ऐसे ही राज्यपाल थे एम. एस. गिल ऐसे ही मुख्य चुनाव आयुक्त ढेरों ऐसे उदाहरण हैं, कागज कम पड़ जाएंगे, लेकिन नाम और कृत्य कम नहीं पड़ेंगे l  बाबा साहब के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं था ,ये बाद में जोड़ा गया,ये कैसे और क्यों जोड़ा गया एक गंभीर विषय है इस देश में संविधान के रहते 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, नागरिकों के मूल अधिकार स्थगित कर दिए गए, सारे विरोधी नेता जेल में ठूस दिए गए, अखबारों के प्रकाशन रुकवा दिए गए ,लोकतंत्र की जगह तानाशाही ने ले ली, क्योंकि एक न्यायाधीश ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता विधि सम्मत ढंग से रद्द कर दी थीl न्याय यदि अपने को न सुहाये तो फिर उन्हें लोकतंत्र नहीं तानाशाही सुहाती है l

शाहबानो प्रकरण जिसमे उच्चतम न्यायालय का फैसला ही राजीव सरकार ने बदल दिया l न वक्फ बोर्ड कानून और न ही उपासना स्थल कानून 1991 समभावी कानून है l संविधान पर विपक्ष की तरफ से पहली बार की सांसद प्रियंका वाड्रा ने विचार रखे, संविधान पर बोली साथ-साथ संभल, हाथरस और हर राजनीतिक मुद्दों पर बोली, पर अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के या सरकारों के गैर संवैधानिक कृत्यो पर कुछ ना बोली l संविधान समीक्षा की बात सबसे पहले 1976 में कांग्रेस (देवकांत बरुआ) ने की थी ,ना ये बताया कि राहुल गांधी का बिल फाड़ना गैर संवैधानिक था, ना सरकारों के बर्खास्तगी पर कुछ बोली l संसद में ना बोलने देने की दुहाई देने वाले विपक्षी नेता संविधान पर कम बोले, बोले तो खूब बोले सिर्फ राजनीति पर बोले l  प्रियंका और अखिलेश अपनी पारिवारिक राजनीति पृष्ठभूमि के कारण ये अवसर पाएl  प्रियंका का डंका भी आज बहुत बजा, जितनी उनकी राजनीति का डंका बजा, उतना ही राहुल की नेतृत्व क्षमता पर शंका हुआ l यदि स्थिति ऐसी ही रही तो निकट भविष्य में प्रियंका की स्वीकार्यता कांग्रेस में बढ़ेगी ,और भाजपा को उन्हीं की चुनौतियां का सामना करना होगा l कथ्य में यदि तथ्य न हो तो वों सत्य से परे हो जाता है ,और बिना सत्य के प्रभाव पैदा नहीं हो सकता, और ना ही बिना प्रभाव के राजनीति होती है l बारी संविधान पर बोलने की थी और आप दिशाहीन हो मुद्दे दर मुद्दे भटकते रहे, वैकल्पिक राजनीति के केंद्र बिंदु बनने में यही दिशाहीनता रुकावट बनेगी यदि जननेता बनना है तो ------ कथ्य में तथ्य और सत्य दोनों चाहिए

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

 

 






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