जब सभ्यताओ का संघर्ष हो तो समाज धीरे -धीरे करवट बदलता है और ये बदलाव अवश्यंभावी हो जाते है । देश की वर्तमान परिस्थिति में भी ऐसा ही हो रहा है, वैचारिक फसलें बहुत धीरे -धीरे उगती है, सामजिक बदलाव भी धीरे -धीरे होता है, जब ये आती है तो इनकी आहट बहुत दूर तक सुनाई देती है, मुखर और प्रखर होती है सामजिक और राजनीतिक दशा और दिशाए बदलती है ,भारतीय सभ्यता में भी ये संघर्ष सदियों से चला आ रहा है ,बरस दर बरस कई वर्षो की गुलामी हमने झेली, विदेशी आक्रांताओं ने आकर हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल तोड़े ,शिक्षा केन्द्रों का विध्वंस किया ,धर्मांतरण हुए सामाजिक और राजनितिक परिवेश बदला और इन बदलावों ने देश का भूगोल बदल दिया, देश का धर्म के नाम पर बटवारा हों गया ,भारतीय समाज जीवित समाज है, इसमें निरंतरता है, सारे झंझावातों में भी हमने अपने अस्तित्व को बचाये रखा ,संघर्ष का ये दौर अस्तित्व के स्थायित्व की लड़ाई आज भी जारी है । प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती देर से ही सही समय उसका आंकलन कर ही लेता है, राजीव गाँधी की सरकार प्रचंड बहुमत की सरकार थी, उंगलियों में गिना जा सकने वाला विपक्ष था, संसद में नगण्य फिर भी विपक्ष ने बोफोर्स का मुद्दा उठाया जनता ने स्वीकार किया, राजीव सरकार अगला चुनाव हार गई ,वर्तमान लोकसभा में विपक्ष की संख्या 240 है फिर भी वों 293 सदस्यों वाली सरकार कों घेर नही पा रही , क्योकि जनता विपक्ष के मुद्दों को स्वीकार नही कर रही ,लोकसभा के बाद हुए विधानसभाओं के नतीजें यही बता रहे, विपक्ष जनता से कटा हुआ है, अपनी ही बातों पर अड़ा हुआ है, आत्ममुग्धता की प्रवृत्ति आत्म आंकलन करने नही दे रही ,इतिहास की गलतियों से भी कुछ सिख नही रहे, मै ,मेरा ,सत्ता मेरे परिवार की से उपर की, ना कोई सोंच है, ना कार्य योजना ,मुद्दे सारे असरहीन ,स्तरहींन अपने ही कलई खोलने वाले ,राजनीति अब अंतिम संस्कारो पर भी होने लगी।
प्रथम राष्टपति स्व.डॉ राजेन्द्र प्रसाद ,सरदार पटेल के अंतिम संस्कारो में नेहरु सरकार ने क्या किया था, यदि दिवंगत प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह इस देश में आर्थिक उदारीकरण के चेहरे थे तों पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव उसके प्रणेता, उनके साथ क्या हुआ था ? देश के समाधि स्थल {राजघाट} में अम्बेडकर की समाधि क्यों नही ? इस देश के स्वाधीनता से पुनर्निर्माण तक अपना योगदान देने वाले विभूतियों को कोई स्थान नही मिला पर संजय गाँधी की समाधि वंहा है क्यों ? प्रतिभा ,योगदान ,लोकप्रियता यदि मापदंड है तों ऐसा नही होना था ,मोदी सरकार स्व.मनमोहनसिंह का समाधि स्थल बनवाने तैयार है ,फिर भी राजनीति ,कांग्रेस स्व. प्रणब मुखर्जी, स्व.सीताराम केसरी के साथ किए गए अपमान कों भूल गई होगी ,पर जनता नहीं भूली है, सरकार किसी की हों किसी भी राजनितिक विचारधारा की हो ,वों देश की सरकार होती है, और देश अपने सपूतों का अपमान नही भूलता है, ना ऐसे विभूतियों के अपमान की सोंच होनी चाहिए, जंहा अंतिम संस्कार में भी योगदान से उपर वफादारी रखी जाए, तथ्यहीन राजनीति की जाए तो कमतर करके आंक रहे है, उस विभूति को, उसके योगदान को कांग्रेस डॉ.मनमोहनसिंह के साथ यही कर रही है।
भारतीय राजनीति में अस्मिता सबसे बड़ा मुद्दा हों गया है, एकतरफा प्रेम ने दुसरे पक्ष कों प्रतिक्रिया के लिए मजबूर कर दिया है, प्रतिक्रिया कुंभ से आ रही, अखाड़ा परिषद ने प्रयागराज कुंभ में मुसलमानों कों दुकान आबंटित करने से मना कर दिया है,वक्फ बोर्ड की कारगुजारियो की गूंज भी सुनाई दे रही है, क्रिया की प्रतिक्रिया हों रही है ,संत समाज हिंदुओ की भावनाओं कों समझ रहा करवट बदल रहा, जन्मभूमि विवाद में मंदिर की जगह अस्पताल बनवाने कहने वालें, मंदिर से रोजगार नही मिलता का तर्क देने वाले, आज कुंभ में दुकान चाह रहे, समोसा बेचने को तडफ रहे क्यों ? जिन धार्मिक अनुष्ठानों में आपकी आस्था नही उसमे अर्थ कमाने इतना क्यों छटपटा रहे ? जब भोजन में अखाद्य { थूक,पेशाब} मिलाने का दौर चल रहा था ,तों सब मौन थे, ऐसे इतिहास में फिर कोई कैसे आपकों मौका दे ? कल्पवास में, कुंभ के विशुद्ध धार्मिक आयोजन में विशुद्धता फ़ैलाने का कोई कैसे रिस्क ले ? अपनी करनी तों भोगनी पड़ेगी, सोमनाथ से संभल तक एक ही सच हर धार्मिक स्थल की विध्वंसता के सैकड़ो प्रमाण फिर भी हिंदुओ के लिए नही कोई सम्मान, यदि समरसता है सहिष्णुता की समझ है तों ईदगाह मस्जिद मथुरा के सीढ़ियों के नीचें भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति क्यों दबी हुई है? सर्वे करवा लेते ,मस्जिद ना सही, मूर्ति निकालकर ही दे देते ,विध्वंस तों कुछ दिनों चला होगा पर अपमान सदियों से चला आ रहा है ,जिसके प्रमाण बाबरनामा से लेकर औरंगजेब के फरमान है, फिर भी आप मौन है ?आपको हर चीज हलाल चाहिए तों फिर दुसरे के सात्विक भोजन पर क्यों नजर है ,दुसरे के धार्मिक आयोजन से कोई धार्मिक जुड़ाव नही तों फिर उन धार्मिक पैसों से लगाव क्यों है? नफरते दिल में है तों दिमाग से सहिष्णु मत बनिए ,दिखावा दिख जाता है धर्मपरायण है तों ---------------------------हर धर्म का सम्मान करिए....
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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