सुप्रीम कोर्ट ने PMLA केस में जमानत के नए आधारों पर सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने PMLA केस में जमानत के नए आधारों पर सुनाया फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक साल जेल में बिता चुके और जिनके खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं, उन्हें सेंथिल बालाजी मामले में दिए गए फैसले के अनुसार जमानत पर रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के सख्त जमानत प्रावधानों को कम करते हुए कहा है कि मुकदमे में देरी और लंबी कैद जमानत देने का आधार हो सकती है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने यह तय नहीं किया था कि पीएमएलए के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कितने समय तक हिरासत में रखा जा सकता है। एक साल की समय-सीमा से अदालतों को जमानत याचिकाओं पर फैसला लेने में एकरूपता लाने में मदद मिलेगी।

किस मामले में दी टिप्पणी?

यह स्पष्टीकरण छत्तीसगढ़ आबकारी मामले के आरोपी अरुण पति त्रिपाठी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। त्रिपाठी को ईडी ने पिछले साल 8 अगस्त को गिरफ्तार किया था। चूंकि त्रिपाठी ने केवल लगभग पांच महीने ही हिरासत में बिताए हैं, इसलिए अदालत ने जमानत देने में संकोच जताया। त्रिपाठी के वकील मीनाक्षी अरोड़ा और मोहित डी राम ने दलील दी कि उन्होंने वास्तव में 18 महीने जेल में बिताए हैं क्योंकि ईडी ने उन्हें अगस्त में हिरासत में लिया था और इससे पहले वे एक अन्य अपराध में जेल में थे। हालांकि, पीठ ने कहा कि इस आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती और 5 फरवरी को इस मुद्दे पर विचार करने पर सहमत हुई।

सेंथिल बालाजी मामले में क्या कहा था?

सेंथिल बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीएमएलए की धारा 45(1)(iii) जैसे सख्त प्रावधानों का इस्तेमाल बिना मुकदमे के किसी आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखने के लिए नहीं किया जा सकता। राज्य के पास किसी आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखने का अधिकार नहीं है।

हलफनामा सही चैनल से नहीं किया गया वेरिफाई

सुनवाई के दौरान एक अप्रत्याशित मोड़ आया जब ईडी की ओर से पेश अडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने बेंच को बताया कि एजेंसी द्वारा अदालत में दायर हलफनामा उचित चैनल के माध्यम से वेरिफाई नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि हलफनामा दायर करने के तरीके में कुछ गड़बड़ है और ईडी डायरेक्टर से जांच करने को कहा।

कोर्ट ने जताई हैरानी

अदालत ने हैरानी जताई कि एजेंसी अपने ही हलफनामे को अस्वीकार कर सकती है और एडवोकेट-ऑन-रेकॉर्ड की भूमिका पर सवाल उठाया, जिसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में दस्तावेज दायर किए जाते हैं। हालांकि, वरिष्ठ कानून अधिकारी ने स्पष्ट किया कि AoR ने वही दायर किया जो उन्हें विभाग ने दिया था और गलती एजेंसी के भीतर थी। इसके बाद अदालत ने ईडी के AoR को पेश होने को कहा।

बाद में, राजू ने कहा कि दायर करने का काम संभालने वाला व्यक्ति, नौकरी में नया होने के कारण, पूरी तरह से प्रक्रिया का पालन नहीं कर पाया होगा, लेकिन हलफनामे में सभी वैध तर्क और आधार शामिल हैं। ASG और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने AoR को क्लीन चिट दे दी।

अदालत ने उठाए कई जरूरी सवाल?

इस मामले ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। क्या एक साल जेल में बिताना जमानत के लिए पर्याप्त है? क्या पीएमएलए के सख्त प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है? ईडी के भीतर क्या गड़बड़ी चल रही है जिससे हलफनामा दायर करने में ऐसी चूक हुई? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएंगे। लेकिन यह मामला निश्चित रूप से पीएमएलए के तहत जमानत के प्रावधानों और ईडी की कार्यप्रणाली पर बहस छेड़ देगा।






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