भारत देश की अमूल्य धरोहर रामायण और महाभारत जिनमें जीवन जीने की शैली निहित है..

भारत देश की अमूल्य धरोहर रामायण और महाभारत जिनमें जीवन जीने की शैली निहित है..

रामायण और महाभारत, हमारे देश भारत की वो आत्मा हैं, जिन्हें समझे बिना कोई भी व्यक्ति इस देश के बारे में नहीं जान सकता. रामायण हमें न केवल एक आदर्श परिवार के बारे में बताती है बल्कि जीवन जीने का सही ढंग भी बताती है।

रामायण में लगभग हर पात्र किसी न किसी देवता या शक्ति का अवतार था, और वे भगवान राम के सहयोग हेतु या विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पृथ्वी पर आए थे. इसमें भगवान राम के तीनों भाई और उनकी पत्नियाँ भी शामिल हैं. यह एक अलग बात है कि लोग उनके बारे में कम जानते हैं, तो आइए जानते हैं उनके बारे में.

शत्रुघ्न की पत्नी

शत्रुघ्न भगवान राम के सबसे छोटे भाई थे. रामायण में उनका ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है. संभवत इसी वजह से उनकी पत्नी के बारे में भी लोग काफी कम जानते हैं. उनकी पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति था, जो माता लक्ष्मी के एक अंश का अवतार मानी जाती हैं. रामायण समेत ग्रंथों में यह वर्णित है कि भगवान विष्णु के अवतार के साथ उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी के विभिन्न रूप भी पृथ्वी पर अवतरित हुए. जिनमें से एक श्रुतकीर्ति भी थीं।

वे राजा जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री थीं. उन्हें शांति, सहनशीलता और आदर्श पत्नी धर्म की प्रतीक मानी जाती हैं. मान्यता है कि उनके अवतार का मुख्य उद्देश्य शत्रुघ्न की पारिवारिक और धार्मिक कार्यों की जिम्मेदारियों में सहायता करने के लिए हुआ था. इसके साथ उन्हें आदर्श गृहस्थ जीवन जीने और पवित्रता व शांति का संदेश भी देना था. 

लक्ष्मण की पत्नी

लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला था. उन्हें भी मां लक्ष्मी के एक अंश का अवतार माना जाता है. जब लक्षमण बड़े भाई भगवान राम और भाभी सीता के साथ 14 वर्षों के वनवास पर गए तो उनकी अनुपस्थिति में उर्मिला ने अयोध्या में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन किया था. कहते हैं कि उर्मिला ने ही लक्षमण को बड़े भाई के साथ वनवास जाने के लिए प्रेरित किया था. लक्ष्मण के वनवास जाने के बाद उर्मिला ने 14 वर्ष सोकर बिताए, जिससे लक्ष्मण जागकर वनवास के दौरान अपने प्रिय भाई राम और भाभी सीता की रक्षा कर सकें

भरत की पत्नी

भरत की पत्नी का नाम मांडवी था. उन्हें मां लक्ष्मी के एक अंश का अवतार माना जाता है. उन्हें देवी लक्ष्मी के "धैर्य और संतुलन" का प्रतीक कहा जाता है. बड़े भाई राम के वन जाने पर जब भरत ने तपस्वी का रूप धारण कर लिया और अयोध्या का शासन राम के चरणपादुका के प्रतीक रूप में चलाया तो मांडवी ने प्रत्येक कदम पर उनका साथ दिया. ऐसा करके उन्हें पतिव्रता धर्म और धर्मपरायणता का श्रेष्ठ उदाहरण स्थापित किया, जो आज भी एक मिसाल है।






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