मुखिया के मुखारी –छत्तीसगढ़िया परेशान-सरकारों का एक ही दंड विधान 

मुखिया के मुखारी –छत्तीसगढ़िया परेशान-सरकारों का एक ही दंड विधान 

छत्तीसगढ़ की राजनीति ,राजनीतिक कुप्रथाओं की अनुगामी हों गई है, पथ भ्रष्ट, पथ गामिनी हों गई है । सत्ता बदली पर व्यवस्था नही बदली,एक सरकार घोटालों की वजह से गई, नई सरकार नियति जानकर भी घोटालों से घिर रही, फिर भी सुशाषन का दंभ भर रही है ,जाँच ऐसी हों रही की किसी भी राजनेता को आंच महसूस नही हों रही, नेता जरुर शुतुरमुर्ग हों गए है, पर जनता जरुर देख रही है ।  सुशाषन स्वाति नक्षत्र की बूंद हों गई है ,चकोर जनता मुंह बाये खड़ी है ,पांच सालाना मौका चार साल बाद आएगा तब तक छत्तीसगढ़ की जनता का छत्तीस हाल होगा । पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार, दोनों सरकार की क्रियाकलापों से, गुण -अवगुण दोंनो से परिचित है,लोकतंत्र के मर्म को समझते है,पर मर्मज्ञों की अज्ञानता है ,एक रूपता है ,घोटालों से इनकी संबद्धता है, जनादेश की अवहेलना कर जन नही, अपने घर धन भरने की योजना है ,अफसरशाही तब भी बेलगाम थी ,आज भी बेलगाम है ,लाखों मतदाताओं को प्रभावित कर अपने पक्ष में मतदान कराने वाले नेता, गिनती के अफसरों से जन कल्याण के कार्य करवा नही पाते । पक्षपाती हों भ्रष्टाचार के हिस्सेदार बन जाते है ,जन कल्याण हों ना हों अफसरों और नेताओं का स्व कल्याण हों जाता है,चेहरा बदल जाता है, चरित्र नही बदलता ,सरकार असर कार नही हों पाती,लाल बुझकड़ी ज्ञान से जनता उकता गई है, छत्तीसगढ़ के उदभव से लेकर आज तक बेलगाम अफसर शाही का इतिहास है,सरकारी विभागों में घोटालों का खेल है ,घट रही राजनीतिक सुचिता और इच्छा शक्ति है  हारे -जीते अभी के दोनों सरकार की कर ले तुलना तों तुला पे दोनों एक जैसे ही है ।

रस्ता एक ,तों मंजिल भी एक ही होंगी, छत्तीसगढ़ में चर्चा से ज्यादा विवादों में घिरी एक पुस्तक लिखी गई थी - ब्राम्हण कुमार रावण को मत मारो।  पर ब्राम्हण कुमार कालेज प्रोफेसर को मार पड़ी, जीवन का संघर्ष आज भी जारी है, मारने वाला भी ब्राम्हण जिसकी हों चुकी गिरफ्तारी है, पुलिस ने रिमांड लिया नही या मिला नही या फिर इसकी कोई और राजनीतिक कहानी है ,या फिर ब्राम्हण कुमार रावण को मत मारो लिखने वालों पर सरकार की मेहरबानी है, ऑनर किलिंग के मसले पर  इतनी चुप्पी ,जाँच खामोशी से हों रही ,या सरकार खामोश रहना चाह रही है । घपले घोटालों में लिप्त अधिकारी, व्यापारी, कर्मचारी निपट गए ,जेल पहुँच गए । नेता ED दफ्तर से घर पहुँच गए, पूछताछ से ऊपर कुछ हों नही रहा ,पूछ परख नेताओं का हों नही रहा है कम ,पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर हों रहा हल्ला है, धरना प्रदर्शन बंद की तैयारी है ,सामान्य सीटों पर भी जब आप लड़ सकते तों फिर ये मुद्दा क्यों ? और यदि ये जरुरी है, तों फिर संवैधानिक प्रावधान क्यों नही? सामान्य सीटों से ही सांसद विधायक बने ओबीसी नेताओं को आरक्षण की चाहत क्यों ? यदि मुद्दा ये सशक्तिकरण का है तों फिर अपने वेतन ,पेशन सुविधाओं वाला एकीकरण दिखाइए, संसद विधानसभाओं से तुरंत प्रस्ताव पास कराइए, वरना पीठ खुजाने की आप दोनों की परम्परा पुरानी है ,वों आपके घोटालों की जाँच की आंच आप तक आने नही दे रहे, आप इनके घोटालों पर सवाल नही उठा रहे।

चार मंत्री इस सरकार के निपुणता में कमतर है, भाजपा संगठन का ये आंकलन है, फिर भी विपक्ष मौन है, सूत्र बता रहे वनरक्षक भर्ती में घोटाला हुआ, राजनांदगांव में पुलिस भर्ती घोटाला हुआ ,फिर भी पूर्व वन मंत्री एवं गृहमंत्री मौन है, विभाग की सारी कार्यप्रणाली जानते है आप, फिर भी क्यों बने मौनी बाबा है आप ,पूर्व मुखिया के पास था जनसंपर्क विभाग ,जनसंपर्क के वैध -अवैध संपर्को के आप गवाह है ,पाठकों के दिमाग से आउट हों चुकी पत्रिका को जनसंपर्क लुक कर रहा, जो देश में थोड़ी बहुत पढ़ी जाती, उस आउट लुक को लाखों का विज्ञापन स्वदेश ,ग्वालियर संस्करण को करोड़ो के विज्ञापन देने का आधार क्या है ?  ना पाठक संख्या ,ना वों प्रदेश के अख़बार ,क्या छत्तीसगढ़ीया इन्हें पढ़ने जायेंगे ग्वालियर,दिल्ली ,या ग्वालियर दिल्ली वाले चुनेगे छत्तीसगढ़ की सरकार, ना विज्ञापन नीति है ना चिंता सरकार की छवि की है।  प्लेस जिन्हें सरकार को करना है सुरक्षित, वों प्लेसमेंट एजेंसी का खेल कर रहे कौड़ी के चिंजो के लिए करोड़ो खर्च कर रहे । ऐसे लंबी घोटालों की श्रृंखला बन रही ,फिर भी आप ये श्रृंखला तोड़ने को आतुर नही, आरोपों की झड़ी है, सावन सरमा जाए ऐसे राजनीतिक आरोपों की आप लोगों की झड़ी पे झड़ी है ,आरोंप अंजाम तक ना पहुंचे अपराध की सजा ना मिले ये कैसी व्यवस्था, कैसा सुशासन  ? नमक एक दुसरे के घरों का खाते ही है आप शायद उस नमक की कीमत अदा कर रहे है, बड़े लोग, बड़े लोगों से बड़ा सम्बन्ध निभा रहे, जनहित की अर्थी निकाल स्वहित का मंजीरा बजा रहे ,राजनीतिक घोटाले आरोपों तक ही क्यों सिमट जाते है ? अपने आप को सजा से बचने के लिए, धनगढ़ मंत्री अनपढ़ बन जाते है, तालाब साफ करने के लिए मछली को फांसी देने का आप दोनों का राज विधान है,घोटालों की जाँच की आंच दबाई जायेगी फिर भी आप कहेंगे सांच को आंच कंहा सबकुछ है आपके पास ,बस सरकारों के पास सांच का साथ कंहा  ---------------- छत्तीसगढ़िया परेशान-सरकारों का एक ही दंड विधान 

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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