महिला नागा साध्वी के शाही स्नान का क्या महत्व है.

महिला नागा साध्वी के शाही स्नान का क्या महत्व है.

इस महाकुंभ में कुल 6 शाही स्नान होंगे. हम अक्सर नागा साधुओं के शाही स्नान के बारे में सुनते हैं, लेकिन लोगों के मन में ये जिज्ञासा रहती है कि क्या पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साध्वियां भी शाही स्नान करती हैं. आइए जानते हैं।

प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है. ये दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सव माना जाता है. इस उत्सव में करोड़ों श्रद्धालुओं और साधु-संतों का जमावड़ा लगेगा, जोकि पवित्र नदियों में आस्था की डुबकियां लगाएंगे. इस महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण भस्म लपेटे नागा साधु होंगे.

कुल 6 शाही स्नान

इस महाकुंभ में कुल 6 शाही स्नान होंगे. हम अक्सर नागा साधुओं के शाही स्नान के बारे में सुनते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ में महिला नागा साधु भी हिस्सा लेती हैं. इस दौरान वो पूरी परंपरा से शाही स्नान भी करती हैं. आइए आपको बताते हैं नागा साध्वियों के शाही स्नान की पूरी कहानी.

महिला नागा साध्वीयों का शाही स्नान

महिला नागा साध्वियां भी पुरुष नागा साधुओं की तरह ही कठिन तप और दीक्षा के बाद नागा संप्रदाय में शामिल की जाती हैं. महाकुंभ के समय पुरुष नागा साधुओं की तरह ही महिला नागा साध्वियों का स्नान भी अखाड़ों के साथ होता है. गुरुओं की आज्ञानुसार, नागा साध्वियां भी जब स्नान करती हैं, तो नग्न अवस्था में रहती हैं. इस दौरान साध्वियों की ओर से पूरे अनुशासन और मर्यादा का पालन किया जाता है.

साध्वियों के शाही स्नान का महत्व

हिंदू धर्म शास्त्रों में महिला नागा साध्वियों के शाही स्नान का खास महत्व बताया गया है. माना जाता है कि महिला नागा साध्वियों का जो शाही स्नान है वो पवित्रता, आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम है. शाही स्नान के पहले प्रमुख अखाड़ों की महिला नागा साध्वियों की शोभायात्रा निकलती है. इस दौरान महिला नागा साध्वियों के हाथों में उनके अखाड़ों के ध्वज, त्रिशूल, हथियार और चिमटा होता है. शोभायात्रा के बाद महिला नागा साध्वियां स्नान करती हैं.

महिला नागा साध्वियों के सन्नान का धार्मिक महत्व तो बहुत है. साथ ही ये महिलाओं की आध्यात्मिक ताकत का भी एहसास कराता है. महाकुंभ में महिला नागा साध्वियों के होने से समाज को बड़ा संदेश जाता है. इससे साफ हो जाता है कि जितना पुरुष भगवान की भक्ति, साधना और त्याग कर सकते हैं, उतना ही या उससे भी अधिक महिलाएं भी भक्ति, साधना और त्याग कर सकती हैं.






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