परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद : क्या सच लिखने वाले पत्रकारों को सच लिखने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी? लोकतंत्र में ये कैसी विडम्बना है सच को अगर पत्रकार देश और समाज के बीच अपने लेख के माध्यम से सामने लाने का प्रयास करते हैं तो प्रभावशील और भ्रष्ट लोगों के द्वारा इस प्रकार अनैतिक कृत्य कर पत्रकारों को डराने और दबाने का प्रयास किया जाता है। आखिर ऐसे कृत्य करने वाले लोगों को कानून का डर क्यों नहीं? वहीं युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या से एक बार फिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ, पत्रकारों में रोष देखने को मिल रहा है और पत्रकार सड़क पर उतर आए हैं। हालांकि पुलिस प्रशासन त्वरित जांच में जुट गई है और संदेही की तलाश जारी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस पत्रकार की हत्या में अपराधियों को सजा दिलाने और पिड़ित परिवार को न्याय दिलाने में सरकार और प्रशासन कितना सफल हो पायेगा यह आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा।
अगर हम पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ के पत्रकारों की हत्याकांड की बात करें तो 19 दिसंबर 2010 को बिलासपुर के सरकंडा इलाके में युवा पत्रकार शुशील पाठक की सड़क पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। जिस पर पत्रकारों में काफी रोष देखने को मिला था और स्थानीय पुलिस के बाद इस घटना की जांच सीबीआई जांच एजेंसी ने भी की थी लेकिन अभी तक उनके हत्यारे को सरकार,प्रशासन और न्यायपालिका सजा दिला पाने में असफल रही है।वहीं अगर गरियाबंद जिले के छुरा नगर के युवा पत्रकार उमेश राजपूत की हत्या 23 जनवरी 2011 को उसके निवास पर दिनदहाड़े रिहायशी इलाके में गोली मारकर कर दी गई थी । इस हत्याकांड की जांच स्थानीय पुलिस के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर देश के सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई ने भी की लेकिन यह मामला भी आज 2025 तक पुरा नही हो पाया है और इसके हत्यारे को भी सरकार, प्रशासन और न्यायपालिका सजा दिलाने में अभी तक असफल है और मामला अभी भी सीबीआई न्यायालय में लंबित है।
स्व पत्रकार उमेश राजपूत
वहीं एक बार फिर बासागुड़ा, बीजापुर के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर जो 1 जनवरी से गुम थे जिसकी लाश 3 जनवरी को सैप्टिक टैंक में पुलिस ने लाश बरामद की है वहीं जिस ठेकेदार की जमीन पर बने सैप्टिक टैंक में शव मिला था उसे ही संदिग्ध आरोपी मानते हुए पुलिस पता तलाश में जुटी हुई है। वहीं पत्रकार संगठन इस घटना को लेकर सड़क पर उतर आए हैं और अपराधियों के ऊपर त्वरित और कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री का बयान आया है कि इस घटना को लेकर त्वरित और सख्त कार्यवाही का निर्देश दिया गया है।
वहीं हम पिछले 2010 और 2011 में हुए पत्रकार शुशील पाठक और पत्रकार उमेश राजपूत हत्याकांड की बात करें तो उस समय भी छत्तीसगढ़ प्रदेश में बीजेपी की सरकार रही है और उस समय प्रदेश के मुखिया का इसी प्रकार बयान आया था लेकिन अपराधियों पर कार्यवाही और पिड़ित परिवार को न्याय के नाम पर अभी तक न्याय के नाम पर पिड़ित परिवार अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं और आज भी न्याय की आस में इंतजार में हैं। और फिर एक बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और प्रदेश के मुखिया फिर वही वक्तव्य जारी किए हैं। क्या इस बार पिड़ित परिवार और पत्रकार मुकेश चंद्राकर को न्याय मिल पायेगा या फिर प्रभावशील लोगों के नाम सामने आने पर न्याय घुटने टेक देगा। या फिर शुशील पाठक और पत्रकार उमेश राजपूत हत्याकांड जैसे जांच की लेट लतीफी के बाद सबुत और गवाहों के अभाव में ये परिवार को भी 14-15 साल न्याय पाने के लिए इंतजार करना पड़ेगा। बहरहाल इस सुशासन के बीच त्वरित न्याय मिल पायेगा या नहीं ये तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा।
स्व पत्रकार शुशील पाठक
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