इतिहास के अनुसार कश्मीर की मूल आबादी इस्लाम के आगमन से पहले मुख्य रूप से हिंदू थी. बौद्ध धर्म भी कश्मीर में एक समय काफी प्रभावशाली था. तो ये बहुसंख्यक आबादी कैसे मुस्लिम बन गई. हालांकि यहां के बहुत से मुस्लिम अब भी अपने सरनेम के साथ पंडित सरनेम लगाते हैं. ये बड़ा सवाल है कि कश्मीर के मुस्लिम अपने नाम के साथ पंडित क्यों लगाते हैं.
मोहम्मद देन फ़ौक़ अपनी मशहूर क़िताब “कश्मीर क़ौम का इतिहास” में पंडित शेख नाम के चैप्टर में लिखते हैं, “कश्मीर में इस्लाम आने से पहले सब हिन्दू ही हिन्दू थे. इनमें हिन्दू ब्राह्मण भी थे. इसके साथ ही दूसरी जाति के भी लोग थे. लेकिन ब्राह्मणों में एक फ़िरक़ा ऐसा भी था जिनका पेशा पुराने ज़माने से पढ़ना और पढ़ाना था.” इन लोगों को पंडित कहा जाता था.
कश्मीर की मूल आबादी सैकड़ों साल पहले कैसे केवल हिंदुओं की थी. फिर मुस्लिम में बदल गई, ये हम आगे बताएंगे. पहले ये जानते हैं कि वहां के बहुत मुस्लिम अब भी अपने सरनेम में पंडित क्यों लिखते हैं।
इस्लाम के एक फिरके ने पंडित टाइटल लगाना कायम रखा है
किताब में लिखा गया है, ”इस्लाम क़बूल करने के बाद इस फ़िरक़े ने पंडित टाइटल को शान के साथ कायम रखा. इसलिए ये फ़िरक़ा मुस्लिम होने के बावजूद अब तक पंडित कहलाता रहा है. इसलिए मुसलमानों का पंडित फ़िरक़ा शेख भी कहलाता है. सम्मान के तौर इन्हें ख़्वाजा भी कहते हैं. मुसलमान पंडितों की ज़्यादा आबादी ग्रामीण इलाक़ों में है.”
ये यहां मूल पंडित जनजाति से भी ताल्लुक रखते हैं
कश्मीर में मुसलमान पंडितों की आबादी क़रीब 50,000 होगी. ये वो मुसलमान हैं जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था. जो मुसलमान पंडित हैं ये कश्मीर के मूल निवासी हैं. ये बाहरी नहीं है. किताब कहती है कि असली कश्मीरी तो ये पंडित ही हैं. कश्मीर की कई मुस्लिम ट्राइब्स भी इस तरह की है.
बट, भट, लोन और गनी लिखने वाले भी कभी हिंदू पंडित थे
इसी तरह कई मुसलमान टाइटल के तौर पर भट या बट लिखते हैं. इसके पीछे भी कहानी है. ये वो लोग हैं जिन्होंने काफी पहले धर्म बदला और हिंदू से मुस्लिम बन गई. पंडित भी बट लिखते हैं. जिन मुसलमानों ने अपने साथ पंडित लगा रखा है वे इस्लाम क़बूल करने से पहले सब से ऊंचा वर्ग था. ये ब्राह्मणों में भी सबसे बड़ा वर्ग था.
क्या थी कश्मीर की असल नस्ल
इतिहास और शोधपरक किताबें कहती हैं कि कश्मीर में असल नस्ल पंडित नहीं थी बल्कि जैन थे और बाद में बौद्ध थे. फिर वहां पंडितों का यहां राज हो गया. फिर ये भी हुआ कि जो पंडित मुस्लिम बन गए, जब उन्होंने अपने नाम के साथ टाइटल के तौर पर पंडित को जोड़ा तो इस पर ना तो हिंदू पंडितों को कोई आपत्ति थी और ना ही मुसलमानों को. इस तरह कश्मीर मुस्लिमों में पंडित लिखने वाला एक समुदाय शामिल हो गया.
क्या है कश्मीर पंडितों का इतिहास
अब जानते हैं कश्मीर में क्या है कश्मीरी पंडितों का इतिहास. कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी ब्राह्मणों के तौर पर जाना जाता था, जो कश्मीरी हिंदुओं का एक ग्रुप था, मुख्य तौर पर सारस्वत ब्राह्मण थे. मुख्य तौर पर ये कश्मीर घाटी के पांचा गौडा ब्राह्मण से ताल्लुक रखते थे. मध्य काल में इस्लाम आने के बाद इन्हीं लोगों ने जमकर धर्म भी बदला.
वैसे तीसरी सदी में यहां के हिंदुओं ने बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्म भी स्वीकार किया. आठवीं सदी के आसपास कश्मीर में तुर्किक और अरब हमले बढ़ गए लेकिन उन्होंने पर्वतों से घिरी कश्मीर वैली को अनदेखा किया. क्योंकि वहां जाना उन्हें थोड़ा मुश्किल लगा. लेकिन 14वीं सदी तक कश्मीर घाटी में भी मुस्लिम शासन स्थापित हो गया. इसकी कई वजहें थीं, जिसमें बार बार हमले, भीतरघात आदि शामिल थे. शासक भी कमजोर थे. खुद ब्राह्मण लोहारा हिंदू राजवंश से खुश नहीं थे. पहले वो टैक्स के दायरे में नहीं थे लेकिन लोहारा वंश के आखिरी राजा सुखदेव ने उन पर टैक्स लगा दिया था.
14वीं सदी में सुल्तान सिकंदर बुतसिकान ने बड़े पैमाने पर लोगों को भागने पर मजबूर कर दिया. वो सब देश के दूसरे हिस्सों में चले गए. कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया. लेकिन बुताशिकन का उत्तराधिकारी हिंदुओं को लेकर उदार था. पंडितों के बगैर कश्मीर की संस्कृति के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. वो वहां की विशिष्ट संस्कृति के वाहक हैं
मलमासी पंडित – वो पंडित जो मुस्लिम राजाओं के सामने झुके नहीं बल्कि डटे रहे.
बुहिर कश्मीरी पंडित – ये वो कश्मीर पंडित हैं जो व्यापार करते हैं.
मुस्लिम कश्मीरी पंडित – ये वो कश्मीरी पंडित हैं जो पहले हिंदू थे लेकिन फिर मुस्लिम बन गए लेकिन पंडित सरनेम अब भी लगाते हैं. ये लोग भट, बट, धर, दार, लोन, मंटू, मिंटू, गनी, तांत्रे, मट्टू, पंडित, राजगुरु, राठेर, राजदान, मगरे, याटू,वानी जैसे जातिनाम अपने नाम के साथ जोड़ते हैं.
. प्राचीन काल में कश्मीर
– कश्मीर वैदिक काल में हिंदू धर्म का केंद्र था.
– नीलमत पुराण और राजतरंगिणी जैसे प्राचीन ग्रंथों में कश्मीर के हिंदू शासकों और धार्मिक परंपराओं का वर्णन मिलता है.
– कश्मीर में शिव पूजा (विशेषकर शैव परंपरा) और वैष्णव परंपराओं का प्रभाव था. कश्मीरी शैव दर्शन भारत में दार्शनिक विचारों का एक प्रमुख केंद्र रहा है.
2. बौद्ध धर्म का उदय
– अशोक के शासनकाल (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में बौद्ध धर्म ने कश्मीर में अपना प्रभाव स्थापित किया.
– कश्मीर बौद्ध विद्वानों और विश्वविद्यालयों का केंद्र बन गया. यहां से बौद्ध धर्म को एशिया के अन्य हिस्सों में फैलाया गया.
3. इस्लाम कैसे यहां आया
– 13वीं शताब्दी के बाद इस्लाम ने कश्मीर में प्रवेश किया
– सैय्यद और सूफी संतों, विशेष रूप से मीर सैय्यद अली हमदानी जैसे व्यक्तित्वों, ने इस्लाम के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
– धीरे-धीरे, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के कारण बड़ी संख्या में लोग इस्लाम धर्म को अपनाने लगे.
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