मुखिया के मुखारी –  कलम के उजड़े आशियाने के लिए, कलम के लिए

मुखिया के मुखारी –  कलम के उजड़े आशियाने के लिए, कलम के लिए

बस्तर एक समस्याएं अनेक, दूरस्थ आदिवासी वनाच्छादित, खनिज एव अयस्कों का भंडार, जंहा वनोपजों एवं  प्राकृतिक छटाओं की छटा निराली है ,संसाधनों की भरमार फिर भी दुःख है अपार ,आदिवासी समाज धीरे -धीरे विकास की मुख्यधारा से जुड़ रहा,बस्तर धीरे -धीरे  ही सही विकसित हों रहा पर, बस्तर से कठिनाई दूर नही हों रही ,संसाधनों पर अधिकार की रोज नई लड़ाई शुरू हों रही,सामाजिक संघर्ष से उबर, बस्तर ने नक्सलवाद का नासूर झेला, अशांति का लम्बा दौर देखा ,विकास की राह में भर्ष्टाचार सबसे बड़ा रोड़ा है। बस्तर के हितों के लिए सशक्त आवाज का होना जरुरी है, कभी राजनीतिक कारणों से तों कभी आर्थिक कारणों से ,बस्तर की ये आवाजें दबा दी जाती है ,इस बार कलमकार बीजापुर का पत्रकार भर्ष्टाचार की भेट चढ़ गया,बस्तर में ठेकेदारों के भर्ष्टाचार की लम्बी कहानी है ,उनके काली कमाई के काले कारनामे है ,एक किलों नमक के बदले ,कई किलों चार चिरौजी जैसे बहुमूल्य वनोपजों कों ले लेने की कुप्रथा आज भी जारी है। बिना सामाजिक दायित्व के संसाधनों का दोहन हों रहा,असमानता से उपजे असंतोष ने नक्सल समस्या पैदा की, पर कुछ लोग इस आपदा में भी अवसर ढूंढ रहे ,संवेदनशील नक्सल क्षेत्र में भर्ष्टाचार की नई -नई कहानी गढ़ रहे ,बीजापुर में ठेकेदार अपनी शादी में हेलीकॉप्टर उड़ाने की हैसीयत रख रहे,सड़क निर्माण करने वाले ठेकेदार ने भर्ष्टाचार की बुलंद ईमारत बना ली,कर्णधारों को पता नही चला ,सड़क के निर्माण में हुए भर्ष्टाचार कों पत्रकार ने उजागर किया था,वों भर्ष्टाचार नंगी आँखों से दिख रहा, उसके लिए किसी विशेषज्ञता की जरूरत ही नही है,सड़क निर्माण के ठेकों के लिए फर्जी एफडीआर, अवैध उत्खनन ,कमतर गुणवत्ता की कहानी, एक नही हजारों बार सामने आई है ,पर भर्ष्टाचार में  बटती हिस्सेदारी ने कार्रवाई की जगह हमेशा प्रशासनिक एवं राजनीतिक संरक्षण दिया।

इन संरक्षणो ने भर्ष्टाचारियों के हौसले इतने बुलंद कर दिए की वों कानून को रौंद रहे,एक कुलदीपक चला गया ,परिवार का आसरा उजड़ गया ,विभत्सतम हत्या के जघन्यतम कृत्य की सिर्फ निंदा हों रही, क्या निंदा से हल निकल जाएगा  ? सरकारी तंत्र सेप्टिक हों गया, भर्ष्टाचार का संक्रमण हों गया है ,इस भर्ष्टाचार के खेल में शामिल अधिकारियों का उत्तरादायित्व क्या तय होगा ?  बिना राजनीतिक संरक्षण के तों अधिकारी और ठेकेदार भर्ष्टाचार कर नही लेंगे ?उन राजनीतिक भर्ष्टाचार प्रेमियों का क्या होगा? हर निर्माण,हर सरकारी कार्य ,भर्ष्टाचार से ग्रसित है ,जों भर्ष्टाचार पत्रकार कों दिख गया, जिसका उसने खुलासा कर दिया, वों सरकार कों नही दिखा ,किसी सरकारी विभाग ने उसका संज्ञान नही लिया, कोई कार्यवाही नही हुई ,भर्ष्टाचार को पोषित करने का पूरा सरकारी तंत्र है,पर भर्ष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने का कोई जतन नही है । ACB,EOW,GST,IT,ED क्या सिर्फ दिखावे के लिए है? या फिर नेताओं को चढ़ावा देने के बाद पूरा सरकारी तंत्र नतमस्तक हों जाता है,ये रहे मस्त चाहे हों किसी के घर का सूरज अस्त,कलमकारों कों भी सोचना होगा अपनी राजनैतिक हैसियत को समझना होगा,जो सरकार मीडिया सिटी बना सकती है शहर- शहर मुफ्त में या कम कीमत पर प्लाट ,मकान दे सकती है ,वों पत्रकारों को सुरक्षा क्यों दे पाती है? क्या लोकतंत्र के चौथेस्तंभ की यही नियति है ? प्रताड़ना का दौर सबने देखा घर प्लाट से बड़ी सुरक्षा है  ,कहा है वों पत्रकार सुरक्षा अधिनियम  ? गाल बजाए जा रहे, पत्रकार असमय काल कल्वित हों रहे, सत्य की अकाल मौत हों गई, मरा मुकेश नही मरी एक विचारधारा है,जज्बा है।

ऐसे में कैसे कोई सच खोजे ,क्यों कोई भर्ष्टाचार की बलि चढ़े ? क्या कोई पत्रकार बकरा है? बकरे की बलि दे रहे,क्यों मुकेश के साथ ऐसा हुआ ? क्या कोई इसका जवाब देगा ?सत्ता किसी भी राजनीतिक दल की हों ,उसका चाल चरित्र क्यों एक सा होता है ? क्यों भर्ष्टाचारी अपने और ईमानदार बेगाने होते है? मुकेश की हत्या से ज्यादा बड़ी चीज ये हों गई है, की हत्यारे का किस राजनीतिक पार्टी से सम्ब्धत्ता है,आरोंप प्रत्यारोप का दौर चल रहा ,पुराने कागज ,पुरानी तस्वीर खंगाले जा रहे,किसने उसको और कब उसने किसको हार पहनाई, ये बताने की होड़ में ओट ले रहे ,मूल कारण से मुकेश मारा गया जीवन से हार गया ,हार चढ़ गई उसकी तस्वीर पे ,परिवार अपनी सुख शांति सब हार गया ।  फिर भी इन्हें सुख दुःख से कोई वास्ता नही है,खालिस राजनीति हों रही ,तेल मालिश हों रही ,प्रतिभा के बदले अपनों -अपनों कों बिठाने की कला है,इस कला में सिर्फ कलाकारी हों रही,अधिकारी दूध से मलाई बना रहे ,नेता मलाई से घी बना घी पीकर सत्ता की चादर ओढ़ सों रहे, नेता जनसेवा की जगह स्वसेवा, सरकारी तिजोरी की जगह ,अपनी तिजोरी भर रहे ,दंडित ना कभी कोई अधिकारी हुआ,ना दंड कभी किसी ठेकेदार को मिला ,नेता तों इस विधान से परे है, वही तों भाग्यविधाता है ,भाग फूटते है मुकेश जैसों के, कहने को तों कलमकार है ,अपना ही सर कलम करवा रहे, भाग्यविधाताओं के प्रदेश में चली पत्रकारों के लिए नई बयार है ,छत्तीसगढ़ सरकार बताओं पत्रकार के छत्तीस टुकड़े क्यों और कैसे हुए ?ये हिम्मत हत्यारे को कहा से आई?  कानून था तों भर्ष्टाचार कैसे हुआ ?संवेदना हों तों बताओं चिता की जगह मुकेश को सेप्टिक टैंक क्यों मिला? सरकार की नियत बंद हों गई थी उस सेप्टिक टैंक में,  चिता जल गई मुकेश की, चिंता करिए आग ठंडी नही हुई है, बीज ईमानदारी का बोया तों बीजापुर में गया था ,पर विशाल वट वृक्ष  पुरे प्रदेश को ढकेगा मुकेश के दर्द भरे नगमें सुनते आए है, सुनते रहेंगे, पर दशा आपकी राजनीति की जरुर बदलेंगे ,लोकतंत्र के चौथेस्तंभ के प्रहरियों हजारों की तनख्वाह में करोड़ों के घर बनाने वालों जागों लड़ो उठों -----------------------------कलम के उजड़े आशियाने के लिए, कलम के लिए

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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