गुजरात: के किसान ठाकोर परबतजी जवानजी ने शकरकंद की खेती में ऐसा करिश्मा दिखाया है, जो पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है. दरअसल, परबतजी ने सूझबूझ और तकनीक के जरिए कम लागत में शकरकंद की पैदावार कई गुना बढ़ा दी है.
इससे उनकी आर्थिक स्थिति को भी मजबूती मिली है. साथ ही अब उन्हें किसान भाइयों से भी खूब सरहाना मिल रही है. मेहसाणा जिले के चालुवा गांव में 200 से ज्यादा किसान शकरकंद की खेती करते हैं. गांव में 90 फीसदी लोग शकरकंद की खेती करते हैं. चालूवा गांव से शकरकंद राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के हर जिले में जाता है. किसान परबतजी ने 12 बीघे में शकरकंद की फसल लगाई है. साथ ही खर्च छोड़कर प्रति सप्ताह 60000 रुपये का मुनाफा हो रहा है.
कैसे बढ़ाई शकरकंद की पैदावार?
इस शानदार काम में परबतजी ने पारंपरिक खेती के तरीकों से हटकर नई तकनीकों का इस्तेमाल किया. उन्होंने बेहतर किस्म के बीजों से खेती की, जिससे पौधों की क्वालिटी और पैदावार में सुधार हुआ. इसके अलावा, परबतजी ने फर्टिलाइजर के यूज को बैलेंस किया. साथ ही, मिट्टी की देखभाल पर खास ध्यान दिया. खास बात ये है कि परबतजी ने ड्रिप सिंचाई सिस्टम का इस्तेमाल किया. इससे पानी की खपत भी कम हुई. परबतजी ने अपनी खेती के लिए जैविक खाद और नेचुरल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करके उन्होंने लागत को काफी हद तक कम किया. इसके साथ ही, खेत में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया.
मुनाफे के बारे में किसान ने क्या कहा?
परबतजी ने आगे कहा, "शकरकंद की खेती में प्रति बीघे 15000 रुपये से ज्यादा का खर्च आता है. इसके अलावा शकरकंद की बुआई और कटाई के दौरान मजदूरी का खर्च अलग से होता है. पिछले साल एक मन शकरकंद की कीमत 100 रुपये थी. इस साल एक मन शकरकंद की कीमत 400 से 500 रुपये तक है. शकरकंद की खेती में प्रति एकड़ 60,000 रुपये का मुनाफा होता है."
सरकार और कृषि विभाग की मदद से सफलता
परबतजी का ये काम और बेहतरीन हो पाया क्योंकि उन्हें कृषि विभाग से मदद भी मिली. परबतजी ने उनकी सुझाई गई योजनाओं पर काम किया. सरकार की कृषि योजनाएं, जैसे कि सब्सिडी और तकनीकी मदद, परबतजी के लिए फायदेमंद साबित हुईं.
बाकी किसानों की कर रहे मदद
अब परबतजी की सफलता की कहानी पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गई है. किसानों पर इतना अच्छा असर हुआ है कि अब आसपास के किसान अब उनकी तकनीकों को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. सिर्फ ये ही नहीं, अब परबतजी ने अपने गांव के किसानों को ट्रेनिंग भी देना शुरू कर दिया है।
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