कम लागत में अधिक प्रॉफिट ,जो कर दे आपको मालामाल, आइए जानते है ऐसे ही फसल के बारे में ..

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मेहसाणा: जिले के अखाज गांव के अमरूद देशभर में मशहूर हैं. यहां के किसान अपनी मेहनत और तकनीक से अमरूद की खेती में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं. इन किसानों में 65 वर्षीय पुरूषोत्तमभाई मगनदास पटेल का नाम खासतौर पर लिया जाता है. वे मात्र 5,000 रुपये की वार्षिक लागत पर प्रति बीघा 70,000 रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं.

वर्षों का अनुभव और कम लागत में बड़ी आय

पुरूषोत्तमभाई पिछले कई वर्षों से अमरूद, नींबू और सीताफल की खेती कर रहे हैं. साथ ही, वे “गोड्डिया” और “लखनऊ 49” जैसी देशी अमरूद किस्मों का उत्पादन और धारू बनाकर बेचते हैं. उनका कहना है कि 1978 से अमरूद की खेती कर रहे हैं और उन्होंने सीखा है कि अमरूद के तनों की देखभाल करना बहुत जरूरी है. वे हर दिन पेड़ों की परिक्रमा करते हैं और किसी भी बीमारी या कीट का तुरंत उपचार करते हैं.

प्राकृतिक विधियों से बेहतर खेती

पुरूषोत्तमभाई के अनुसार, अमरूद के तनों को मजबूत और चिकना बनाए रखने के लिए बाहरी दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती. वे गीली मिट्टी और मिट्टी के तेल का उपयोग करते हैं, जिससे पेड़ सालों तक स्वस्थ रहते हैं. रखरखाव का वार्षिक खर्च मात्र 1,000 रुपये है

केंचुआ खाद से बढ़ा उत्पादन

अमरूद की खेती में पुरूषोत्तमभाई जैविक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. वे सवा दो बीघा में 10 बैग केंचुआ खाद का उपयोग करते हैं. साथ ही, डाइकोकोडर्मा और माइकोराइजा पाउडर को द्रवीकृत कर पौधों को देते हैं. इस प्रक्रिया से ढाई बीघा में कुल 300 मन अमरूद का उत्पादन होता है.

मेहनत का फल: लाखों की कमाई

पुरूषोत्तमभाई का कहना है कि अमरूद सीजन के दौरान मजदूरी पर 4,000 रुपये खर्च होते हैं. व्यापारी सीधे खेतों में आकर अमरूद खरीदते हैं. इस तरह, उन्हें कुल 1,40,000 रुपये का उत्पादन प्राप्त होता है.

प्रेरणा देने वाली कहानी

पुरूषोत्तमभाई की यह कहानी किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. कम लागत में जैविक और टिकाऊ खेती करके उन्होंने साबित किया कि मेहनत और सही तकनीक से हर किसान सफलता की ऊंचाई छू सकता है।






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