मुखिया के मुखारी – धर्म की राह पर आपको लौटना ही होगा 

मुखिया के मुखारी – धर्म की राह पर आपको लौटना ही होगा 

कथ्य जिसमें तथ्य और सत्य का हास् ,ऐसे लिखा और पढ़ाया गया हमे हमारा इतिहास,स्वतंत्रता हमे बटवारे की कीमत पर मिली ,पर बताया हमेशा गया की हम स्वतंत्र हुए, छिपाया गया हमेशा बटवारे के सत्य को, तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक परिस्थियों में सत्ता की स्थिरता के लिए सत्य को अस्थिर कर दिया गया , सत्ता की खातिर फर्जी जनधारणाए गढ़ने की कवायद के लिए जरुरी था, की इतिहास को मनमाने ढंग से, एक ही दृष्टिकोण से लिखा जाय, लेस मात्र की सच्चाई फिर पूरा झूट परोसा गया ,इतिहास के हर पन्नो पे असंख्य उद्धरण है ऐसे, सत्य से परे वीरों को कायर, कायरो को वीर ,माटीपुत्रों का मान मर्दन ,आक्रांताओं का अभिनंदन ,धार्मिक ,सामाजिक ,अस्मिता परम्पराओं का जितना हों सका उतना क्षरण किया गया ,सेनापति का पुत्र एकलव्य निरीह बताया गया ,कारीगरों का हाथ काटकर ,बहुपत्नी वाला शाहजहाँ ताजमहल बना प्रेम पुजारी बन गया  । वाल्मीकि महर्षि वाल्मीकि हों गए, वेद व्यास भी अपने कर्मो से महर्षि हुए, फिर भी हमे जातिवादी बताया गया, सदियों से महाकुंभ का समागम हम करते आ रहे, फिर भी हमे ऊँच नींच का पैरोकार बताया गया ।

हमारे तों मंदिर एक है, श्मशान एक है ,फिर भी हमारे धर्म को दोहरे मापदंड का शिकार बताया गया । श्रेष्ठता दिखती है ,इनको उनमे जिनके चर्च ,मस्जिद आज भी अलग -अलग है, अपने ही समुदायों के बीच अलग -अलग मान्यता है ,अलग उपासना स्थल है ,शिया सुन्नी जैसे कई फिरके है ,रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट ,ऑर्थोडक्स जैसे कई वर्गीकरण है ,विज्ञान से भी पहले ज्ञान सारे, जिन्हें आज विज्ञान के नाम पर परोसा जा रहा ,वों सब वेद पुराण के हजारों बरस पुराने हिस्से है, झूठ लिखा ,झूठ बताया, और पढ़ाया, झूठ के आंटे में सच सिर्फ नमक बराबर है  ।  नेताओं के रोटी की यही हालत है ,बताते जातिविहीन समाज के गठन का उद्देश्य है, पर हर सरकारी सुविधाओं, कागजों पर करवाते जाति का उल्लेख है, जातियों की गणना जरुरी है ,तों उसमे यदुमुल्ला जैसे नई जातियों का समावेश भी जरुरी है,  जाति कुप्रथा है टूटनी चाहिए ये हमे भी लगता है ,सूधार समावेशी हों सामान हों कब आप कहेंगे, बहुविवाह, तीन तलाक ,हलाला भी कुप्रथा है?  समय चक्र चलता है ,सत्य परेशान हों सकता है, पर हारता नही है। हरिश्चंद्र सत्य के सहारे कालजयी राजा हों गए आप पांच साला अनुबंधी राजा होकर दर्प के आगोश में चले गए।

समय बदल रहा ,धीरे -धीरे ही सही, सत्य फिर स्थापित हों रहा ,अस्मिता जग रही धर्म की पताका फिर लहरा रही ,महाकुंभ से परहेज वही बाप की मूर्ति रहे सहेज, नाम कुछ भी हों आपका अपने आप को साबित अकल लेस कर रहे है । राजनीति के लिए हिन्दुओं और हिन्दु धर्म का सिर्फ अपमान, धर्म, वर्ग  विशेष को दे रहे सम्मान हों, बुद्धजीवियों की मंशा है सद्भावना से  रिश्ता इनका अंश मात्र का है, हम अवैध कब्जों की शिकायत ना करे, अपने धार्मिक स्थलों की पहचान ना करे, हमे सर्वे की भी मनाही है, अपने ही धर्म स्थलों पर पूजा की मनाही है, बिन गवाही वों कब्जेदार हों गए, बिना कागजों के उनके सारे दावे सच हों गए, दावे पे दावे कर रहे, जिनके पास बीघा भर जमीन नही, वों दानवीर कर्ण हों गए ,जबरदस्ती पहन सलवार भय ,लोभ ,प्रलोभन से धर्म छोड़ सनातन वों कट्टर हों गए ,वों दौर था आक्रांताओं के अत्याचारों का जजिया के फरमानों का ,आज का दौर है सियासत दानों का ।

सहिष्णुनता की जगह कट्टरता सीखा रहे ,धर्म की जगह धर्मान्धता की राह दिखा रहे ,झूठ को सच, अधर्म कों धर्म ,कुनीति को राजनीति बता रहे, सुख, समृद्धि, सत्ता सब अपने घर में चाहिए ,फिर भी अपने आप को जननेता बता रहे, जन से नही नाता  ,सिर्फ सत्ता से है वास्ता, अपने स्वार्थ में डूबे समाज को डूबा रहे, अनुशासन नही उदंडता का पाठ पढ़ा रहे, बंद मुट्ठी से ऊँगली निकाल -निकाल एक दुसरे को ऊँगली  कर रहे, हमे मुट्ठी की ताकत बता रहे। ,लड़ाई दिल्ली की, चढ़ाई राजधानी की ,एकता की दुहाई के राज सारे खुल गए, त्यागी प्रधानमंत्री पद के आसक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के हों गए, त्याग की प्रतिमूर्तियाँ माँ बेटा होकर भी एक घर में नही रह सकते ,जिनके परिवार की परिभाषा में देवरानी, भतीजे का स्थान नही, उनके कितने अच्छे विचार, कैसा उनका त्याग, एक ही घर में रत्नों का जमवाड़ा है, रेहान ,राजीव वाड्रा है पर राहुल फिरोज गाँधी का नही कोई उल्लेख है ।  बांटो जितना बाँट सकते हों अपनी सत्ता के लिए ,सत से कितना दूर भाग सकते हों, भगाए जा चुके हों सत्ता से, फिर भी नही सुधर रहे हों  ,दान मतों का नही मिल रहा फिर भी मत आपका दान के लिए उद्वेलित नही हों रहा ,दोहरे मापदंड के शिकार हों, अपने ही जाल में अपने को ही फंसा लिए, ऐसे आप शिकारी हों ।  वर्षो की कुचेष्टा पर भारी पड़ेगी 45 दिन की सनातनी परम्परा, वक्फ बोर्ड के नाम पर अखिल भारतीय दिया आपका मुद्दा अलख जगायेगा पुरे भारत में, समय है सम्हल जाइए, वर्ना संभल जैसा इतिहास खुदेगा, कुकर्म छोड़ सत्कर्म करिए क्योकि -------------- धर्म की राह पर आपको लौटना ही होगा 

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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