भागवत कथा कहने सुनने के अपने नियम हैं, हिंदुओं के लिए भागवत कथा मोक्षदायिनी, मधुकर है,पर इस बार ना हिंदुओं के लिए और ना ही कथा ,भागवत की मोक्षदायिनी है ,धर्मो रक्षति रक्षितः सूत्र वाक्य की जगह कायरता सिखाई जा रही है, कानून न्याय दिलाने के लिए बने हैं या अन्याय सहने के लिए, सौहार्द कैसे एकतरफा दुर्भावनाओं के साथ कायम रह सकता है, पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय सहा क्या यही अन्याय सहने के लिए आने वाली पीढियों को मजबूर कर दें? क्या यही पुरुषार्थ है? क्या यही सनातन की शिक्षा है? जो मन को न मोहे,ऐसी वाणी बोलने वाला कैसा मोहन? जो बीमारी का मूल ना जाने वों कैसा चिकित्सक,जो कौम अपने धर्म की रक्षा नहीं कर सकता, जो अपनी संस्कृति नहीं बचा सकता, जो अपने विरासत से विमुख हो जाए, जो समझौते पर समझौते सिर्फ जिंदगी के लिए करें,उस कौम की जिंदगी की क्या महत्ता? भ्रमित मानसिकता भारतीय संस्कृति और सनातन के पराभाव का सबसे बड़ा कारण रहा है,आम सनातनी तो सनातनी ही रहना चाहता था ,है और भविष्य में भी सनातनी ही रहना चाहेगा, पर बहुत से सनातनियों ने जजिया की मजबूरी में ,लालच में तलवार के दम पर सलवार पहन लिया जैसे-जैसे जनसंख्या की डेमोग्राफी बदली वैसे-वैसे देश बटता गया, भू-भाग अलग होकर अलग देश बन गए । अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के अस्तित्व का कारण यही है,आज के भारत के कई हिस्सों में स्थिति ऐसी ही है, जहां जनसंख्या भारी वंहा वों किसी के नही आभारी, सारे संवेदनशील इलाकों की विशेषता एक ही है और उसका मकसद भी एक ही है, क्यों काहे और किस लिए गजवा ए हिंद, कभी किसी हिंदू ने ऐसी भावना प्रकट की क्या? भारत के नेताओं की क्षुद्रता है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाए ,पर भारत के नेताओं की शांति प्रियता और देश को बांटने की कला ने कभी उन्हें इस पुरस्कार तक नहीं पहुंचाया, शांति दूत महात्मा गांधी भी नहीं नवाजे गए नोबेल शांति पुरस्कार से,हम अपनी तथाकथित उपलब्धियों पर इतराते हैं ,विश्व हमारे इन तथा कथित उपलब्धियों को मानने से कतराता है, गंगा जमुनी,तहजीब की दुहाई सदियों से हम दे रहे, पर हम साथ नहीं रह पाए 1947 में हम बट गए अब बटने वालों को कोई क्यों नोबेल शांति पुरस्कार बांटे।
अहिंसा से मिली आजादी हम कहते हैं,लाखों लाशें ट्रेनों से आई,हत्या,अपहरण, बलात्कार सब उसी अहिंसक आंदोलन के हिस्से थे ,जिसमें डायरेक्ट एक्शन डे भी था,रक्त पिपासा थी ,समाज में अलगाव था, तभी तो देश बटा ,फिर वही जयचंदी, हरकतें बिना परिस्थिति को समझें अपनी स्थिति मजबूत करने का कुत्सित प्रयास ,अपने इतिहास से ना समझ पाए तों लेबनान और स्पेन के इतिहास से समझ ले, बामियान की बुद्ध मूर्ति अभी -अभी तोड़ी गई, सदियों से एक ही नारा ,एक ही उद्देश्य, क्या गाजी काफिर का शाब्दिक अर्थ सबको नहीं पता होना चाहिए? बिगड़ैल बच्चे को सजा देने की जगह मजा देंगे,तो एक दिन वों पूरे समाज को (विश्व) को सजा देगा,यही आज पूरा विश्व भुगत रहा, सही को सही और गलत को गलत ना कहने की गफलत में आफत से घिरा पड़ा,एक ही धार्मिक नारे के साथ बम फोड़े जा रहे, आतंकी घटनाएं हो रही, फिर भी आतंक का कोई मजहब नहीं। सभ्य मानव से बड़ा शुतुरमुर्ग तो शुतुरमुर्ग भी नहीं होगा ,सत्य कहने का साहस खों चुका समाज, आवाज उसकी कोई क्यों सुनें ,जिसकी लाठी उसकी भैंस,ऐसी स्थिति में कौन सी सभ्यता कौन सा विकास? और कैसी विधि और कैसा उसका विधान? प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् क्या कोई मान रहा,प्रमाण रोज क्षण- क्षण नकारे जा रहे, सत्य को असत्य बताने की धृष्टता हो रही, धूर्तता पे धूर्तता हो रही पत्थर मारने वाले तुरंत 5 लाख पा रहे 1947 से अब तक मारे गए 219 हिंदू संभल में अपने भाग्य पर रो रहे ,सदी बीतने आई न्याय नहीं मिला,जन्म स्थान हमारे आराध्यों के बेजा कब्जे में है जज्बे हमारे मौन रहे ऐसा आपका कहना है, कितना सौहार्द कितना भाईचारा है, इसी के लिए तो देश बटा, मंदिरों में कूड़े भर दिए गए,आप कह रहे कि हम कूढे बैठे रहे, न्याय मांगगे तो सौहार्द बिगड़ेगा ,विश्व का ऐसा कौन सा कोना है जहां न्याय मांगने पर सौहार्द बिगड़ता है? जिनके हाथों में रही कमान हमारी उन्होंने ही हमारा मान घटाया है,अंग -भंग करके भी भाव भंगिमा न बदलने की हिदायत भी हमी को है, राजनीतिज्ञों ने देश का विभाजन धर्मं के नाम पर कराया, विश्व के कई देशों में वाम पंथियों ने मस्जिद तोड़ चर्च बनवाएं फिर हमें कैसा धर्म सिखा रहे,राजा की गलती अक्षम्य है ,क्योकि उस गलती की सजा पूरा समाज और देश भोगता है ,धर्म की व्याख्या तो धर्माचार्य ही करेंगे, धर्म की रक्षा हर धार्मिक व्यक्ति करेगा,हिंदू अस्मिता जाग उठी है ,आप भी जाग जाइए, धर्म पथ पर चलिए ,धर्मोक्ति ही चलेगी आपकी गर्वोक्ति नहीं
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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