मुखिया के मुखारी – महाकुंभ -  धरा पे अलौकिक सत्ता का अवतरण है 

मुखिया के मुखारी – महाकुंभ -  धरा पे अलौकिक सत्ता का अवतरण है 

आज पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है,आज से तीर्थराज प्रयाग में स्वतंत्र भारत के प्रथम पूर्ण महाकुंभ का आगाज हों गया, पूर्ण महाकुंभ का संयोग 144 वर्षो बाद होता है,सबके जीवनकाल  में पूर्ण महाकुंभ का पूण्य फल प्राप्त हों यह आवश्यक नही है ,जिन्हें यह पूण्य लाभ मिल रहा है वे परम भागी है  ।समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की बुँदे भारत की देव भूमि पे जिन -जिन स्थानों पर छलके वंहा -वंहा कुंभ का आयोजन होता है ,ग्रहों की गणनानुसार प्रयागराज उज्जैन ,नासिक और हरिद्वार कुंभ आयोजन स्थलीय है, सनातन की अनवरत धार्मिक परम्पराओं  के उत्कर्ष का उत्सव है कुंभ, धार्मिक और अध्यात्मिक चेतना की जागृति का प्रगटीकरण है कुंभ ,कुंभ का आयोजन अनादिकाल से हों रहा है, वेदों ,पुराणों में इसकी महत्ता बताई गई है, मोक्ष दायनी है महाकुंभ, राजशाही से लेकर लोकशाही तक अनादिकाल से लेकर आधुनिक काल तक कुंभ का आयोजन होता आ रहा, नासा की गणना गठन से भी पहले वैदिक गणना ,ग्रह राशि की दशा अंतर्दशा की गणना पर आधारित है महाकुंभ, ये सनातन धर्म की वैज्ञानिकता का प्रमाण है, धर्म ग्रंथो वेदों ,पुराणों के ज्ञान से ही आधुनिक विज्ञान ने जन्म लिया ।

सनातनी, वैज्ञानिको के विज्ञान से भी उपर है, जो वों आज खोज रहे वों वेदों में हजारों वर्ष पूर्व लिखें जा चुके है ,आत्मगौरव की कमी ने बदलते राजनीतिक और भगौलिक परिस्थियों ने सोने की चिड़िया को गुलामी की बेड़िया पहना दी, बट-बटकर कट गए, दास्तां की मजबूरियों ने आध्यात्मिकता के ओंज को कम किया , महाकुंभ पर कई विदेशी विधर्मी आक्रांताओं ने आक्रमण किये ,नागा साधूओं के शौर्य और पुरुषार्थ ने धर्म के सबसे बड़े मानवीय सम्मेलन का मान बढ़ाए रखा, त्रिवेणी संगम के तट पर गंगा जमुना के अविरल धारा पर सनातनी संस्कृति अविरल बहती रही ,गंगा जल की पवित्रता,सनातन की पवित्रता बनी रही ,चक्रवर्ती राजाओं से लेकर आज तक महाकुंभ की महत्ता हिन्दुओं के लिए सर्वोत्तम है ,मोक्ष हिन्दू धर्मं का अंतिम लक्ष्य है ,अमृत की अमरता की चाह में नही ,मोक्ष के चाह में होने वाला आयोजन । जिसमे ना सामाज जाति में बटता है ,ना भाषा क्षेत्र में, सब संगमित हों जाते है संगम में ,सनातनियों का संगम है ये, ना कोई भेद ,ना कोई विभेद, एकाकार सनातनी समाज इस अद्भुत आयोजन में भी जिनको दिव्यता नही दिखती ,ना उनकी इसमें आस्था है ,ना ही उन्हें अपने सनातनी होने का भरोसा है।

विश्व के सबसे बड़े इस धार्मिक आयोजन में विदेशी भी सुदूर देशों से आते है, अपनी आस्था से शीश नवाते है,सनातन धर्म की दिव्यता, अलौकिकता ,भव्यता का संगम है ,महाकुंभ नश्वर जीवन के पथ पर ईश्वर की महत्ता बताता है, सभ्य समाज को समागम की सीख है ,नदियों किनारे विकसित हुई मानव सभ्यता नदियों के आगे ही होती नतमस्तक है, पूर्ण महाकुंभ की पूर्णता को सत्ता भी महत्ता दे रही , शिद्दत से पूरी शुद्धता से सनातनी परम्परा को निभा रहे, भव्य दिव्य महाकुंभ का आयोजन करा रहें  । महाकुंभ के इस आयोजन से पहली बार सत्ता को आत्मिक लगाव हुआ है , क्योंकि सत्ताधीश ,मठाधीश भी है । सनातनी परंपराओं के मर्मज्ञ योगी ने इसे अपना संयोग माना, महाकुंभ के आयोजन को अपना पहला कर्तव्य माना, गौ रक्षा पीठ से निकल सत्ता का दामन पकड़ सनातन रक्षा का बीड़ा उठाया, सुकर्म फलित होते है, संस्कार पल्लवित होते है ,धर्म ही शांति का सन्देश देते है ,वसुधैव कुटुम्बकम की बात कहते है, कर्म वैसा ही करते है, ये धर्म की ध्वजा है जिसमे सामंजस्य के साथ भव्यता ही भव्यता है।

आयोजक तों बहुतरे थे, आयोजन का मंतव्य और गंतव्य भी अलग थे, पर आदित्यमान है ये आयोजन पूरा विश्व प्रकाशमान  है ,प्रयागराज महाकुंभ के विश्वस्तरीय आयोजन अब सबके लिए नया कीर्तिमान है ,फले -फुले सारे धर्म ये हिन्दुओं का विश्वास है ,साथ -साथ चलने की चाह है ,अब जिनको दिखता इसमें भी वैमनस्य है ,वों उनकी कृपणता और कृतघ्नता है, सभ्य समाज में यदि सभ्यता है तों फिर काहे की जलनता है ,धार्मिक आयोजन में व्यवस्थाएँ सरकारी तों होंगी ही, तीर्थयात्री करदात्री भी है,इस आयोजन से सरकार को भी आर्थिक लाभ होगा ,देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा ,जिनको मत की कृपा चाहिए क्या उनको प्रभु कृपा नही चाहिए  ? जड़ से अलग हों पेंड़ कैसे हरा रहेगा  ? धर्म से दूर हों कोई समाज कैसे भरा पूरा रहेगा ? ये सिर्फ हिन्दुओं की अस्मिता नही है, ये धरोहर है विश्व का, सांसारिक सुखों से बड़ा अध्यात्मिक सुख है, हर स्थल से बड़ा धार्मिक स्थल है, इतिहास गवाह है, समय साक्षी है, धर्म सभ्यता की सबसे बड़ी निशानी है ,मानव मानवता छोड़ता है धर्मान्ध होकर ये नही धर्म का दोष है,कट्टर धर्म नही इंसान होता है, अपने धर्म पर गौरव दुसरे के धर्म का सम्मान सबका कर्तव्य है । योगी ने ,सन्यासी ने ,सत्ता की नई प्राथमिकता तय की पूर्ण महाकुंभ हों पूर्णता ही नही दिव्यता और भव्यता दी, धार्मिक है ,मार्मिक है ,है सबके लिए दिल में स्पंदन । वंदन, अभिनंदन महाकुंभ के आप सबसे बड़े है नंदन ,आयोजन नही ये अलौकिक सत्ता का संगम तट पर अवतरण है --------------------------महाकुंभ - धरा पे अलौकिक सत्ता का अवतरण है ।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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